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शिव स्वरोदय(भाग-8)

Posted by Hari Om ~ Friday, 15 February 2013


शिव स्वरोदय(भाग-8)


पृथिव्यां बहुपादाः स्युर्द्विपदस्तोयवायुतः।
तेजस्येव चतुस्पादो नभसा पादवर्जितः।।181।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है, इसलिए अन्वय नहीं दिया जा रहा है।
भावार्थ जब स्वर में पृथ्वी तत्त्व सक्रिय हो तो अनेक कदम चलिए। जल तत्त्व और वायु तत्त्व के प्रवाह काल में दो कदम चलें तथा अग्नि तत्त्व के प्रवाहित होने पर चार कदम। किन्तु जब आकाश तत्त्व स्वर में प्रधान हो, अर्थात सक्रिय हो, तो एकदम न चलें।
English Translation - When Prithivi Tattva is active in the breath we may walk as much as we need, but when other tattvas, i.e. Jala Tattva, Vayu Tattva and Agni Tattva, are active, we may walk a little. During the appearance of Akash Tattva we avoid walking.
कुजोवह्निः रविः पृथ्वीसौरिरापः प्रकीर्तितः।
वायुस्थानास्थितो राहुर्दक्षरन्ध्रः प्रवाहकः।।182।।
अन्वय यह स्वर भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ - सूर्य स्वर (दाहिने स्वर) में अग्नि तत्त्व के प्रवाहकाल में मंगल, पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह काल में सूर्य (ग्रह), जल तत्त्व के प्रवाह में शनि तथा वायु तत्त्व के प्रवाह काल में राहु का निवास कहा गया है।
English Translation – Here in two verses locations of Grahas in breath have been indicated. When breath flows through right nostril and Agni Tattva appears therein, this is the place of Mars and when Prithivi Tattva appears, it is Sun. Saturn is placed in Jala Tattva, whereas Rahu in Vayu Tattva.
जलं चन्द्रो बुधः पृथ्वी गुरुर्वातः सितोSनलः।
वामनाड्यां स्थिताः सर्वे सर्वकार्येषु निश्चिताः।।183।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में ही है।
भावार्थ पर बाएँ स्वर (इडा नाड़ी) में जल तत्त्व के प्रवाह काल में चन्द्र ग्रह, पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह में बुध, वायु तत्त्व के प्रवाह में गुरु और अग्नि तत्त्व में शुक्र का निवास मना जाता है। उपर्युक्त अवधि में उक्त सभी ग्रह सभी कार्यों के लिए शुभ माने गये हैं। एक बात ध्यान देने की है कि यहाँ केतु का स्थान नहीं बताया गया है, पता नहीं क्यों।


English Translation – Similarly, when breath flows through left nostril and Jala Tattva appears, the Moon is placed there. If Prithivi Tattva appears therein, this the place of Murcury. Appearance of Vayu Tattva in the breath is indicated as place of Jupiter, whereas Venus is placed in Agni Tattva. The period of these Grahas according to the above position is always auspicious. Here why Ketu has been ignored is unknown.
पृथ्वीबुधो जलादिन्दुः शुक्रो वह्निरविकुजः।
वायुराहुः शनी व्योमगुरुरेव प्रकीर्तितः।।184।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ इस श्लोक में भी उपर्युक्त श्लोक की ही भाँति कुछ बातें बताई गयी हैं। इस श्लोक के अनुसार पृथ्वी तत्त्व बुध के, जल तत्त्व चन्द्र और शुक्र के, अग्नि तत्त्व सूर्य और मंगल के, वायु तत्त्व राहु और शनि के तथा आकाश तत्त्व गुरु के महत्व को निरूपित करते हैं। अर्थात इन तत्त्वों के अनुसार काम करनेवाले को यश मिलता है।
English Translation - Here in this verse also certain important informations regarding Grahas in the breath have been provided. According to this verse, Mercury in Prithivi Tattva, Moon and Venus in Jala Tattva, Sun and Mars in Agni Tattva, Rahu and Saturn in Vayu Tattva and Jupiter in Akash Tattva are always auspicious for the work. It brings name and fame to the person who works according to these Tattvas.
