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सर्वांगासन(Srwangasn)

Posted by Hari Om ~ Tuesday, 1 January 2013


सर्वांगासन(Srwangasn)



भूमि पर सोकर शरीर को ऊपर उठाया जाता है इसलिए इसको सर्वांगासन कहते हैं।
ध्यान विशुद्धाख्य चक्र में, श्वास रेचक, पूरक और दीर्घ।

विधिः भूमि पर बिछे हुए आसन पर चित्त होकर लेट जाएँ। श्वास को बाहर निकाल कर अर्थात रेचक करके कमर तक के दोनों पैर सीधे और परस्पर लगे हुए रखकर ऊपर उठाएं। फिर पीठ का भाग भी ऊपर उठाएं। दोनों हाथों से कमर को आधार दें। हाथ की कुहनियाँ भूमि से लगे रहें। गरदन और कन्धे के बल पूरा शरीर ऊपर की और सीधा खड़ा कर दें। ठोडी छाती के साथ चिपक जाए। दोनों पैर आकाश की ओर रहें। दृष्टी दोनों पैरों के अंगूठों की ओर रहे। अथवा आँखें बन्द करके चित्तवृत्ति को कण्ठप्रदेश में विशुद्धाख्य चक्र में स्थिर करें। पूरक करके श्वास को दीर्घ, सामान्य चलने दें।
इस आसन का अभ्य़ास दृढ़ होने के बाद दोनों पैरों को आगे पीछे झुकाते हुए, जमीन को लगाते हुए अन्य आसन भी हो सकते हैं। सर्वांगासन की स्थिति में दोनों पैरों को जाँघों पर लगाकर पद्मासन भी किया जा सकता है।


प्रारम्भ में तीन से पाँच मिनट तक यह आसन करें। अभ्यासी तीन घण्टे तक इस आसन का समय बढ़ा सकते हैं।

लाभः सर्वांगासन के नित्य अभ्यास से जठराग्नि तेज होती है। साधक को अपनी रूचि के अनुसार भोजन की मात्रा बढ़ानी चाहिए। सर्वांगासन के अभ्यास से शरीर की त्वचा लटकने नहीं लगती तथा शरीर में झुर्रियाँ नहीं पड़तीं। बाल सफेद होकर गिरते नहीं। हर रोज़ एक प्रहर तक सर्वांगासन का अभ्यास करने से मृत्यु पर विजय मिलती है, शरीर में सामर्थ्य बढ़ता है। तीनों दोषों का शमन होता है। वीर्य की ऊर्ध्वगति होकर अन्तःकरण शुद्ध होता है। मेधाशक्ति बढ़ती है, चिर यौवन की प्राप्ति होती है।
इस आसन से थायराइड नामक अन्तःग्रन्थि की शक्ति बढ़ती है। वहाँ रक्तसंचार तीव्र गति से होने लगता है, इससे उसे पोषण मिलता है। थायराइड के रोगी को इस आसन से अदभुत लाभ होता है। लिवर और प्लीहा के रोग दूर होते हैं। स्मरणशक्ति बढ़ती है। मुख पर से मुँहासे एवं अन्य दाग दूर होकर मुख तेजस्वी बनता है। जठर एवं नीचे उतरी हुई आँतें अपने मूल स्थान पर स्थिर होती हैं। पुरूषातन ग्रन्थि पर सर्वांगासन का अच्छा प्रभाव पड़ता है। स्वप्नदोष दूर होता है। मानसिक बौद्धिक प्रवृत्ति करने वालों को तथा विशेषकर विद्यार्थियों को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
मन्दाग्नि, अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, थोड़े दिनों का अपेन्डीसाइटिस और साधारण गाँठ, अंगविकार, असमय आया हुआ वृद्धत्व, दमा, कफ, चमड़ी के रोग, रक्तदोष, स्त्रियों को मासिक धर्म की अनियमितता एवं दर्द, मासिक न आना अथवा अधिक आना इत्यादि रोगों में इस आसन से लाभ होता है। नेत्र और मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। उनके रोग दूर होते हैं।
थायराइड के अति विकासवाले, खूब कमजोर हृदयवाले और अत्यधिक चर्बीवाले लोगों को किसी अनुभवी की सलाह लेकर ही सर्वांगासन करना चाहिए।
शीर्षासन करने से जो लाभ होता है वे सब लाभ सर्वांगासन और पादपश्चिमोत्तानसन करने से मिल जाते हैं। शीर्षासन में गफलत होने से जो हानि होती है वैसी हानि होने की संभावना सर्वांगासन और पादपश्चिमोत्तानासन में नहीं है।






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