शीत ऋतुचर्या
शीत ऋतुचर्या
शीत ऋतु के अंतर्गत हेमंत और शिशिर ऋतु आते हैं। यह ऋतु विसर्गकाल अर्थात् दक्षिणायन का अंतकाल कहलाती है। इस काल में चन्द्रमा की शक्ति सूर्य की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती है। इसलिए इस ऋतु में औषधियाँ, वृक्ष, पृथ्वी की पौष्टिकता में भरपूर वृद्धि होती है व जीव जंतु भी पुष्ट होते हैं। इस ऋतु में शरीर में कफ का संचय होता है तथा पित्तदोष का नाश होता है।
शीत ऋतु में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तीव्र रहती है, अतः पाचन शक्ति प्रबल रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि हमारे शरीर की त्वचा पर ठंडी हवा और हवा और ठंडे वातावरण का प्रभाव बारंबार पड़ते रहने से शरीर के अंदर की उष्णता बाहर नहीं निकल पाती और अंदर ही अंदर इकट्ठी होकर जठराग्नि को प्रबल करती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्षभर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। इस ऋतु में एक स्वस्थ व्यक्ति को अपनी सेहत की तंदरूस्ती के लिए किस प्रकार का आहार लेना चाहिए ?शरीर की रक्षा कैसे करनी चाहिए ?आइये, उसे हम जानें-
शीत ऋतु में खारा तथा मधु रसप्रधान आहार लेना चाहिए।
पचने में भारी, पौष्टिकता से भरपूर, गरम व स्निग्ध प्रकृति के घी से बने पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए।
वर्षभर शरीर की स्वास्थ्य-रक्षा हेतु शक्ति का भंडार एकत्रित करने के लिए उड़दपाक, सालमपाक, सोंठपाक जैसे वाजीकारक पदार्थों अथवा च्यवनप्राश आदि का उपयोग करना चाहिए।
मौसमी फल व शाक, दूध, रबड़ी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, खोपरा, मेथी, पीपर, सूखा मेवा तथा चरबी बढ़ाने वाले अन्य पौष्टिक पदार्थ इस ऋतु में सेवन योग्य माने जाते हैं। प्रातः सेवन हेतु रात को भिगोये हुए कच्चे चने (खूब चबा-चबाकर खाये), मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि कम खर्च में सेवन किये जाने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं।
इस ऋतु में बर्फ अथवा बर्फ का फ्रिज का पानी, रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधान द्रव्यों, वातकारक और बासी पदार्थ, एवं जो पदार्थ आपकी प्रकृति के अनुकूल नहीं हों, उनका सेवन न करें। शीत प्रकृति के पदार्थों का अति सेवन न करें। हलका भोजन भी निषिद्ध है।
इन दिनों में खटाई का अधिक प्रयोग न करें, जिससे कफ का प्रयोग न हो और खाँसी, श्वास (दमा), नजला, जुकाम आदि व्याधियाँ न हों। ताजा दही, छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं। भूख को मारना या समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। क्योंकि चरक संहिता का कहना है कि शीतकाल में अग्नि के प्रबल होने पर उसके बल के अनुसार पौष्टिक और भारी आहारूपी ईंधन नहीं मिलने पर यह बढ़ी हुई अग्नि शरीर में उत्पन्न धातु (रस) को जलाने लगती है और वात कुपित होने लगता है। अतः उपवास भी अधिक नहीं करने चाहिए।
शरीर को ठंडी हवा के सम्पर्क में अधिक देर तक न आने दें।
प्रतिदिन प्रातःकाल दौड़ लगाना, शुद्ध वायुसेवन हेतु भ्रमण, शरीर की तेलमालिश, व्यायाम, कसरत व योगासन करने चाहिए।
जिनकी तासीर ठंडी हो, वे इस ऋतु में गुनगुने गर्म जल से स्नान करें। अधिक गर्म जल का प्रयोग न करें। हाथ-पैर धोने में भी यदि गुनगुने पानी का प्रयोग किया जाय तो हितकर होगा।
शरीर की चंपी करवाना एवं यदि कुश्ती अथवा अन्य कसरतें आती हों तो उन्हें करना हितावह है।
तेल मालिश के बाद शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना हितकारी होता है।
कमरे एवं शरीर को थोड़ा गर्म रखें। सूती, मोटे तथा ऊनी वस्त्र इस मौसम में लाभकारी होते हैं।
प्रातःकाल सूर्य की किरणों का सेवन करें। पैर ठंडे न हों इस हेतु जूते पहनें। बिस्तर, कुर्सी अथवा बैठने के स्थान पर कम्बल, चटाई, प्लास्टिक अथवा टाट की बोरी बिछाकर ही बैठें। सूती कपड़े पर न बैठें।
स्कूटर जैसे दुपहिया खुले वाहनों द्वारा इन दिनों लम्बा सफर न करते हुए बस, रेल, कार-जैसे वाहनों से ही सफर करने का प्रयास करें।
दशमूलारिष्ट, लोहासन, अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश अथवा अश्वगंधावलेह जैसी देशी व आयुर्वेदिक औषधियों का इस काल में सेवन करने से वर्ष भर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है।