प्रश्वासप्रश्न आदित्ये यदि राहुर्गतोSनिले।
तदासौ चलितो ज्ञेयः स्थानांतरमपेक्षते।।185।।
आयाति वारुणे तत्त्वे तत्रैवास्ति शुभं क्षितौ।
प्रवासी पवनेSन्यत्र मृत्युरेवानले भवेत्।।186।।
अन्वय ये दोनों श्लोक भी अन्वित क्रम में हैं। अतएव इनका भी अन्वय नहीं दिया जा रहा है। साथ ही दोनों श्लोकों में प्रश्नों से सम्बन्धित हैं। इसलिए इनका अर्थ एक साथ किया जा रहा है।

भावार्थ यदि कोई आदमी कहीं चला गया हो और दूसरा व्यक्ति उसके बारे में प्रश्न करता है, तो स्वर और उनमें तत्त्वों के उदय के अनुसार परिणाम को जानकर सही उत्तर दिया जा सकता है। भगवान शिव कहते हैं कि दाहिना स्वर चल रहा हो, स्वर में राहु हो (अर्थात पिंगला नाड़ी में वायु तत्त्व सक्रिय हो) और प्रश्नकर्त्ता दाहिनी ओर हो, तो इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति जहाँ गया था वहाँ से किसी दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान कर गया है। यदि प्रश्न काल में जल तत्त्व (शनि हो) सक्रिय हो, तो समझना चाहिए कि गया हुआ आदमी वापस आ जाएगा। यदि पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता के समय प्रश्न पूछा गया हो, तो समझना चाहिए कि गया हुआ व्यक्ति जहाँ भी है कुशल से है। पर प्रश्न के समय यदि स्वर में अग्नि तत्त्व (मंगल हो) का उदय हो, तो समझना चाहिए कि वह आदमी अब मर चुका है।
English Translation – If someone asks about a person who has gone some where, correct answer can be given by observing appearance of Tattvas in the breath. Suppose the questioner is in the right side, the breath is flowing through the right nostril and Rahu is placed therein (appearance of Vayu Tattva), it indicates that the person has left his earlier place and has moved some other place. In case, at the time of query Jala Tattva (Saturn’s place) is active, it indicates arrival of the individual. Appearance of Prithivi Tattva at the time of query indicates that the person is well wherever he is. But any query made during the period of Agni Tattva, it is understood that the person is no more.
*******
पार्थिवे मूलविज्ञानं शुभं कार्यं जले तथा।
आग्नेयं धातुविज्ञानं व्योम्नि शून्यं विनिर्दिशेत्।।187।।
अन्वय श्लोक लगभग अन्वित क्रम में है। अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।
भावार्थ पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह काल में दुनियादारी के कामों में पूरी सफलता मिलती है, जल तत्त्व का प्रवाह काल शुभ कार्यों में सफलता देता है, अग्नि तत्त्व धातु सम्बन्धी कार्यों के लिए उत्तम है और आकाश तत्त्व चिन्ता आदि परेशानियों से मुक्त करता है।
English Translation – Success in worldly affairs is achieved during the flow of Prithivi Tattva in the breath, During Jala Tattva flow we succeed in auspicious work, Agni Tattva is suitable for the work relating to metal and Akash Tattva gives freedom from psychic troubles.
तुष्टिपुष्टि रतिःक्रीडा जयहर्षौ धराजले।
तेजो वायुश्च सुप्ताक्षो ज्वरकम्पः प्रवासिनः।।188।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ अतएव जब पृथ्वी और जल तत्त्व के प्रवाह काल में किसी प्रवासी के विषय में प्रश्न पूछा जाय तो समझना चाहिए कि वह कुशल से है, स्वस्थ और खुश है। पर यदि प्रश्न के समय अग्नि तत्त्व और वायु तत्त्व प्रवाहित हो तो समझना चाहिए कि जिसके विषय में प्रश्न पूछा गया है उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट है।
English Translation – Therefore, any question about a person away from the place is asked during the flow of Prithivi Tattva Jala Tattva, it should be understood that he is alright, healthy and happy. But if the question comes during the flow of Agni Tattva and Vayu Tattva, it indicates that the person about whom query has been made, is suffering from physical and mental troubles.
