शिव स्वरोदय(भाग-5)
शिव स्वरोदय(भाग-5)
यत्रांगे वहते वायुस्तदंगस्यकरस्तलाम्
सुप्तोत्थितो मुखं स्पृष्ट्वा लभते वांछितं फलम् ॥ (89)
अन्वय - सुप्तोत्थित: अंगे वायु: वहते तदगस्य कर: तलाम् मुखं स्पृष्ट्वा वांछितं फलं लभते।
भावार्थ - प्रात: काल उठकर यह जाँच करनी चाहिए कि स्वर किस नासिका से प्रवाहित हो रहा है। इसके बाद जिस नासिका से स्वर चल रहा हो उस हाथ के करतल (हथेली) को देखना चाहिए और उसी से चेहरे का वही भाग स्पर्श करना चाहिए। अर्थात् यदि बायीं नासिका से साँस चल रही हो तो बाँए हाथ की हथेली ऊपर से नीचे तक देखनी चाहिए और उससे चेहरे का बायाँ हिस्सा स्पर्श करना
चाहिए। यदि दाहिना स्वर चल रहा हो तो दाहिने हाथ से स्पर्श करना चाहिए। ऐसा करने से वांछित फल मिलता है। वैसे स्वर-विज्ञानियों ने यह भी सलाह दी है कि विस्तर से उतरते समय (प्रात:काल) उसी ओर का पैर जमीन पर सबसे पहले रखना चाहिए जिस नाक से साँस चल रही हो।
English Translation:- A person who needs desired results out of his performance or in his work, he should check his breath first on the bed in morning at the time of arising. If he finds the breath flowing through left nostril, he should look at left palm and should touch left side of his face with the same palm. In case right nostril is flowing, he should do the same with right hand and right side of the face. The wise, who are well versed in Swara-Science suggests that the same foot should be kept on the ground while leaving bed in the morning.
परदत्ते तथा ग्राह्ये गृहन्निर्गमनेऽपि च।
यदंगे वहते नाड़ी ग्राहयं तेन करांघ्रिणा॥ (90)
अन्वय - यह श्लोक अन्विति क्रम में है, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है। भावार्थ - दान देते समय अथवा कुछ भी देते समय या लेते समय उसी हाथ का प्रयोग करना चाहिए जिस नासिका से स्वर प्रवाहित हो रहा हो। इसी प्रकार यात्रा शुरू करते उसी ओर के पैर को घर से पहले निकालना चाहिए जिस नासिका से स्वर प्रवाहित हो रहा हो। ।
English Translation:- While giving or taking any thing we should use the same hand through which nostril the breath is flowing. In the same manner while undertaking any journey, we should get out of our residence taking step with the same leg.
न हानि: कलहो नैव कंटकैर्नापि भिद्यते।
निवर्तते सुखी चैव सर्वोपद्रव वर्जित:॥ (91)
अन्वय - यह श्लोक की लगभग अन्वित क्रम में है। इसलिए अन्वय नहीं दिया जा रहा है। भावार्थ - उपर्युक्त श्लोक में बताए गए तरीके को जो अपनाते हैं, उन्हें न कभी नुकसान होता है और न ही अवांछित व्यक्तियों से कष्ट होता है। बल्कि इससे उन्हें सुख और शान्ति मिलती है।
English Translation:- Those who follow the instructions mentioned in the previous verse, they are neither in loss ever nor get troubled by unwanted people. In other words, they get pleasure and peace.
गुरु- बंधु- नृपामात्येष्वन्येषु शुभदायिनी।
पूर्णांगे खलु कर्त्तव्या कार्यसिद्धिर्मन:स्थिता॥ (92)
अन्वय - यह श्लोक भी अन्तिम क्रम में है। भावार्थ - जब अपने गुरु, राजा, मित्र या मंत्री का सम्मान करना हो तो उन्हें अपने सक्रिय स्वर की ही ओर रखना चाहिए।
English Translation:- When we desire to honour our Master (Guru), King, Friend or minister, we should see that they are on the same side through which nostril the breath is flowing.
