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अपानवायु मुद्रा

Posted by Hari Om ~ Tuesday, 15 January 2013


अपानवायु मुद्रा

अपानवायु मुद्राः अँगूठे के पास वाली पहली उँगली
को अँगूठे के मूल में लगाकर अँगूठे के अग्रभाग की
बीच की दोनों उँगलियों के अग्रभाग के साथ मिलाकर
सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी
रखें। इस स्थिति को अपानवायु मुद्रा कहते हैं। अगर
किसी को हृदयघात आये या हृदय में अचानक
पीड़ा होने लगे तब तुरन्त ही यह मुद्रा करने से
हृदयघात को भी रोका जा सकता है।
लाभः हृदयरोगों जैसे कि हृदय की घबराहट,
हृदय की तीव्र या मंद गति, हृदय का धीरे-धीरे
बैठ जाना आदि में थोड़े समय में लाभ होता है।
पेट की गैस, मेद की वृद्धि एवं हृदय तथा पूरे
शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है।
 आवश्यकतानुसार हर रोज़ 20 से 30 मिनट तक इस
 मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है। 








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