स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार : तुलसी
तुलसी एक सर्वपरिचित एवं सर्वसुलभ वस्पति है। भारतीय धर्म एवं संस्कृति में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के अन्य अनेक देशों में भी तुलसी को पूजनीय एवं शुभ माना जाता है।
अथर्ववेद में आता हैः 'यदि त्वचा, मांस तथा अस्थि में महारोग प्रविष्ट हो गया हो तो उसे श्यामा तुलसी नष्ट कर देती है। तुलसी दो प्रकार की होती हैः हरे पत्तों वाली और श्याम(काले) पत्तों वाली। श्यामा तुलसी सौंदर्यवर्धक है। इसके सेवन से त्वचा के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और त्वचा पुनः मूल स्वरूप धारण कर लेती है। तुलसी त्वचा के लिए अदभुत रूप से लाभकारी है।'
सभी कुष्ठरोग अस्पतालों में तुलसीवन बनाकर तुलसी के कुष्ठरोग निवारक गुण का लाभ लिया जा सकता है।
चरक सूत्रः 27.169 में आता हैः 'तुलसी हिचकी, खाँसी, विषदोष, श्वास और पार्श्वशूल को नष्ट करती है। वह पित्त को उत्पन्न करती है एवं वात, कफ और मुँह की दुर्गन्ध को नष्ट करती है।'
स्कंद पुराणः 2,4,8,13 एवं पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में आता हैः 'जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वह घर तीर्थ के समान है। वहाँ व्याधिरूपी यमदूत प्रवेश ही नहीं कर सकते।'
प्रदूषित वायु के शुद्धिकरण में तुलसी का योगदान सर्वाधिक है। तिरुपति के एस.वी. विश्वविद्यालय में किये गये एक अध्ययन के अनुसार तुलसी का पौधा उच्छवास में स्फूर्तिप्रद ओजोन वायु छोड़ता है, जिसमें ऑक्सीजन के दो के स्थान पर तीन परमाणु होते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा में तुलसी का प्रयोग करने से अनेक प्राणघातक और दुःसाध्य रोगों को भी निर्मूल करने में ऐसी सफलता मिल चुकी हैं जो प्रसिद्ध डॉक्टरों व सर्जनों को भी नहीं मिलती।
तुलसी ब्लड कोलस्ट्रोल को बहुत तेजी के साथ सामान्य बना देती है। तुलसी के नियमित सेवन से अम्लपित्त दूर होता है तथा पेचिश, कोलाइटिस आदि मिट जाते हैं। स्नायुदर्द, सर्दी, जुकाम, मेदवृद्धि, सिरदर्द आदि में यह लाभदायी है। तुलसी का रस, अदरक का रस एवं शहद समभाग में मिश्रित करके बच्चों को चटाने से बच्चों के कुछ रोगों में, विशेषकर सर्दी, दस्त, उलटी और कफ में लाभ होता है। हृदय रोग और उसकी आनुबंधिक निर्बलता और बीमारी से तुलसी के उपयोग से आश्चर्यजनक सुधार होता है।
हृदयरोग से पीड़ित कई रोगियों के उच्च रक्तचाप तुलसी के उपयोग से सामान्य हो गये हैं. हृदय की दुर्बलता कम हो गयी है और रक्त में चर्बी की वृद्धि रुकी है। जिन्हें पहाड़ी स्थानों पर जाने की मनाही थी ऐसे अनेक रोगी तुलसी के नियमित सेवन के बाद आनंद से ऊँचाई वाले स्थानों पर सैर-सपाटे के लिए जाने में समर्थ हुए हैं।
प्रतिदिन तुलसी-बीज जो, पान संग नित खाय।
रक्त, धातु दोनों बढ़ें, नामर्दी मिट जाय।।
ग्यारह तुलसी-पत्र जो, स्याह मिर्च संग चार।
तो मलेरिया इक्तरा, मिटे सभी विकार।।