अरिचौराधर्मधर्मा अन्येषां वादिनिग्रह:।
कर्त्तव्या: खलु रिक्तायां जयलाभसुखार्थिभि:॥ (93)
अन्वय - जयलाभसुखार्थिभि: अरि-चौराधर्मधर्मा अन्वेषां वादिनिग्रह: रिक्तायां खलु कर्तव्या:।
भावार्थ - जय, लाभ और सुख चाहने वाले को अपने शत्रु, चोर, साहूकार, अभियोग लगाने वाले को रोकने हेतु उन्हें अपने निष्क्रिय स्वर की ओर, अर्थात जिस नासिका से स्वर प्रवाहित न हो उस ओर रखना चाहिए।
English Translation:- Those who are desirous of victory, gain and pleasure, they should see that their enemies, thieves, moneylenders or accusers are on the side through which nostril breath is not flowing.
दूरदेशे विधातव्यं गमनं तु हिमद्युतौ।
अभ्यर्णदेशे दीप्ते तु कारणाविति केचन॥ (94)
अन्वय - दूरदेशे गमनं हिमद्युतौ केचन अभ्यर्णदेशे दीप्ते कारणौ इति विधातव्यम्। भावार्थ - लम्बी यात्रा का प्रारम्भ बाएँ स्वर के प्रवाह काल में करना चाहिए और कम दूरी की यात्रा दाहिने स्वर के प्रवाह काल में करनी चाहिए।
English Translation:- In case of undertaking long journey we should select the time when left nostril breath is flowing and for short journey right nostril.
यत्किंचित्पूर्वमुद्दिष्टं लाभादि समरागम:।
तत्सर्वं पूर्णनाडीषु जायते निर्विकल्पकं। (95)
अन्वय - अन्वय की आवश्यकता नहीं है। भावार्थ - उपर्युक्त फल मनुष्य को तभी मिलते हैं, जब वह ऊपर बताए गए तरीकों को अपनाता है। ऐसा करने पर निश्चित सफलता मिलती है।
English Translation:- The desired results as stated in the previous six verses are achieved or obtained only when the instructions said therein are followed.
पिछले अंक में सक्रिय और निष्क्रिय स्वरों में किए कार्यों के परिणामों चर्चा की गयी थी। वही क्रमशः दिया जा रहा है।
शून्यनाड्या विपर्यस्तं यत्पूर्वं प्रतिपादितम्।
जायते नान्यथा चैव यथा सर्वज्ञभाषितम्।।96।।
अन्वय – शून्यनाड्या विपर्यस्तं यत्पूर्वं प्रतिपादितं (तत्सर्वं भवति) न अन्यथा जायते यथा सर्वज्ञभाषितम्। भावार्थ – उपर्युक्त श्लोकों में बताए गई विधियों के विपरीत अर्थात सक्रिय स्वर के विपरीत यदि हम निष्क्रिय स्वर में कार्य करते हैं, तो निश्चित रूप से विपरीत और अवांछित परिणाम होते हैं।
English translation – As mentioned in previous verses, if any work is undertaken during the period of breathing side, which is not suitable for the same, the result will be opposite, i.e. desired result is not obtained. This is the established view of wise-men.
व्यवहारे खलोच्चाटे द्वेषिविद्यादिवञ्चके।
कुपितस्वामिचौराद्ये पूर्णस्थाः स्युर्भयङ्कराः।।97।।
अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में ही है, अतएव अन्वय नहीं दिया जा रहा है। भावार्थ – यदि किसी के सक्रिय स्वर की ओर कोई दुष्ट या धोखेबाज, शत्रु, ठग, नाराज स्वामी अथवा चोर दिखाई पड़ जाय, तो समझना चाहिये कि उसे खतरा है अर्थात वह सुरक्षित नहीं है।
English Translation - If any bad man, cheater, boss or master who is not pleased or thieves appear on the side through which nostril breath is not flowing, that situation is not said to be safe.
दूराध्वनि शुभश्चन्द्रो निर्विघ्नोSभीष्टसिद्धिदः।
प्रवेशकार्यहेतौ च सूर्यनाडीप्रशस्यते।98।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम है। भावार्थ – लम्बी यात्रा का आरम्भ करते समय फलदायक है और किसी कार्यवश किसी के घर में प्रवेश करते समय सूर्य स्वर का सक्रिय होना फलप्रद होता है।
English translation – At the time of starting a long journey if breath is flowing through left nostril, the journey undertaken will be successful in all respect. But if someone is to visit anybody for any work, he should enter his house when breath flows through right nostril for favourable results.
