आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में वास्तु
आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में वास्तु
हमारा सौर मंडल विद्युत-चुंबकीय तरंगों से भरा हुआ है। पृथ्वी इसी सौरमंडल का एक उपग्रह है। पृथ्वी भी एक बड़ा चुंबक ही है। अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। इस तरह पैदा होनेवाली विद्युत-चुम्बकीय तरंगों से पूरा वातावरण आच्छादित है। हमारे शरीर के विभिन्न कार्य भी विद्युत-चुम्बकीय तरंगों द्वारा ही हृदय, मस्तिष्क व इन्द्रियों द्वारा होते हैं। इस विद्युत शक्ति के माध्यम से ही जीवनशक्ति या चेतना शक्ति काम करती है।
अतएव विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र मानव जीवन के लिए आवश्यक तत्त्व है जिससे यह जीवन क्रियावान है। वास्तु विज्ञान जीवन तंत्र और पर्यावरण के बीच स्थापित सम्बन्ध को सही रास्ते पर चलाने में एक सेतु है जो उचित मार्गदर्शन कर रास्ता दिखाता है। डी.सी. (डायरेक्ट करंट के रूप में) विद्युत के आविष्कार के बाद से ही ए.सी. (Alternating Current) 110V, 220V, 440V, 11000V हजारों मेगावोल्ट, माइक्रोवेव, रेडियो तरंगे आदि की खोज हुई। यह तरंगे द्वारा एवं बिना तार के भी अदृश्य रूप से वातावरण में हमारे शरीर के चारों तरफ रहती हैं, प्रभाव डालती हैं, जिसे जानने व मापने के लिए वैज्ञानिक दिन-प्रतिदिन नयी-नयी खोजों में व्यस्त हैं। पशुओं∕पक्षियों पर भी इनके प्रभाव के अध्ययन हुए। मानव शरीर पर हुई खोजों से पता चला कि उच्चदाब विद्यित लाइन के पास रहने वालों में कैंसर रोग की बढ़ोतरी सामान्य से दुगनी होती है। उच्चदाब की विद्युत लाइन पर काम करने वालों में सामान्य से 13 गुना ज्यादा दिमागी कैन्सर की संभावना रहती है। टी.वी. से निकलने वाली विद्युत-चुम्बकीय तरंगें आँखों के नुकसान पहुँचाती हैं व इन तरंगों का परिमाण 3 फीट के क्षेत्र में 3 मिलीगास से अधिक होता है। पलंग लगे साइड बिजली स्विच∕साइड लैम्प से तरंगे हमारे शरीर तक पहुँचकर एक तरह का तनाव पैदा करती है जिसके कारण कई तरह की बिमारीयाँ पैदा होती हैं। मोबाइल, कार्डलेस फोन का ज्यादा उपयोग करने वालों का अनुभव है उनके कान व सिर में दर्द होने लगता है। वैज्ञानिक खोज से पता चला है कि मोबाइल फोन के पास लाने से मस्तिष्क में विद्युत-चुम्बकीय तरंगें लाखों गुना बढ़ जाती हैं। इसी तरह कम्पयूटर सबसे ज्यादा तरंगे पीछे की तरफ से प्रसारित करता है। इसलिए कम्पयूटर की पीठ हमारी तरफ नहीं होनी चाहिए। इसी तरह मोबाइल टावर्स के आसपास का क्षेत्र भी हानिकारक आवृत्ति की तरंगों से भरपूर रहता है वहाँ ज्यादा समय तक रहना स्वास्थ्य के लिए अति नुकसान दायक हैं।
विद्युत के स्विच बोर्ड व मरकरी टयूबलाइट आदि के आसपास छिपकलियाँ दिखाई देती हैं। छिपकली ऋणात्मक ऊर्जा का प्राणी है इसलिए ऋणात्मक ऊर्जा प्राप्त कर जीवनयापन करती है। मनुष्य, गाय, घोड़ा, बकरी, कुत्ता, भेड़ आदि धनात्मक ऊर्जा पुंज वाले प्राणी हैं अतः इनके सम्पर्क में रहना और ऋणात्मक ऊर्जा वाले तत्त्वों से दूर रहना मानव शरीर को स्वस्थ व सम्बल बनाये रखने के लिए जरूरी है। छिपकली, दीमक, साँप, बिल्ली, शेर आदि ऋणात्मक ऊर्जा पुंज का प्राणि है और ऋणात्मक ऊर्जा क्षेत्रों में निवास बनाते व रहना पसंद करते हैं।
वैज्ञानिकों को शोध से पता चला है कि वास्तु शास्त्र के सिद्धान्तों के पालन से वास्तु अनुकूल वातावरण व उनके रहवासियों में वांछित ऊर्जा स्तर होता है जो उनके स्वास्थ्य व विकास में सहायक होता है। वास्तु अनुकूल व प्रतिकूल वातावरण व वहाँ के निवासियों के आभामंडल चित्रण तथा एक्यप्रेशर बिन्दुओं के परीक्षण से यह निष्कर्ष प्राप्त हुए। खोज में पाया गया है कि एक ही तरह के वास्तु विरूद्ध निर्माण में रहने से वहाँ के निवासियों में एक ही तरह के एक्यूप्रेशर बिन्दु मिलते हैं। वास्तु अनुकूल वातावरण बनाने से वातावरण तथा वहाँ के निवासियों के आभामंडल में वांछित बदलाव आता है। इस पर आगे खोज जारी है तथा इन यंत्रों का वास्तु निरीक्षण में प्रयोग शुरू भी हो गया है।
इसी तरह विद्युत-चुम्बकीय व अन्य अलफा, बीटा, गामा रेडियो धर्मी तरंगों से बचाव व जानकारी हेतु परम्परागत वास्तु के साथ-साथ नये वैज्ञानिक यंत्र डॉ. गास मीटर, एक्मोपोल, जीवनपूर्ति ऊर्जा परीक्षक (Biofeed back energy Tester) लेचर एंटीना, रेड-अलर्ट, उच्च व नीची आवृत्ति (Low and high frequency) की तरंगों व रेडियो धर्मी तरंगों के मापक यंत्र आदि का उपयोग भी वास्तु सुधार में उल्लेखनीय पाया गया है जो परम्परागत वास्तु के आधुनिक प्रगति के दुष्परिणामों से बचाव के लिए हमें सावधान कर सकता है।
वास्तु सिद्धान्तों का प्रयोग अब नये क्षेत्रों जैसे इन्टरनेट में वेब डिजाइन, लेटरपेड, विजिटिंग कार्ड डिज़ाइन, 'खेती में वास्तु' में भी सफलतापूर्वक किया गया है। पुरातन काल में भी फर्नीचर, शयन, विमान (वाहन) में वास्तु के उपयोग का वर्णन शास्त्रों में है। नयी खोजों व प्रयोगों से वास्तु सुधार में गौमूत्र की उपयोगिता पर भी प्रयोग किये गये हैं व पुरातन ज्ञान की पुष्टि हुई है।
संक्षिप्त में हमें वातावरण में व्याप्त आधुनिक प्रगति के साथ उत्पन्न प्रदूषण से बचने के लिए निम्न सावधानियाँ लेनी चाहिए।
नयी जमीन खरीदते समय ध्यान रखें कि जमीन उच्च दाब की विद्युत लाइन से कम-से-कम 60 मीटर (200 फीट) दूर हो ताकि विद्युत तरंगों के मानव शरीर पर सतत दुष्प्रभाव से बचाव हो सके।
कम्प्यूटर के सामने से कम से कम ढाई फीट दूर व पीछे से 3 फीट दूर रहे तथा मानीटर से साढ़े तीन फीट दूर रहना ही श्रेयस्कर है।
शयन कक्ष में विद्युत उपकरणों को सोने से पहले बन्द कर उनके प्लग साकेट से बाहर निकाल देना चाहिए। शयन स्थल व कार्य स्थल से सात फीट के अन्दर किसी तरह का विद्युत स्विच व लैम्प आदि न लगायें।
मोबाइल फोन का उपयोग हैन्ड फ्री सेट∕इय़रफोन से ही करें तथा मोबाइल फोन हृदय के पास न रखें।
शेविंग मशीन, हेयर ड्रायर, माइक्रोवेव ओवन आदि शक्तिशाली तरंगे उत्पन्न करते हैं इनका उपयोग कम-से-कम होना चाहिए।
इलेक्ट्रानिक घड़ी आदि शरीर से 2.5 फीट दूर रखें। सर के पास रखकर न सोयें।
नई जमीन खरीदते समय विकिरण तरंगों (अल्फा, बीटा, गामा आदि) की जाँच करवा लें ताकि यदि यह सहनीय स्तर से अधिक हो तो बचाव हो सके। प्रारम्भिक प्रयोगों से पता चला है कि गौमूत्र से उत्पादित (फिनाइल आदि) के पौंछे से विकिरण की तरंगों से बचाव हो जाता है। इसी उद्देश्य से तहत संभवतः हमारे ऋषि-मुनियों ने गौमूत्र व गोबर से पोछा लगाने की प्रथा प्रचलित की थी जो अब धार्मिक कार्यों के अलावा लुप्त प्रायः हो गई है।
नये भवन के निर्माण में विद्युत संबंधित लाइनें व उपकरण इस तरह लगायें जायें जिससे मान शरीर पर उनका प्रभाव न पड़े अथवा कम से कम पड़े।
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