वजन बढ़ाना हो या घटाना हो, तुलसी का सेवन करें। इससे शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है।
तुलसी गुर्दों की कार्यशक्ति में वृद्धि करती है। इसके सेवन से विटामिन ए तथा सी की कमी दूर हो जाती है। खसरा-निवारण के लिए यह रामबाण इलाज है।
तुलसी की 5-7 पत्तियाँ रोजाना चबाकर खाने से या पीसकर गोली बनाकर पानी के साथ निगलने से पेट की बीमारियाँ नहीं होती। मंदाग्नि, कब्जियत, गैस आदि रोगों के लिए तुलसी आदि से तैयार की जाने वाली वनस्पति चाय लाभ पहुँचाती है।
अपने बच्चों को तुलसी पत्र सेवन के साथ-साथ सूर्यनमस्कार करवाने और सूर्य को अर्घ्य दिलवाने के प्रयोग से उनकी बुद्धि में विलक्षणता आयेगी। आश्रम के पूज्य नारायण स्वामी ने भी इस प्रयोग से बहुत लाभ उठाया है।
जलशुद्धिः दूषित जल में तुलसी की हरी पत्तियाँ (4 लिटर जल में 50-60 पत्तियाँ) डालने से जल शुद्ध और पवित्र हो जाता है। इसके लिए जल को कपड़े से छानते समय तुलसी की पत्तियाँ कपड़े में रखकर जल छान लेना चाहिए।
विशेषः तुलसी की पत्तियों में खाद्य वस्तुओं को विकृत होने से बचाने का अदभुत गुण है। सूर्यग्रहण आदि के समय जब खाने का निषेध रहता है तब खाद्य वस्तुओं में तुलसी की पत्तियाँ डालकर यह भाग लिया जाता है कि वस्तुएँ विकृत नहीं हुई हैं।
औषधि-प्रयोगः
त्वचारोगः सफेद दाग या कोढ़ः इसके अनेक रोगियों को श्यामा तुलसी के उपचार से अदभुत लाभ हुआ है। उनके दाग कम हो गये हैं और त्वचा सामान्य हो गयी है।
दाद-खाजः तुलसी की पत्तियों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद-खाज मिट जाती है।
स्मरणशक्ति, बल और तेजः रोज सुबह खाली पेट पानी के साथ तुलसी की 5-7 पत्तियों के सेवन से स्मरणशक्ति, बल और तेज बढ़ता है।
थकान, मंदाग्निः तुलसी के काढ़े में थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से स्फूर्ति आती है, थकावट दूर होती है और जठराग्नि प्रदीप्त रहती है।
मोटापा, थकानः तुलसी की पत्तियों का दही या छाछ के साथ सेवन करने से वचन कम होता है, शरीर की चरबी घटती है और शरीर सुडौल बनता है। साथ ही थकान मिटती है। दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है और रक्तकणों में वृद्धि होती है।
उलटीः तुलसी और अदरक का रस शहद के साथ लेने से उलटी में लाभ होता है।
पेट दर्दः पेट में दर्द होने पर तुलसी की ताजी पत्तियों का 10 ग्राम रस पियें।
मूर्च्छा, हिचकीः तुलसी के रस में नमक मिलाकर कुछ बूँद नाक में डालने से मूर्च्छा दूर होती है, हिचकियाँ भी शांत होती हैं।
सौन्दर्यः तुलसी की सूखी पत्तियों का चूर्ण पाउडर की तरह चेहरे पर रगड़ने से चेहरे की कांति बढ़ती है और चेहरा सुंदर दिखता है।
मुँहासों के लिए भी तुलसी बहुत उपयोगी है।
ताँबे के बर्तन में नींबू के रस को 24 घंटे तक रख दीजिए। फिर उसमें उतनी ही मात्रा में श्यामा तुलसी का रस तथा काली कलौंजी का रस मिलाइये। इस मिश्रण को धूप में सुखाकर गाढ़ा कीजिये। इस लेप को चेहरे पर लगाइये। धीरे-धीरे चेहरा स्वच्छ, चमकदार, सुंदर, तेजस्वी बनेगा व कांति बढ़ेगी।