अयोग्ये योग्यता नाड्या योग्यस्थानेप्ययोग्यता।
कार्यानुबन्धनो जीवो यथा रुद्रस्तथाचरेत्।99।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है। भावार्थ – जिस व्यक्ति को स्वरोदय विज्ञान की जानकारी नहीं है और वह स्वर के विपरीत अपने कार्य करता है, तो वह उस कार्य के बंधन में बँधा रहता है। इस लिए सदा स्वर के अनुकूल कार्य करना चाहिए।
English Translation – A person who is not aware of Swaroday science and he does the things in opposite breath flow, he develops attachment to the work and its results. It is therefore better to do the work in accordance with the favourable breath flow.
चन्द्रचारे विषहते सूर्यो बलिवशं नयेत्।
सुषुम्नायां भवेन्मोक्ष एको देवस्त्रिधा स्थितः।।100।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में होने के कारण इसका अन्वय नहीं दिया जा रहा है। भावार्थ - चन्द्र स्वर के प्रवाह काल में विष से दूर रहना चाहिए। सूर्य स्वर के प्रवाह काल में किसी व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। शून्य स्वर अर्थात सुषुम्ना नाड़ी के प्रवाह काल में मोक्ष-कारक कार्य करना चाहिए। इस प्रकार एक ही स्वर तीन अलग-अलग रूपों में काम करता है।
English Translation – We should keep ourselves away from poisonous things during the flow of breath through left nostril. Flow of breath through right nostril is suitable for having control on others. The period of breathing through right nostril is suitable for spiritual practices. Thus the very same breath works in three different ways.
शुभान्यशुभकार्याणि क्रियन्तेSहर्निशं यदा।
तदा कार्यानुरोधेन कार्यं नाडीप्रचालनम्।।101।।
अन्वय – यदा अहर्निशं शुभान्यशुभकार्याणि क्रियन्ते तदा कार्यानुरोधेन नाडीप्रचालनं कार्यम्। भावार्थ – जब दिन अथवा रात के समय किसी व्यक्ति को शुभ-अशुभ कोई भी कार्य करना हो, तो उसे आवश्यकता के अनुसार अपनी नाडी को बदल लेना चाहिए।
English Translation – While doing any auspicious or inauspicious work during the day or night, a person should change the side of breath according to need.
शिवस्वरोदय के इस अंक में इडा नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जाने वाले कार्यों का विवरण दिया जा रहा है।
समझने की सुविधा की दृष्टि से 102 से 105 तक के श्लोकों को भावार्थ के लिए एक साथ लिया जा रहा है।
स्थिरकर्मण्यलङ्कारे दूराध्वगमने तथा।
आश्रमे धर्मप्रासादे वस्तूनां सङ्ग्रहेSपि च।।102।।
वापीकूपताडागादिप्रतिष्ठास्तम्भदेवयोः।
यात्रादाने विवाहे च वस्त्रालङ्कारभूषणे।।103।।
शान्तिके पौष्टिके चैव दिव्यौषधिरसायने।
स्वस्वामीदर्शने मित्रे वाणिज्ये कणसंग्रहे।।104।।
गृहप्रवेशे सेवायां कृषौ च बीजवपने।
शुभकर्मणि संघे च निर्गमे च शुभः शशि।।105।।
अन्वय – स्थिर-कर्मणि शुभः शशी निर्गमे (यथा) अलङ्कारे दूराध्वगमने आश्रमे धर्मप्रासादे वस्तूनां संग्रहे अपि च वापीकूपताडागादिप्रतिष्ठास्तम्भदेवयोः यात्रा दाने विवाहे च वस्त्रालङ्कारभूषणे शान्तिके पौष्टिके चैव दिव्यौषधिरसायने स्वस्वमीदर्शने मित्रे वाणिज्ये कण-संग्रहे गृहप्रवेशे सेवायां कृषौ बीजवपने शुभकर्मणि संघौ च। भावार्थ – स्थायी परिणाम देनेवाले जितने भी कार्य हैं, उन्हें इडा अर्थात बाँए स्वर के प्रवाह-काल में प्रारम्भ करना चाहिए, जैसे-सोने के आभूषण खरीदना, लम्बी यात्रा करना, आश्रम-मन्दिर आदि का निर्माण करना, वस्तुओं का संग्रह करना, कुँआ या तालाब खुदवाना, भवन आदि का शिलान्यास करना, तीर्थ-यात्रा करना, विवाह करना या विवाह तय करना, वस्त्र तथा आभूषण खरीदना, ऐसे कार्य जो शान्ति-पूर्वक योग्य हों उन्हें करना, पोषक पदार्थ ग्रहण करना, औषधि सेवन करना, अपने मालिक से मुलाकात करना, मैत्री करना, व्यापार करना, अन्न संग्रह करना, गृह-प्रवेश करना, सेवा करना, खेती करना, बीज बोना, शुभ कार्यों में लगे लोगों के दल से मिलना आदि।
English Translation – Any work, which has long-lasting results in our life, should be started during flow of breath through the left nostril, such as – procurement of golden ornaments, long journey, construction of Ashram or temple or church or mosque, collection of articles, sinking of well or pond, laying down stone of a house, going on pilgrimage, marriage or fixing of marriage, purchase of cloth or ornaments, doing any peaceful work, use of nutritive eatables and medicine, visit to master, friendship, business, Griha-pravesh, collection of grains, any service other than routine duty, agriculture, seed sowing, plantation, to visit the group of people who are involve in auspicious work etc.