गतायुर्मृत्युराकाशे तत्त्वस्थाने प्रकीर्तितः।
द्वादशैताः प्रयत्नेन ज्ञातव्या देशिकै सदा।।189।।
अन्वय आकाशे तत्त्वस्थाने गतायुः मृत्युश्(च) प्रकीर्तितः। (अनेन) देशिकैः एताः द्वादशाः (प्रश्नाः) प्रयत्नेन सदा ज्ञातव्याः।
भावार्थ यदि प्रश्न काल में आकाश तत्त्व प्रवाहित हो तो समझना चाहिए कि जिसके विषय में प्रश्न पूछा गया वह अपने जीवन के अंतिम क्षण गिन रहा है। इस प्रकार तत्त्व-ज्ञाता इन बारह प्रश्नों के उत्तर जान लेता है।
English Translation – In case, query is made about a person during the flow of Akash Tattva, we should understand that he is counting last days of his life. In this way a wise person competent in the knowledge of Tattvas, answers above twelve questions easily.
पूर्वायां पश्चिमे याम्ये उत्तरस्यां तथाक्रमम्।
पृथीव्यादीनि भूतानि बलिष्ठानि विनिर्विशेत्।।190।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में पृथ्वी आदि तत्त्व अपने क्रम के अनुसार प्रबल होते हैं, ऐसा तत्त्वविदों का मानना है। श्लोक संख्या 175 में तत्त्वों की दिशओं का विवरण देखा जा सकता है।
English Translation – Tattvas according to their order in breath become powerful in their directions, i.e. east, west, north and south according to wise and competent persons. Directions of Tattvas have been given in the verse No. 175 of Shivaswarodaya.
पृथिव्यापस्तथा तेजो वायुराकाशमेव च।
पञ्चभूतात्मको देहो ज्ञातव्यश्च वरानने।।191।।
अन्वय हे वरानने, पृथिवी आपः तथा तेजो वायुः आकाशञ्च पञ्चभूतात्मकः देहः ज्ञातव्यः।
भावार्थ हे वरानने, यह देह पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पाँचों तत्त्वों से मिलकर बना है, ऐसा समझना चाहिए।
English Translation – Lord Shiva addresses to his consort, O Beautiful Goddess, This body is made of five tattvas, i.e. earth, water, fire, air and ether and nothing else. This fact we must realize.
इन श्लोकों में पाँच तत्त्वों का शरीर में स्थान और उनके गुणों पर प्रकाश डाला गया है।
अस्थिमांसं त्वचा नाडी रोमञ्चैव तु पञ्चमम्।
पृथ्वीपञ्चगुणा प्रोक्ता ब्रह्मज्ञानेन भाषितम्।।192।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है। अतएव अन्वय नहीं दिया जा रहा है।
भावार्थ पृथ्वी तत्त्व के पाँच गुण अस्थि, मांस, त्वचा, स्नायु तथा रोम बताए गए हैं, ऐसा ब्रह्मज्ञानियों का मानना है।
English Translation – Bone, flesh, skin, nerves and hair have been considered as five properties of Prithivi Tattva, thus said by wises.
शुक्रशोणितमज्जाश्च मूत्रं लाला च पञ्चमम्।
आपः पञ्चगुणाप्रोक्ता ब्रह्मज्ञानेन भाषितम्।।193।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ शुक्र (वीर्य), रक्त, मज्जा, मूत्र और लार ये पाँच गुण जल तत्त्व के माने गए हैं, ऐसा ब्रह्मज्ञानियों का कहना है।
English Translation - Semen, blood, marrow, urine and saliva are said to be the properties of Jala Tattva according to the wise people.
क्षुधा तृषा तथा निद्रा कान्तिरालस्यमेव च।
तेजः पञ्चगुणा प्रोक्ता ब्रह्मज्ञानेन भाषितम्।।194।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ भूख, प्यास, नींद, शारीरिक कान्ति और आलस्य ये पाँच गुण अग्नि तत्त्व के कहे गए हैं, ऐसा ब्रह्मज्ञानी कहते हैं।
English Translation – There are five properties, i.e. hunger, thirst, sleep, body glow and laziness, of Agni Tattva, thus it has been told by the wise people.
धावनं चलनं ग्रन्थिः संकोचनप्रसारणम्।।
वायो पञ्चगुणा प्रोक्ता ब्रह्मज्ञानेन भाषितम्।।195।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ वायु तत्त्व के पाँच गुण- दौड़ना, चलना, ग्रंथिस्राव, शरीर का संकोचन (सिकुड़ना) और प्रसार (फैलाव) बताए गए हैं, ऐसा ब्रह्मज्ञानी कहते हैं।
English Translation – Similarly five functions of our body, i.e. running, walking, gland secretion, contraction and expansion, are the properties of Vayu Tattva in the opinion of wises.
