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शरीर के भिन्न-भिन्न भागों पर मिट्टी चिकित्सा

Posted by Hari Om ~ Tuesday 19 February 2013


शरीर के भिन्न-भिन्न भागों पर मिट्टी चिकित्सा

सिर पर ठण्डी मिट्टी का प्रयोग

सामान्यतया ललाट पर 3 इंच चौड़ी एवं 6 इंच लम्बी पट्टी का प्रयोग किया जाता है। इस पट्टी के दोनों छोर ललाट के दोनों ओर कान तक पहुँचने चाहिए। पट्टी की चौड़ाई 5 इंच रखें तो आँखें भी ढँक जायेंगी। सिर पर (ललाट पर) सीधे भी मिट्टी का लेप किया जा सकता है। भोजन अथवा स्नान के कम से कम एक घण्टे बाद ही मिट्टी-प्रयोग करें।
अनिद्रा, चक्कर, सिरदर्द, नकसीर, हाई बी.पी., मेनिनजाइटिस, बाल झड़ने अथवा बालों में रूसी होने आदि रोगों में सिर पर मिट्टी की पट्टी रखना लाभदायक है।

आँख पर मिट्टी की पट्टी

आँख आने पर, सूजन एवं दर्द होने पर, चश्मे के नम्बर उतारने में आँख पर मिट्टी की पट्टी रखना लाभदायक है।
आँख पर रखी हुई पट्टी सामान्यतया 20 से 30 मिनट में गर्म हो जाती है। गर्म होने पर पट्टी बदल दें। आँख आने के रोग में पट्टी को थोड़े-थोड़े समय के अंतर पर बदलते रहें।

पेट पर मिट्टी की पट्टी

पेट के लगभग समस्त रोगों (पाचनक्रिया से संबंधित) में पेट पर मिट्टी की पट्टी या सीधी मिट्टी रखने का प्रयोग किया जाता है। अधिकांशतः पेड़ू पर ही पट्टी रखी जाती है।
कब्जियत, गैस, अल्सर, सूजन आदि रोगों में यह लाभदायक प्रयोग है।
खाली पेट पट्टी रखना अधिक लाभदायक है अन्यथा भोजन के दो घण्टे बाद रखें। सामान्यतया आधे से एक घण्टे तक पट्टी रखना उचित होता है।


मलद्वार (गुदा) पर मिट्टी चिकित्सा

सादे अथवा बवासीर, आँव, भगंदर आदि रोग में गुदा में जलन एवं फुन्सी होने पर तथा कमजोरी के कारण गुदा के बाहर निकल आने पर ठण्डी मिट्टी की पट्टी का प्रयोग हितकर है।

त्वचा के रोग पर मिट्टी चिकित्सा

दाद-खाज-खुजली, फुन्सी आदि त्वचा के रोगों में मिट्टी का प्रयोग निःशंक होकर किया जा सकता है। 15 से 30 मिनट तक सर्वांग सूर्यस्नान लेने के बाद पूरे शरीर पर मिट्टी लगा दे और पुनः सूर्यस्नान करें। ठण्डी की वजह से पूरे शरीर पर मिट्टी लगाना संभव न हो तो रोग से प्रभावित अंग पर ही लगायें। धूप की वजह से 40-50 मिनट में मिट्टी सूख जायेगी। सूख जाने पर ठण्डे पानी से धो लें। तत्पश्चात् त्वचा को साफ करने के लिए नींबू के रस से समस्त भागों की मालिश करके फिर नारियल का तेल लगाकर स्नान कर लें। ऐसा करने से नींबू के कारण होती जलन एवं रूखापन दूर हो जाता है।
कोढ़ एवं रक्तपित्त में भी मिट्टी-प्रयोग लाभदायक है किन्तु उसमें मिट्टी लगाकर धूप में न बैठकर छाया में बैठना चाहिए एवं मिट्टी के थोड़ा सूखने पर (आधे-एक घण्टे में) पानी से स्नान कर लेना चाहिए।
कमजोर रोगी यदि छाया सहन न कर सके तो कम धूप में बैठे।
फोड़े-फुन्सी या घाव होने पर पहले उसे नीम के ठण्डे काढ़े से धोकर फिर उस पर मिट्टी की पट्टी रखने से लाभ होता है।




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