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योगमुद्रासन

Posted by Hari Om ~ Wednesday, 2 January 2013



योगमुद्रासन


योगाभ्यास में यह मुद्रा अति महत्त्वपूर्ण है, इससे इसका नाम योगमुद्रासन रखा गया है।
ध्यान मणिपुर चक्र में। श्वास रेचक, कुम्भक और पूरक।
विधिः पद्मासन लगाकर दोनों हाथों को पीठ के पीछे ले जायें। बायें हाथ से दाहिने हाथ की कलाई पकड़ें। दोनों हाथों को खींचकर कमर तथा रीढ़ के मिलन स्थान पर ले जायें। अब रेचक करके कुम्भक करें। श्वास को रोककर शरीर को आगे झुकाकर भूमि पर टेक दें। फिर धीरे-धीरे सिर को उठाकर शरीर को पुनः सीधा कर दें और पूरक करें। प्रारंभ में यह आसन कठिन लगे तो सुखासन या सिद्धासन में बैठकर करें। पूर्ण लाभ तो पद्मासन में बैठकर करने से ही होता है। पाचनतन्त्र के अंगों की स्थानभ्रष्टता ठीक करने के लिए यदि यह आसन करते हों तो केवल पाँच-दस सेकण्ड तक ही करें, एक बैठक में तीन से पाँच बार। सामान्यतः यह आसन तीन मिनट तक करना चाहिए। आध्यात्मिक उद्देश्य से योगमुद्रासन करते हों तो समय की अवधि रूचि और शक्ति के अनुसार बढ़ायें।
लाभः योगमुद्रासन भली प्रकार सिद्ध होता है तब कुण्डलिनि शक्ति जागृत होती है। पेट की गैस की बीमारी दूर होती है। पेट एवं आँतों की सब शिकायतें दूर होती हैं। कलेजा, फेफड़े, आदि यथा स्थान रहते हैं। हृदय मजबूत बनता है। रक्त के विकार दूर होते हैं। कुष्ठ और यौनविकार नष्ट होते हैं। पेट बड़ा हो तो अन्दर दब जाता है। शरीर मजबूत बनता है। मानसिक शक्ति बढ़ती है।
योगमुद्रासन से उदरपटल सशक्त बनता है। पेट के अंगों को अपने स्थान टिके रहने में सहायता मिलती है। नाड़ीतंत्र और खास करके कमर के नाड़ी मण्डल को बल मिलता है।
इस आसन में ,सामन्यतः जहाँ एड़ियाँ लगती हैं वहाँ कब्ज के अंग होते हैं। उन पर दबाव पड़ने से आँतों में उत्तेजना आती है। पुराना कब्ज दूर होता है। अंगों की स्थानभ्रष्टता के कारण होने वाला कब्ज भी, अंग अपने स्थान में पुनः यथावत स्थित हो जाने से नष्ट हो जाता है। धातु की दुर्बलता में योगमुद्रासन खूब लाभदायक है।





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