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शंख(Shell)

Posted by Hari Om ~ Friday 8 February 2013



शंख(Shell)

शंख दो प्रकार के होते हैं – दक्षिणावर्त एवं वामावर्त। दक्षिणावर्त शंख पुण्य योग से मिलता है। यह जिसके यहाँ होता है उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास करती हैं। यह त्रिदोषशामक, शुद्ध एवं नवनिधियों में से एक निधि है तथा ग्रह एवं गरीबी की पीड़ा, क्षय, विष, कृशता एवं नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख सफेद चन्द्रकान्तमणि जैसा होता है वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध शंख गुणकारी नहीं होते, उन्हें शुद्ध करके ही दवा के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने सिद्ध करके बताया है कि शंख को बजाने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि पहुँचती वहाँ तक रोग उत्पन्न करने वाले कई प्रकार के हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए अनादिकाल से प्रातःकाल एवं संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज चला आ रहा है।
संध्या के समय हानिकारक जंतु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं, अतः उस समय शंख बजाना आरोग्य के लिए लाभदायक हैं और इससे भूत-प्रेत, राक्षस आदि भाग जाते हैं।

औषधि-प्रयोगः

मात्राः अधोलिखित प्रत्येक रोग में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म ले सकते हैं।
गूँगापनः गूँगे व्यक्ति के द्वारा प्रतिदिन 2-3 घंटे तक शंख बजवायें। एक बड़े शंख में 24 घंटे तक रखा हुआ पानी उसे प्रतिदिन पिलायें, छोटे शंखों की माला बनाकर उसके गले में पहनायें तथा 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म सुबह शाम शहद  साथ चटायें। इससे गूँगापन में आराम होता है।

तुतलापनः 1 से 2 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म मिलाकर सुबह शाम गाय के घी के साथ देने से तुतलेपन में लाभ होता है।
तेजपात (तमालपत्र) को जीभ के नीचे रखने से रूक रूककर बोलने अर्थात् तुतलेपन में लाभ होता है।
सोते समय दाल के दाने के बराबर फिटकरी का टुकड़ा मुँह में रखकर सोयें। ऐसा नित्य करने से तुतलापन ठीक हो जाता है।
दालचीनी चबाने व चूसने से भी तुतलापन में लाभ होता है।
दो बार बादाम प्रतिदिन रात को भिगोकर सुबह छील लो। उसमें 2 काली मिर्च, 1 इलायची मिलाकर, पीसकर 10 ग्राम मक्खन में मिलाकर लें। यह उपाय कुछ माह तक निरंतर करने से काफी लाभ होता है।

मुख की कांति के लिएः शंख को पानी में घिसकर उस लेप को मुख पर लगाने से मुख कांतिवान बनता है।

बल-पुष्टि-वीर्यवर्धकः शंखभस्म को मलाई अथवा गाय के दूध के साथ लेने से बल-वीर्य में वृद्धि होती है।

पाचन, भूख बढ़ाने हेतुः लेंडीपीपर का 1 ग्राम चूर्ण एवं शंखभस्म सुबह शाम शहद के साथ भोजन के पूर्व लेने से पाचनशक्ति बढ़ती है एवं भूख खुलकर लगती है।

श्वास-कास-जीर्णज्वरः 10 मि.ली. अदरक के रस के साथ शंखभस्म सुबह शाम लेने से उक्त रोगों में लाभ होता है।

उदरशूलः 5 ग्राम गाय के घी में 1.5 ग्राम भुनी हुई हींग एवं शंखभस्म लेने से उदरशूल मिटता है।

अजीर्णः नींबू के रस में मिश्री एवं शंखभस्म डालकर लेने से अजीर्ण दूर होता है।

खाँसीः नागरबेल के पत्तों (पान) के साथ शंखभस्म लेने से खाँसी ठीक होती है।

आमातिसारः (Diarhoea) 1.5 ग्राम जायफल का चूर्ण, 1 ग्राम घी एवं शंखभस्म एक एक घण्टे के अंतर पर देने से मरीज को आराम होता है।

आँख की फूलीः शहद में शंखभस्म को मिलाकर आँखों में आँजने से लाभ होता है।

परिणामशूल (भोजन के बाद का पेट दर्द)- गरम पानी के साथ शंखभस्म देने से भोजन के बाद का पेटदर्द दूर होता है।

प्लीहा में वृद्धिः (Enlarged Spleen) अच्छे पके हुए नींबू के 10 मि.ली. रस में शंखभस्म डालकर पीने से कछुए जैसी बढ़ी हुई प्लीहा भी पूर्ववत् होने लगती है।

सन्निपात-संग्रहणीः (Sprue) शंखभस्म को 3 ग्राम सैंधव नमक के साथ दिन में तीन बार (भोजन के बाद) देने से कठिन संग्रहणी में भी आराम होता है।

हिचकी (Hiccup)-- मोरपंख के 50 मि.ग्रा. भस्म में शंखभस्म मिलाकर शहद के साथ डेढ़-डेढ़ घंटे के अंतर पर चाटने से लाभ होता है।




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