अगले सात श्लोकों अर्थात 106 से 112 तक के श्लोकों को अर्थ समझने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक साथ लिया जा रहा है।
विद्यारम्भादिकार्येषु बान्धवानां च दर्शने।
जन्ममोक्षे च धर्मे च दीक्षायां मंत्रसाधने।।106।।
कालविज्ञानसूत्रे तु चतुष्पादगृहागमे।
कालव्याधिचिकित्सायां स्वामीसंबोधने तथा।।107।।
गजाश्वरोहणे धन्वि गजाश्वानां च बंधने।
परोपकारणे चैव निधीनां स्थापने तथा।।108।।
गीतवाद्यादिनृत्यादौ नृत्यशास्त्रविचारणे।
पुरग्रामनिवेशे च तिलकक्षेत्रधारणे।।109।।
आर्तिशोकविषादे च ज्वरिते मूर्छितेSपि वा।
स्वजनस्वामीसम्बन्धे अन्नादेर्दारुसङ्ग्रहे।।110।।
स्त्रीणां दन्तादिभूषायां वृष्टरागमने तथा।
गुरुपूजाविषादीनां चालने च वरानने।।111।।
इडायां सिद्धदं प्रोक्तं योगाभ्यासादिकर्म च।
तत्रापि वर्जयेद्वायुं तेज आकाशमेव च।।112।।
अन्वय – ये सभी श्लोक लगभग अन्वित क्रम में हैं, अतएव इनका अन्वय नहीं दिया जा रहा है। भावार्थ – उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कार्य भी चन्द्र नाड़ी के प्रवाह- काल में प्रारम्भ करना चाहिए-
अक्षरारम्भ, मित्र-दर्शन, जन्म, मोक्ष, धर्म, मंत्र-दीक्षा लेना, मंत्र जप या साधना करना, काल-विज्ञान (ज्योतिष) का अभ्यास करना, नये मवेशी को घर लाना, असाध्य रोगों की चिकित्सा, मालिक से संवाद, हाथी और घोड़े की सवारी या उन्हें घुड़साल में बाँधना, धनुर्विद्या का अभ्यास, परोपकार करना, धन की सुरक्षा करना, नृत्य, गायन, अभिनय, संगीत और कला आदि का अध्ययन करना, नगर या गाँव में प्रवेश, तिलक लगाना, जमीन खरीदना, दुखी और निराश लोगों या ज्वर से पीड़ित या मूर्छित व्यक्ति की सहायता करना अपने सम्बन्धियों या स्वामी सम्पर्क करना, ईंधन तथा अन्न संग्रह करना, वर्षा के आगमन के समय स्त्रियों के लिए आभूषण आदि खरीदना, गुरु की पूजा, विष-बाधा को दूर करने के उपाय, योगाभ्यास आदि कार्य इडा नाड़ी के प्रवाह-काल में सिद्धिप्रद होते हैं। लेकिन इडा नाड़ी में वायु, अग्नि अथवा आकाश तत्त्व सक्रिय हो वैसा नहीं होता, अर्थात इन तत्त्वों के इडा में प्रवाहित हो तो उक्त कार्य को न करना ही श्रेयस्कर है।
English Translation – In addition to the above, following work should also be started during the flow of breath through left nostril –
Akshararambh (start to learn writing of letters by children for the first time), visiting of a friend, initiation in Mantra, birth, liberation from bondage of birth and death, religious work, recitation of Mantra, Sadhana, study of astrology, newly purchased domestic animals, treatment of chronic diseases, conversation with master, riding, to tie horses and elephants in stable,, archery, donation to needy, safe-guarding of wealth; while starting to learn dancing, singing, music and other arts, entering any city or village, to apply Tilak, purchase of land; to help the people who are helpless or suffering from fever or who became faint, to contact with relatives or master (also bosses), collection of fire-wood, even fuel and grains; purchase of ornaments for ladies just before start of rainy season, honour of Guru, effort for subsiding poisonous effect in our body, Yogic practices.