रागद्वेषौ तथा लज्जा भयं मोहश्च पञ्चमः।
नभः पञ्चगुणा प्रोक्ता ब्रह्मज्ञानेन भाषितम्।।196।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ राग, द्वेष, लज्जा, भय और मोह आकाश तत्त्व के ये पाँच गुण कहे गए हैं, ऐसा ब्रह्मज्ञानियों का मत है।
English Translation – Attachment, jealousy, shame, fear and attraction are the properties of Akasha Tattva according to the wise people.
*****
पृथिव्याः पलानि पञ्चाशच्चत्वारिंशत्तथाम्भसः।
अग्नेस्त्रिंशत्पुनर्वायो विंशतिर्नभसो दश।।197।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय आवश्यक नहीं है।
भावार्थ शरीर का पचास भाग पृथ्वी तत्त्व, चालीस भाग जल तत्त्व, तीस भाग अग्नि तत्त्व, बीस भाग वायु तत्त्व और दस भाग आकाश तत्त्व मानना चाहिए। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि पाठक उपर्युक्त विभाजन प्रतिशत में न समझें, बल्कि यह एक अनुपात है। पुनः इसे श्लोक संख्या 199 में स्पष्ट किया गया है।
English Translation – Prithvi Tattva occupies fifty parts of the body, Jala Tattva forty parts, Agni Tattva thirty parts, Vayu Tattva twenty parts and Akash Tattva ten parts. Here we should understand that this has not been calculated in percent, it is ratio only. The same thing has been mentioned in the verse No. 199.
पृथिव्यां चिरकालेन लाभश्चापः क्षणात्भवेत्।
जायते पवने स्वल्पः सिद्धौSप्यग्नौ विनश्यति।।198।।
अन्वय - पृथिव्यां चिरकालेन लाभश्चापः क्षणात्भवेत् पवने स्वल्पः जायते सिद्धौSप्यग्नौ विनश्यति।
भावार्थ इसीलिए पृथ्वी तत्त्व के प्रवाहकाल में किया गये कार्य में दीर्घकलिक सफलता मिलती है, जबकि जल तत्त्व के प्रवाहकाल में किये गये कार्य में सफलता मिलती है, वायु तत्त्व के प्रवाहकाल में किए गए कार्य में मामूली सफलता मिलती है और अग्नि तत्त्व के प्रवाह के समय किए गए कार्य में घोर असफलता मिलती है।
English Translation – That is why the work started during the flow of Prithvi Tattva gives durable and positive result, whereas the work started during the flow of Jala Tattva does not give result to that extent, Vayu Tattva gives least result and Agni Tattva causes harmful result.
पृथिव्याः पञ्च ह्यपां वेदा गुणास्तेजोद्विवायुतः।
नभस्येकगुणश्चैव तत्त्वज्ञानमिदं भवेत्।।199।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ पाँच भाग पृथ्वी, चार भाग जल, तीन भाग अग्नि, दो भाग वायु और एक भाग आकाश है। इसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्त्व का 5:4:3:2:1 अनुपात समझना चाहिए।
English Translation – Here also the same ratio of Prithivi Tattva, Jala, Agni, Vayu and Akash Tattva has been stated like that of verse No. 197, i.e. 5:4:3:2:1.
फूत्कारकृत्प्रस्फुटिता विदीर्णा पतिता धरा।
ददाति सर्वकार्येषु अवस्थासदृशं फलम्।।200।।
अन्वय - फूत्कारकृत्प्रस्फुटिता विदीर्णा पतिता धरा सर्वकार्येषु अवस्था सदृशं फलं ददाति।
भावार्थ फुत्कारती हुई प्रस्फुटित, विदीर्ण और पतित पृथ्वी अपनी अवस्था के अनुसार सभी कार्यों में अपना प्रभाव डालती है।
धनिष्ठा रोहिणी ज्येष्ठाSनुराधा श्रवणं तथा।
अभिजिदुत्तराषाढा पृथ्वीतत्त्वमुदाहृतम्।।201।।
अन्वय श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ धनिष्ठा, रोहिणी, ज्येष्ठा, अनुराधा, श्रवण, अभिजित् और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों का सम्बन्ध पृथ्वी तत्त्व से है।
English Translation – Here and in the following three verses tell us about Nakshtras (stars) relating to Tattvas. Dhanishtha, Rohini, Jyeshtha, Anuradha, Shravana, Abhijit and Uttarasharha are related to Prithivi Tattva.