हेमंत ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण समभाग मिलाकर और शिशिर ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण समभाग पीपर (पिप्पली या पीपल) चूर्ण के साथ प्रातः सूर्योदय के समय अवश्य पानी में घोलकर पी जायें। दोनों मिलाकर 5 ग्राम लेना पर्याप्त है। इसे पानी में घोलकर पी जायें। यह उत्तम रसायन है। लहसुन की 3-4 कलियाँ या तो ऐसे ही निगल जाया करें या चबाकर खा लें या दूध में उबालकर खा लिया करें।
गरिष्ठ खाद्य पदार्थों के सेवन से पहले अदरक के टुकड़ों पर नमक व नींबू का रस डालकर खाने से जठराग्नि अधिक प्रबल होती है।
भोजन पचाने के लिए भोजन के बाद निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ बायाँ हाथ पेट पर दक्षिणावर्त (दक्षिण दिशा की ओर घुमाव देते हुए) घुमा लेना चाहिए, जिससे भोजन शीघ्रता से पच सके।
अगस्त्यं कुंभकर्णच शनिं च बडवानलम्।
आहारपरिपाकार्थ स्मरेद भीमं च पंचमम्।।
इस ऋतु में सर्दी, खाँसी, जुकाम या कभी बुखार की संभावना भी बनी रहती है। ऐसा होने पर निम्निलिखित उपाय करने चाहिए।
सर्दी-जुकाम एवं खाँसी मिटाने के उपायः सुबह तथा रात्रि को सोते वक्त हल्दी-नमकवाले ताजे भुने हुए एक मुट्ठी चने खायें, किंतु खाने के बाद कोई भी पेय पदार्थ, यहाँ तक कि पानी न पियें। भोजन में घी, दूध, शक्कर, गुड़ एवं खटाई तथा फलों का सेवन बन्द कर दें। सर्दी-खाँसी वाले स्थायी मरीजों के लिए यह सस्ता प्रयोग है।
भोजन के पश्चात हल्दी-नमकवाली भुनी हुई अजवायन को मुखवास के रुप में नित्य सेवन करने से सर्दी-खाँसी मिट जाती है। अजवाइन का धुआँ लेना चाहिए। अजवाइन की पोटली से छाती की सेंक करनी चाहिए। मिठाई, खटाई एवं चिकनाईयुक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
प्रतिदिन मुखवास के रूप में दालचीनी का प्रयोग करें। दो ग्राम सोंठ, आधा ग्राम दालचीनी तथा 5 ग्राम पुराना गुड़ – इन तीनों को कटोरी में गरम करके रोज ताजा खाने से सर्दी मिटती है।
सर्दी-जुकाम अधिक होने पर नाक बंद हो जाती है, सिर भी भारी हो जाता है और बहुत बेचैनी होती है। ऐसे समय में एक तपेली में पानी को खूब गरम करके उसमें थोड़ा दर्दशामक मलहम, नीलगिरि का तेल अथवा कपूर डालकर सिर व तपेली ढँक जाय ऐसा कोई मोटा कपड़ा या तौलिया ओढ़कर गरम पानी की भाप लें। ऐसा करने से कुछ ही मिनटों में लाभ होगा एवं सर्दी से राहत मिलेगी।
मिश्री के बारीक चूर्ण को नसवार की तरह नाक से सूँघें।
स्थायी सर्दी-जुकाम एवं खाँसी के रोगी को 2 ग्राम सोंठ, 10 से 12 ग्राम गुड़ एवं थोड़ा घी एक कटोरी में लेकर उतनी देर तक गर्म करना चाहिए जब तक कि गुड़ पिघल न जाय। फिर सबको मिलाकर सुबह खाली पेट रोज गरम-गरम खा ले। भोजन में मीठी, खट्टी, चिकनी एवं गरिष्ठ वस्तुएँ न ले। रोज सादे पानी की जगह पर सोंठ की डली डालकर उबाला गया पानी ही गुनगुना-गर्म हो जाय तब पियें। इस प्रयोग से रोग मिट जायेगा।
सर्दी के कारण होता सिरदर्द, छाती का दर्द एवं बेचैनी में सोंठ का चूर्ण पानी में डालकर गर्म करके पीड़ावाले स्थान पर थोड़ा लेप करें। सोंठ की डली डालकर उबाला गया पानी पियें। सोंठ का चूर्ण शहद में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा रोज चाटें। मूँग, बाजरी, मेथी एवं लहसुन का प्रयोग भोजन में करें। इससे भी सर्दी मिटती है।
हल्दी को अंगारों पर डालकर उससी धूनी लें तथा हल्दी के चूर्ण को दूध में डालकर पियें। इससे लाभ होता है।
वायु की सूखी खाँसी में अथवा पित्तजन्य खाँसी में, खून गिरने में, छाती की कमजोरी के दर्द में, मानसिक दुर्बलता में तथा नपुंसकता के रोग में गेहूँ के आटे में गुड़ अथवा शक्कर एवं घी डालकर बनाया गया हलुआ विशेष हितकर है। वायु की खाँसी में गुड़ के हलुए में सोंठ डालें। खून गिरने के रोग में मिश्री-घी में हलुआ बनाकर किशमिश डालें। मानसिक दौर्बल्य में उपयोग करने के लिए हलुए में बादाम डालें। कफजन्य खाँसी तथा श्वास के दर्द में गुनगुने पानी के साथ अजवाइन खिलाने से लाभ होता है, कफोत्पत्ति बंद होती है। पीपरामूल, सोंठ एवं बहेड़ादल का चूर्ण बनाकर शहद में मिलाकर प्रतिदिन खाने से सर्दी कफ की खाँसी मिटती है।
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