शरीर शोधन-कायाकल्प
शरीर शोधन-कायाकल्प
यह चालीस दिन का कल्प है। पू्ज्यपाद आसारामजी बापू ने यह प्रयोग किया हुआ है। इससे शरीर सुडौल, स्वस्थ और फुर्तीला बनता है। रक्त में नये-नये कण बनते हैं, शरीर के कोषों की शक्ति बढ़ती है। मन-बुद्धि में चमत्कारिक लाभ होते हैं।
विधिः अगले दिन पपीता, सेव आदि फल उचित मात्रा में लें। अथवा मुनक्का 50 ग्राम दस घण्टे पहले भिगो दें। उनको उबालकर बीज निकाल दें। मुनक्का खा लें और पानी पी लें।
प्रातःकाल उठकर संकल्प करें कि इस कल्प के दौरान निश्चित किये हुए कार्यक्रम के अनुसार ही रहँगा।
शौच-स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर सुबह 8 बजे 200 या 250 ग्राम गाय का उबला हुआ गुनगुना दूध पियें। पौन घण्टा पूर्ण आराम करें। बाद में फिर से दूध पियें। शारीरिक श्रम कम से कम करें। ॐ सोsहं हंसः इस मंत्र का मानसिक जप करें। कभी श्वास को निहारें। बस साक्षीभाव।
मनोराज्य चलता हो तो ॐ ... जोर-जोर से जप करें।
इस प्रकार शाम तक जितना दूध हजम कर सकें उतना दूध दो से तीन लिटर पियें। 40 दिन तक केवल दुग्धाहार के बाद 41वें दिन मूँग का उबला हुआ पानी, मोसम्मी का रस आदि लें। रात्रि को अधिक मूँगवाली हल्की खिचड़ी खायें। इस प्रकार शरीर-शोधन-कायाकल्प की पूर्णाहूति करें।
यदि बुद्धि तीक्षण बनानी हो, स्मरणशक्ति बढ़ानी हो, तो कल्प के दौरान ॐ ऐं नमः इस मंत्र का जप करें। सूर्य को अर्घ्य दें।
इस कल्प में दूध के सिवाय अन्य कोई खुराक लेना मना है। चाय, तम्बाकू आदि व्यसन निषिद्ध हैं। स्त्रियों के संग से दूर रहना तथा ब्रह्मचर्य का पालन अत्यन्त आवश्यक है।
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