पूर्वाषाढा तथा श्लेषा मूलमार्द्रा च रेवती।
उत्तराभाद्रपदा तोयं तत्त्वं शतभिषक् प्रिये।।202।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ पूर्वाषाढा, श्लेषा, मूल, आर्द्रा, रेवती, उत्तराभाद्रपद और शतभिषा नक्षत्र जल तत्त्व से सम्बन्धित हैं।
English Translation – Purvasharha, Shlesha, Mula, Ardra, Revati, Uttarabhadrapad and Shatabhisha are related to Jala Tattva.
भरणी कृत्तिकापुष्यौ मघा पूर्वा च फाल्गुनी।
पूर्वाभाद्रपदा स्वाती तेजस्तत्त्वमिति प्रिये।।203।।
अन्वय प्रिये, भरणी कृत्तिकापुष्यौ मघा पूर्वा च फाल्गुनीपू र्वाभाद्रपदा स्वाती तेजस्तत्त्वमिति।
भावार्थ हे प्रिये, भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद और स्वाति नक्षत्रों का अग्नि तत्त्व से सम्बन्ध है।
English Translation – O Dear Goddess, similarly Bharani, Krittika, Pushya, Magha, Purvaphalguni, Purvabhadrapada and Svati are related to Agni Tattva.
विषाखोत्तरफाल्गुन्यौ हस्तचित्रे पुनर्वसुः।
अश्विनी मृगशीर्ष च वायुतत्त्वमुदाहृतम्।।204।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ विषाखा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, अश्विनी और मृगषिरा नक्षत्रों का सम्बन्ध वायु तत्त्व से है।
English Translation – Vishakha, Uttaraphalguni, Hast, Chitra, Punarvasu, Ashvini and Mrigashira are related to Vayu Tattva. Nakshatra relating to Akash Tattva is not given because all Nakshatras are place in the sky only.
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वहन्नाडीस्थितो दूतो यत्पृच्छति शुभाशुभम्।
तत्सर्वं सिद्धिमापनोति शून्ये शून्यं न संशयः।।205।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।
भावार्थ इस श्लोक में चर्चित विवरण इसके पूर्व भी आ चुका है। यहाँ यह बताया गया है कि यदि प्रश्न पूछने वाला सक्रिय स्वर की ओर स्थित है तो उसके प्रश्न का उत्तर सकारात्मक समझना चाहिए। परन्तु यदि निष्क्रिय स्वर की ओर है तो अशुभ फल समझना चाहिए।
English Translation – The content of this verse has already been described earlier also. Here it has been stated that when a person who has come with a query and if he comes or asks his question from the side of active nostril, I.e. through which the breath is running, of the Sadhaka, positive result can be predicted. Similarly, if the questioner comes or asks question from opposite side, i.e. the side of the nostril which is empty, the negative result can be predicted.
पूर्णोSपि निर्गमश्वासे सुतत्त्वेSपि न सिद्धिदः।
सूर्यश्चन्द्रो तथा नृणां सन्देहे सर्वसिद्धिदः।।206।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ दोनों स्वर सक्रिय रहने पर अनुकूल तत्त्व भी निष्फल परिणाम देते हैं। किन्तु यदि सूर्य स्वर अथवा चन्द्र स्वर प्रवाहित हो और प्रश्नकर्त्ता सक्रिय स्वर की ओर बैठा हो तो उसके प्रश्न का उत्तर वांछित फल प्रदान करनेवाला होगा।
English Translation – In case, during query both the nostrils are running, result can be predicted as neither positive nor negative even fruitful Tattva is active at the time. But when the questioner is on the side of active nostril, the positive result should always be predicted.
तत्त्वे रामो जयं प्राप्तः सुतत्त्वे च धनञ्जयः।
कौरवा निहताः सर्वे युद्धे तत्त्वविपर्ययात्।।207।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ अनुकूल तत्त्वों के कारण ही भगवान राम और अर्जुन युद्ध में विजय पाए। परन्तु प्रतिकूल तत्त्वों के कारण ही सभी कौरव युद्ध में मारे गए।
English Translation – Due to selection of appropriate Tattva for the battle, Shri Rama and Arjuna became victorious and Kauravas were killed because of ignoring the selection of an appropriate Tattva for the purpose.
