LATEST NEWS

गोरक्षासन या भद्रासन(Bhadrasana)

Posted by Hari Om ~ Thursday, 3 January 2013


गोरक्षासन या भद्रासन(Bhadrasana)

ध्यान मूलाधार चक्र में। श्वास प्रथम स्थिति में पूरक और दूसरी स्थिति में कुम्भक।
विधिः बिछे हुए आसन पर बैठ जायें। दाहिना पैर घुटने से मोड़कर एड़ी सीवन (उपस्थ और गुदा के मध्य) के दाहिने भाग में और बायाँ पैर मोड़कर एड़ी सीवन के बायें भाग में इस प्रकार रखें कि दोनों पैर के तलवे एक दूसरे को लगकर रहें।
रेचक करके दोनों हाथ सामने ज़मीन पर टेककर शरीर को ऊपर उठायें और दोनों पैर के पंजों पर इस प्रकार बैठें कि शरीर का वजन एड़ी के मध्य भाग में आये। अंगुलियों वाला भाग छूटा रहे। अब पूरक करते-करते दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखें। अन्त में कुम्भक करके ठोड़ी छाती पर दबायें। चित्तवृत्ति मूलाधार चक्र में और दृष्टि भी उसी दिशा में लगायें। क्रमशः अभ्यास बढ़ाकर दसके मिनट तक यह आसन करें।

लाभः इस आसन के अभ्यास से पैर के सब सन्धि स्थान तथा स्नायु सशक्त बनते हैं। वायु ऊर्ध्वगामी होकर जठराग्नि प्रदीप्त करता है। दिनों दिन जड़ता नष्ट होने लगती है। शरीर पतला होता है। संकल्पबल बढ़ता है। बुद्धि तीक्षण होती है। कल्पनाशक्ति का विकास होता है। प्राणापान की एकता होती है। नादोत्पत्ति होने लगती है। बिन्दु स्थिर होकर चित्त की चंचलता कम होती है। आहार का संपूर्णतया पाचन हो जाने के कारण मलमूत्र अल्प होने लगते हैं। शरीर शुद्धि होने लगती है। तन में स्फूर्ति एवं मन में प्रसन्नता अपने आप प्रकट होती है। स्नायु सुदृढ़ बनते हैं। धातुक्षय, गैस, मधुप्रमेह, स्वप्नदोष, अजीर्ण, कमर का दर्द, गर्दन की दुर्बलता, बन्धकोष, मन्दाग्नि, सिरदर्द, क्षय, हृदयरोग, अनिद्रा, दमा, मूर्छारोग, बवासीर, आंत्रपुच्छ, पाण्डुरोग, जलोदर, भगन्दर, कोढ़, उल्टी, हिचकी, अतिसार, आँव, उदररोग, नेत्रविकार आदि असंख्य रोगों में इस आसन से लाभ होते हैं।






Related Posts

No comments:

Leave a Reply

Labels

Advertisement
Advertisement

teaser

teaser

mediabar

Páginas

Powered by Blogger.

Link list 3

Blog Archive

Archives

Followers

Blog Archive

Search This Blog