मलेरियाः काली मिर्च, तुलसी और गुड़ का काढ़ा बनाकर उसमें नींबू का रस मिलाकर, दिन में 2-2 या 3-3 घंटे के अंतर से गर्म-गर्म पियें, फिर कम्बल ओढ़कर सो जायें।
श्लेष्मक ज्वर(इन्फलुएन्जा)- इसके रोगी को तुलसी का 20 ग्राम रस, अदरक का 10 ग्राम रस तथा शहद मिलाकर दें।
प्रसव-पीड़ाः तुलसी की जड़ें कमर में बाँधने से स्त्रियों को, विशेषतः गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव-वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।
तुलसी के रस का पान करने से भी प्रसव-वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।
श्वेत प्रदरः तुलसी की पत्तियों का रस 20 ग्राम, चावल के मॉड के साथ सेवन करने से तथा दूध-भात या घी-भात का पथ्य लेने से श्वेत प्रदर रोग दूर होता है।
शिशुरोगः दाँत निकालने से पहले यदि बच्चों को तुलसी का रस पिलाया जाय तो उनके दाँत सरलता से निकलते हैं।
दाँत निकलते समय बच्चे को दस्त लगे तो तुलसी की पत्तियों का चूर्ण अनार के शरबत के साथ पिलाने से लाभ होता है।
बच्चों की सूखी खाँसी में तुलसी की कोंपलें व अदरक समान मात्रा में लें। इन्हें पीसकर शहद के साथ चटायें।
स्वप्नदोषः तुलसी के मूल के छोटे-छोटे टुकड़े करके पान में सुपारी की तरह खाने से स्वप्न दोष की शिकायत दूर होती है।
तुलसी की पत्तियों के साथ थोड़ी इलायची तथा 10 ग्राम सुधामूली (सालम मिश्री) का काढ़ा नियमित रूप से लेने से स्वप्नदोष में लाभ होता है। यह एक पौष्टिक द्रव्य के रूप में भी काम करता है।
1 ग्राम तुलसी के बीज मिट्टी के पात्र में रात को पानी में भिगोकर सुबह सेवन करने से स्वप्नदोष में लाभ होता है।
नपुंसकत्व, दुर्बलताः तुलसी के बीजों को कूटकर व गुड़ में मिलाकर मटर के बराबर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम 2-3 गोली खाकर ऊपर से गाय का दूध पीने से नपुंसकत्व दूर होता है, वीर्य में वृद्धि होती है, नसों में शक्ति आती है और पाचनशक्ति में सुधार होता है। हर प्रकार से हताश पुरुष भी सशक्त बन जाता है।
बाल झड़ना, सफेद बालः तुलसी का चूर्ण व सूखे आँवले का चूर्ण रात को पानी में भिगोकर रख दीजिये। प्रातः काल उसे छानकर उसी पानी से सिर धोने से बालों का झड़ना रुक जाता है तथा सफेद बाल भी काले हो सकते हैं।
दमाः दमे के रोग में तुलसी का पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, मंजरी और बीज), आक के पीले पत्ते, अडूसा के पत्ते, भंग तथा थूहर की डाली 5-5 ग्राम मात्रा में लेकर उनका बारीक चूर्ण बनायें। उसमें थोड़ा नमक डालिये। फिर इस मिश्रण को मिट्टी के एक बर्तन में भरकर ऊपर से कपड़-मिट्टी (कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर वह कपड़ा लपेटना) करके बंद कर दीजिये। केवल जंगली लकड़ी की आग में उसे एक प्रहर (3 घंटे) तक तपाइये। ठंडा होने पर उसे अच्छी तरह पीसें और छानकर रख दें। दमें की शिकायत होने पर प्रतिदिन 5 ग्राम चूर्ण शहद के साथ 3 बार लें।