जन्मान्तरीयसंस्कारात्प्रसादादथवा गुरोः।
केषाञ्चिज्जायते तत्त्ववासना विमलात्मना।।208।।
अन्वय तत्त्ववासना जन्मान्तरीयसंस्कारात् अथवा गुरोः प्रसादाद् केषाञ्चित् विमलात्मना जायते।
भावार्थ पूर्व जन्म के संस्कार अथवा गुरु की कृपा से किसी विरले शुद्धचित्तात्मा को ही तत्त्वों का सम्यक ज्ञान मिलता है।
English Translation – Either by virtue of past Karmas of previous life or by the grace of Sadguru, rarely a fortunate person with pure mind becomes able to acquire complete knowledge of Tattvas.
लं बीजं धरणीं ध्यायेच्चतुरस्रां सुपीतभाम्।
सुगन्धां स्वर्णवर्णाभां प्राप्नुयाद्देहलाघवम्।।209।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय की आवश्यकता नहीं है।
भावार्थ वर्गाकार पीले स्वर्ण वर्ण की आभा वाले पृथ्वी-तत्त्व का, जिसका बीज मंत्र लं है, ध्यान करना चाहिए। इसके द्वारा शरीर को इच्छानुसार हल्का और छोटा करने की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
English Translation – Here onwards (up to five verses) Yantras of five Tattvas along with their seed Mantras have been described for the purpose of meditation. Prithivi Tattva (earth) has been taken first for it. Shape of this Tattva with Lam seed Mantra is square and it has golden colour. Sadhak by meditating on this acquires capacity to make his body very light (like flower) and small according to his will.
वं बीजं वारुणं ध्यायेदर्धचन्द्रं शशिप्रभम्।
क्षुत्तृष्णादिसहिष्णुत्वं जलमध्ये च मज्जनम्।।210।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ अर्धचन्द्राकार चन्द्र-प्रभा वर्णवाले जल-तत्त्व का, जिसका बीज मंत्र वं है, ध्यान करना चाहिए। इससे भूख-प्यास आदि को सहन करने और इच्छ्नुसार जल में डूबने की क्षमता प्राप्त होती है।
English Translation – Jala Tattva (water) with Vam seed Mantra has its shape like semi-circled moon. Its colour is like moon light. One who meditate on it regularly as instructed by Guru, he acquires capacity to live without food and water and also to stay in water at his will for a log period.
रं बीजमग्निजं ध्यायेत्त्रिकोणमरुणप्रभम्।
बह्वन्नपानभोक्तृत्वमातपाग्निसहिष्णुता।।211।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ त्रिकोण आकार और लाल (सूर्य के समान) वर्ण वाले अग्नि-तत्त्व का ध्यान करना चाहिए। इसका बीज मंत्र रं है। इससे बहुत अधिक भोजन पचाने और सूर्य तथा अग्नि के प्रचंड ताप को सहन करने की क्षमता प्राप्त होती है।
English Translation – Agni Tattva (fire) has triangular shape with Ramseed Mantra. Its colour is red like sun of dawn (or blood). A Sadhak by meditating on it can acquire capacity to digest food in great quantity and to bear heat of the sun or fire to any extent.
यं बीजं पवनं ध्यायेद्वर्त्तुलं श्यामलप्रभम्।
आकाशगमनाद्यं च पक्षिवद्गमनं तथा।।212।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ वृत्ताकार श्याम-वर्ण (कहीं-कहीं गहरे नीले रंग का उल्लेख) की आभावाले वायु-तत्त्व का ध्यान करना चाहिए। इसका बीज-मंत्र यं है। इसका ध्यान करने से आकाश में पक्षियों के समान उड़ने की क्षमता या सिद्धि प्राप्त होती है।
English Translation – Vayu (air) Tattva has circular shape with Yam seed Mantra and dark blue colour. A man by meditating on it can fly in the sky like birds.
हं बीजं गगनं ध्यायेन्निराकारं बहुप्रभम्।
ज्ञानं त्रिकालविषयमैश्वर्यमणिमादिकम्।।213।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ निराकार आलोकमय आकाश तत्त्व का हं सहित ध्यान करना चाहिए। ऐसा करने से साधक त्रिकालदर्शी हो जाता है और उसे अणिमा आदि अष्ट-सिद्धियों का ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
English Translation – Akash Tattva (ether) is without any shape with Ham seed Mantra and colour like lightning. A man by meditating on it becomes master of yogic powers (of eight kinds) known as Ashtasiddhi.
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