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दंतधावन व दंत-सुरक्षा

Posted by Hari Om ~ Monday 18 February 2013


दंतधावन व दंत-सुरक्षा


मौन रहकर नित्य दंतधावन करे। दंतधावन किये बिना देवपूजा व संध्या करे।
(महाभारत, अनुशासन पर्व)
बेर की दातुन करने से स्वर मधुर होता है, गूलर से वाणी शुद्ध होती है, नीम से पायरिया आदि रोग नष्ट होते हैं एवं बबूल की दातुन करने से दाँतों का हिलना बंद हो जाता है।
मंजन कभी भी तर्जनी उँगली (अँगूठे के पास वाली पहली उँगली) से न करें, वरन् मध्यमा (सबसे बड़ी) उँगली से करें। क्योंकि तर्जनी उँगली में एक प्रकार का विद्युत प्रवाह होता है, जिसके दाँतों में प्रविष्ट होने पर उनके शीघ्र कमजोर होने की संभावना रहती है।
महीने में एकाध बार रात्रि को सोने से पूर्व नमक एवं सरसों का तेल मिला के, उससे दाँत मलकर, कुल्ले करके सो जाना चाहिए। ऐसा करने से वृद्धावस्था में भी दाँत मजबूत रहते हैं।
हर हफ्ते तिल का तेल दाँतों पर मलकर तिल के तेल के कुल्ले करने से भी दाँत वृद्धावस्था तक मजबूत रहते हैं। यह प्रयोग पूज्य बापू जी भी करते हैं।
रात को नींबू के रस में दातुन के अगले हिस्से को डुबो दें। सुबह उस दातुन से दाँत साफ करें तो मैले दाँत भी चमक जायेंगे।
चबाने का काम मजबूत दाँत ही कर सकते हैं, आँतें नहीं कर सकतें। इसीलिए कहा गया हैः
'दाँतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए।'
अति ठंडा पानी या ठंडे पदार्थ तथा अति गर्म पदार्थ या गर्म पानी के सेवन से दाँतों के रोग होते हैं।
खूब ठंडा पानी या ठंडे पदार्थों के सेवन के तुरंत बाद गर्म पानी या गर्म पदार्थ का सेवन किया जाय अथवा इससे विरूद्ध क्रिया की जाय तो दाँत जल्दी गिरते हैं।
भोजन करने एवं पेय पदार्थ लेने के बाद पानी से कुल्ले करने चाहिए। जूठे मुँह रहने से बुद्धि क्षीण होती है और दाँतों व मसूड़ों में कीटाणु जमा हो जाते हैं।






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