All above good works are suggested to start at the time flow of breath through right nostril for desired results, but it is better to avoid it if air, fire or ether Tattva is active in left nostril breath.
सर्वकार्याणि सिद्धयन्ति दिवारात्रिगतान्यपि।
सर्वेषु शुभकार्येषु चन्द्रचारः प्रशास्यते।।113।
अन्वय – दिवारात्रिगतान्यपि सर्वकार्याणि सिद्धयन्ति, (अतएव) सर्वेषु शुभकार्येषु चन्द्रचारः प्रशास्यते। भावार्थ – दिन हो अथवा रात इडा के प्रवाह-काल में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते हैं, अतएव सभी कार्यों के लिए चन्द्र अर्थात इडा नाड़ी का ही चुनाव करना चाहिए।
English Translation – Whether it is day or night start of all good woks stated in previous verses gives always good results. Therefore we should select always left nostril breath for starting of all good works.
पिंगला नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्य
पिछले अंक में इडा नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्यों के विवरण दिए गए थे। इस अंक में पिंगला नाड़ी के प्रवाह-काल में किए जानेवाले कार्यों के विवरण प्रस्तुत हैं। इस संदर्भ में यहाँ आठ श्लोक दिए गए हैं। समझने की सुविधा की दृष्टि से इनके भावार्थ एक साथ दिए जा रहे हैं। कठिन-क्रूर-विद्यानां पठने पाठने तथा।
स्त्रीसङ्ग-वेश्यागमने महानौकाधिरोहणे।।114।।
भ्रष्टकार्ये सुरापाने वीरमन्त्राद्युपासने।
विह्वलोध्वंसदेशादौ विषदाने च वैरिणाम्115।।
शास्त्राभ्यासे च गमने मृगयापशुविक्रये।
इष्टिकाकाष्ठपाषाणरत्नघर्षणे दारुणे।।116।।
गत्यभ्यासे यन्त्रतन्त्रे दुर्गपर्वतारोहणे।
द्यूते चौर्ये गजाश्वादिरथसाधनवाहने।।117।।
व्यायामे मारणोच्चाटे षट्कर्मादिसाधने।
यक्षिणी-यक्ष-वेताल-विष-भूतादिनिग्रहे।।118।।
खरोष्ट्रमहीषादीनां गजाश्वरोहणे तथा।
नदीजलौघतरणे भेषजे लिपिलेखने।।119।।
मारणे मोहने स्तम्भे विद्वेषोच्चाटने वशे।
प्रेरणे कर्षणे क्षोभे दाने च क्रय-विक्रये।।120।।
प्रेताकर्षण-विद्वेष-शत्रुनिग्रहणेSपि च।
खड्गहस्ते वैरियुद्धे भोगे वा राजदर्शने।
भोज्ये स्नाने व्यवहारे दीप्तकार्ये रविः शुभः।।121।।
भावार्थ – पिंगला नाड़ी के प्रवाह के समय निम्नलिखत कार्य प्रारम्भ करने के सुझाव दिए गए हैं जिससे सफलता मिले-
कठिन तथा क्रूर विद्याओं का अध्ययन और अध्यापन, स्त्री-समागम, वेश्या-गमन, जलयान की सवारी, भ्रष्ट कार्य, सुरापान, वीर-मंत्रों आदि की साधना, शत्रु पर विजय या उसे विष देना, शास्त्रों का अध्ययन, शिकार करना, पशुओं का विक्रय, ईंट तथा खपरे बनाना, पत्थर तोड़ना, लकड़ी काटना, रत्न-घर्षण, दारुण कार्य करना, गति का अभ्यास, यंत्र-तंत्र की उपासना, किले या पहाड़ पर चढ़ना, जुआ खेलना, चोरी करना, हाथी या घोड़े की सवारी करना या उन्हें नियंत्रित करना, व्यायाम करना; मारण, उच्चाटन, मोहन (वशीकरण), स्तम्भन, शान्ति और विद्वेषण तांत्रिक षट्कर्म की साधना करना, यक्ष-यक्षिणी, वेताल आदि सूक्ष्म जगत के जीवों से सम्बन्धित साधना या सम्पर्क करना, विषधारी जन्तुओं को नियंत्रित करना; गधे, घोड़े, ऊँट, हाथी अथवा भैसे आदि की सवारी, नदी या समुद्र को तैरकर पार करना, औषधि का सेवन, पत्राचार करना, प्रेरित करना, कृषि कार्य, किसी को क्षुब्ध करना, दान लेना-देना, क्रय-विक्रय, प्रेतात्मओं का आह्वान, शत्रु को नियंत्रित करना या उससे युद्ध करना, तलवार धारण करना, इन्द्रिय सुख का भोग, राज-दर्शन, दावत खाना, स्नान, कठोर कार्य और व्यवहार करना आदि में सूर्य-प्रवाह शुभ होता है।114-121।।