कैंसरः कैंसर जैसे कष्टप्रद रोग में 10 ग्राम तुलसी के रस में 20-30 ग्राम ताजा वही अथवा 2-3 चम्मच शहद मिलाकर देने से बहुत लाभ होता है। इस अनुभूत प्रयोग से कई रूग्ण से बीमारी से रोगमुक्त हो गये हैं।
विषविकारः किसी भी प्रकार के विषविकार में तुलसी का रस पीने से लाभ होता है।
20 तुलसी पत्र एवं 10 काली मिर्च एक साथ पीसकर आधे से दो घंटे के अंतर से बार-बार पिलाने से सर्पविष उतर जाता है। तुलसी का रस लगाने से जहरीले कीड़े, ततैया, मच्छर का विष उतर जाता है।
जल जाने परः तुलसी के रस व नारियल के तेल को उबालकर, ठंडा होने पर जले भाग पर लगायें। इससे जलन शांत होती है तथा फफोले व घाव शीघ्र मिट जाते हैं।
विद्युत का झटकाः विद्युत के तार का स्पर्श हो जाने पर या वर्षा ऋतु में बिजली गिरने के कारण यदि झटका लगा हो दो रोगी के चेहरे और माथे पर तुलसी का रस मलें। इससे रोगी की मूर्च्छा दूर हो जाती है। साथ में 10 ग्राम तुलसी का रस पिलाने से भी बहुत लाभ होता है।
हृदयपुष्टिः शीत ऋतु में तुलसी की 5-7 पत्तियों में 3-4 काली मिर्च के दाने तथा 3-4 बादाम मिलाकर, पीस लें। इसका सेवन करने से हृदय को पुष्टि प्राप्त होती है।
अनेक रोगों की एक दवाः तुलसी के 25-30 पत्ते लेकर ऐसे खरल में अथवा सिलबट्टे पर पीसें, जिस पर कोई मसाला न पीसा गया हो। इस पिसे हुए तुलसी के गूदे में 5-10 ग्राम मीठा दही मिलाकर अथवा 5-7 ग्राम शहद मिलाकर 30-40 दिन सेवन करने से गठिया का दर्द, सर्दी, जुकाम, खाँसी (यदि रोग पुराना हो तो भी), गुर्दे की पथरी, सफेद दाग या कोढ़, शरीर का मोटापा, वृद्धावस्था की दुर्बलता, पेचिश, अम्लता, मंदाग्नि, कब्ज, गैस, दिमागी कमजोरी, स्मरणशक्ति का अभाव, पुराने से पुराना सिरदर्द, बुखार, रक्तचाप (उच्च या निम्न), हृदयरोग, श्वास रोग, शरीर की झुर्रियाँ, कैंसर आदि रोग दूर हो जाते हैं।
इस प्रकार तुलसी बहुत ही महत्त्वपूर्ण वनस्पति है। हमें चाहिए कि हम लोग तुलसी का पूर्ण लाभ लें। अपने घर के ऐसे स्थान में जहाँ सूर्य का प्रकाश निरंतर उपलब्ध हो, तुलसी के पौधे अवश्य लगायें। तुलसी के पौधे लगाने अथवा बीजारोपण के लिए वर्षाकाल का समय उपयुक्त माना गया है। अतः वर्षाकाल में अपने घरों में तुलसी के पौधे लगाकर अपने घर को प्रदूषण तथा अनेक प्रकार की बीमारियों से बचायें तथा पास-पड़ौस के लोगों को भी इस कार्य हेतु प्रोत्साहित करें।
नोटः अपने निकटवर्ती संत श्री आसारामजी आश्रम से पर्यावरण की शुद्धि हेतु तुलसी के पौधे के बीज निःशुल्क प्राप्त किये जा सकते हैं।
सावधानीः उष्ण प्रकृतिवाले, रक्तस्राव व दाहवाले व्यक्तियों को ग्रीष्म और शरद ऋतु में तुलसी का सेवन नहीं करना चाहिए। तुलसी के सेवन के डेढ़ दो घंटे बाद तक दूध नहीं लेना चाहिए। अर्श-मस्से के रोगियों को तुलसी और काली मिर्च का उपयोग एक साथ नहीं करना चाहिए क्योंकि इनकी तासीर गर्म होती है।
सूर्योदय के पश्चात ही तुलसी के क्यारे में जल डालें एवं पत्ते तोड़ें।
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