LATEST NEWS

रसायन चिकित्सा

Posted by Hari Om ~ Wednesday 6 February 2013



रसायन चिकित्सा

रसायन चिकित्सा आयुर्वेद के अष्टांगों में से एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है। रसायन का सीधा सम्बन्ध धातु के पोषण से है। यह केवल औषध-व्यवस्था न होकर औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातुपोषण के माध्यम से दीर्घ आयुष्य, रोगप्रतिकारक शक्ति एवं उत्तम बुद्धिशक्ति को उत्पन्न करना है। स्थूल रूप से यह शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन करता है परंतु सूक्ष्म रूप से इसका सम्बन्ध मनःस्वास्थ्य से अधिक है। विशेषतः मेध्य रसायन इसके लिए ज्यादा उपयुक्त है। बुद्धिवर्धक प्रभावों के अतिरिक्त इसके निद्राकारी,मनोशांतिदायी एवं चिंताहारी प्रभाव भी होते हैं। अतः इसका उपयोग विशेषकर मानसिक विकारजन्य शारीरिक व्याधियों में किया जा सकता है।
रसायन सेवन में वय, प्रकृति, सात्म्य, जठराग्नि तथा धातुओं का विचार आवश्यक है। भिन्न-भिन्न वय तथा प्रकृति के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होने के कारण तदनुसार किये गये प्रयोगों से ही वांछित फल की प्राप्ति होती है।
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1 से 2 चुटकी वचाचूर्ण शहद में मिलाकर चटाने से बाल्यावस्था में स्वभावतः बढ़ने वाले कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि कुशाग्र होती है।

11 से 20 साल तक के किशोंरों एवं युवाओं को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातुएँ पुष्ट होती हैं एवं शारीरिक बल की वृद्धि होती है।

21 से 30 साल तक के लोगों को 1 चावल के दाने के बराबर शतपुटी लौह भस्म गोघृत में मिलाकर देने से रक्तधातु की वृद्धि होती है। इसके साथ सोने से पहले 1 चम्मच आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से नाड़ियों की शुद्धि होकर शरीर में स्फूर्ति व ताजगी का संचार होता है।

31 से 40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का 10 से 15 मि.ली. रस अथवा उसका 1 चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर देने से तनावजन्य मानसिक विकारों में राहत मिलती है व नींद अच्छी जाती है। उच्च रक्तचाप कम करने एवं हृदय को शक्ति प्रदान करने में भी वह प्रयोग बहुत हितकर है।

41 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों को 1 ग्राम ज्योतिष्मिती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर देने तथा ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग करने से इस उम्र में स्वभावतः बढ़ने वाले वातदोष का शमन होता है एवं संधिवात, पक्षाघात (लकवा) आदि वातजन्य विकारों से रक्षा होती है।

51 से 60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति स्वभावतः घटने लगती है जो 1 ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गौघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से बढ़ती है। सोने से पूर्व 2-3 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम पानी के साथ लेना भी हितकर है। गिलोय, गोक्षुर एवं आँवले से बना रसायन चूर्ण 3 से 10 ग्राम तक सेवन करना अति उत्तम है।

मेध्य रसायनः शंखपुष्पी, जटामासी और ब्राह्मीचूर्ण समभाग मिलाकर 1 ग्राम चूर्ण शहद के साथ लेने से ग्रहणशक्ति व स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। इससे मस्तिष्क को बल मिलता है, नींद अच्छी आती है एवं मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

आचार रसायनः केवल सदाचार के पालन से भी शरीर व मन पर रसायनवत् प्रभाव पड़ता है और रसायन के सभी फल प्राप्त होते हैं।




Categories
Tags

Related Posts

No comments:

Leave a Reply

Labels

Advertisement
Advertisement

teaser

teaser

mediabar

Páginas

Powered by Blogger.

Link list 3

Blog Archive

Archives

Followers

Blog Archive

Search This Blog