English Translation – Following actions have been suggested to do during the flow of breath through right nostril-
All sciences or practices pertaining to Vamamargi Tantra or need vigorous physical labour are to be taught or learnt, sexual contact by men (for women left nostril flow has been suggested), to have contact with prostitutes, journey by boat, ship etc, depraved act, to take liquor, practice of Veera-Mantras, Victory over an enemy or to poison an enemy, study of sciences, hunting, sale or purchase of animals, preparation of bricks and tiles, stone breaking, wood cutting, grinding of gems, horrible or difficult work, practice of running or likewise work, practice of Yantra-Tantra, climbing up forts, hills or mountain, gambling, stealing, riding of horses, elephants, camel, ass or buffalo, physical exercises, practice Vamamargi Tantric Shat-Karma (Marana-to hurt or kill someone, Uchchatana-to disturb someone mentally, Stambhana-to immobilize or gender inert, Mohana or Vashikarana-to influence the minds of others, Shanti-tantric practices leading to peace or happiness and Vidveshana-to create anomisity between two or more people), practicing for having contact with beings of subtle world like Yksha, Yakshini, ghosts etc, controlling of poisonous creatures, to cross river or sea by swimming, use of medicine, correspondence, to inspire someone, agricultural work, to disturb somebody, to donate or take donation, procurement or disposal, summoning ghosts, battle against enemies to control them, to have a sword, enjoyment of pleasure of senses, to visit king or boss, to have feast any hard work or unpleasant behavior.
भुक्तमार्गेण मन्दाग्नौ स्त्रीणां वश्यादिकर्मणि।
शयनं सूर्यवाहेन कर्त्तव्यं सर्वदा बुधैः।।122।।
अन्वय – सर्वदा बुधैः भुक्तमार्गेण मन्दाग्नौ स्त्रीणां वश्यकर्मणि शयनं सूर्यवाहेन कर्तव्यम्।122।
भावार्थ – भूख जाग्रत करना, किसी स्त्री को नियंत्रित करना और सोना आदि कार्य बुद्धिमान लोग सफल होने के लिए सूर्य नाड़ी के प्रवाह काल में करते हैं।
English Translation – To increase appetite, to have control of woman, sleeping etc are to be done during the flow of breath through right nostril as suggested by wise persons.
क्रूराणि सर्वकर्माणि चराणि विविधानि च।
तानि सिद्धयन्ति सूर्येण नात्र कार्या विचारणा।।123।।
अन्वय – क्रूराणि सर्वकर्मणि विविधानि चराणि च तानि सूर्येण सिद्धयन्ति, अत्र न विचारणा कर्या।123।
भावार्थ – सभी प्रकार के क्रूर कार्य और विविध चर कार्य (अस्थायी प्रकृति वाले कार्य) सूर्य नाड़ी के प्रवाह काल में करने पर सिद्ध होते हैं, किसी प्रकार का इसमें संशय नहीं।
English Translation – All kinds of harsh acts and different work having temporary results started during the flow of breath through right nostril give desired results undoubtedly.
******
No comments: