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आसनों की प्रकिया में आने वाले कुछ शब्दों की समझ

Posted by Hari Om ~ Tuesday, 1 January 2013



आसनों की प्रकिया में आने वाले कुछ शब्दों की समझ



रेचक का अर्थ है श्वास छोड़ना।
पूरक का अर्थ है श्वास भीतर लेना।
कुम्भक का अर्थ है श्वास को भीतर या बाहर रोक देना। श्वास लेकर भीतर रोकने की प्रक्रिया को आन्तर या आभ्यान्तर कुम्भक कहते हैं। श्वास को बाहर निकालकर फिर वापस न लेकर श्वास बाहर ही रोक देने की क्रिया को बहिर्कुम्भक कहते हैं।
चक्रः चक्र, आध्यात्मिक शक्तियों के केन्द्र हैं। स्थूल शरीर में चर्मचक्षु से वे दिखते नहीं, क्योंकि वे हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित होते हैं। फिर भी स्थूल शरीर के ज्ञानतन्तु,
स्नायु केन्द्र के साथ उनकी समानता जोड़कर उनका निर्देश किया जाता है। हमारे शरीर में ऐसे सात चक्र मुख्य हैं। 1. मूलाधारः गुदा के पास मेरूदण्ड के आखिरी मनके के पास होता है। 2. स्वाधिष्ठानः जननेन्द्रिय से ऊपर और नाभि से नीचे के भाग में होता है। 3. मणिपुरः नाभिकेन्द्र में होता है। 4. अनाहतः हृदय में होता है। 5. विशुद्धः कण्ठ में होता है। 6. आज्ञाचक्रः दो भौहों के बीच में होता है। 7. सहस्रारः मस्तिष्क के ऊपर के भाग में जहाँ चोटी रखी जाती है, वहाँ होता है।
नाड़ीः प्राण वहन करने वाली बारीक नलिकाओं को नाड़ी कहते हैं। उनकी संख्या 72000 बतायी जाती है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन मुख्य हैं। उनमें भी सुषुम्ना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

आवश्यक निर्देश

1.      भोजन के छः घण्टे बाद, दूध पीने के दो घण्टे बाद या बिल्कुल खाली पेट ही आसन करें।
2.      शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर आसन किये जाये तो अच्छा है।
3.      श्वास मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चाहिए।
4.      गरम कम्बल, टाट या ऐसा ही कुछ बिछाकर आसन करें। खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाये आसन कभी न करें, जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्युत-प्रवाह नष्ट न हो जायें।
5.      आसन करते समय शरीर के साथ ज़बरदस्ती न करें। आसन कसरत नहीं है। अतः धैर्यपूर्वक आसन करें।
6.      आसन करने के बाद ठंड में या तेज हवा में न निकलें। स्नान करना हो तो थोड़ी देर बाद करें।
7.      आसन करते समय शरीर पर कम से कम वस्त्र और ढीले होने चाहिए।
8.      आसन करते-करते और मध्यान्तर में और अंत में शवासन करके, शिथिलीकरण के द्वारा शरीर के तंग बने स्नायुओं को आराम दें।
9.      आसन के बाद मूत्रत्याग अवश्य करें जिससे एकत्रित दूषित तत्त्व बाहर निकल जायें।
10.  आसन करते समय आसन में बताए हुए चक्रों पर ध्यान करने से और मानसिक जप करने से अधिक लाभ होता है।
11.  आसन के बाद थोड़ा ताजा जल पीना लाभदायक है. ऑक्सिजन और हाइड्रोजन में विभाजित होकर सन्धि-स्थानों का मल निकालने में जल बहुत आवश्यक होता है।
12.  स्त्रियों को चाहिए कि गर्भावस्था में तथा मासिक धर्म की अवधि में वे कोई भी आसन कभी न करें।
13.  स्वास्थ्य के आकांक्षी हर व्यक्ति को पाँच-छः तुलसी के पत्ते प्रातः चबाकर पानी पीना चाहिए। इससे स्मरणशक्ति बढ़ती है, एसीडीटी एवं अन्य रोगों में लाभ होता है।













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