LATEST NEWS

स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार : गाय का घी

Posted by Hari Om ~ Thursday 24 January 2013


स्वास्थ्य-रक्षक अनमोल उपहार
गाय का घी



गाय का घी गुणों में मधुर, शीतल, स्निग्ध, गुरु (पचने में भारी) एवं हृदय के लिए सदा पथ्य, श्रेयस्कर एवं प्रियकर होता है। यह आँखों का तेज, शरीर की कांति एवं बुद्धि को बढ़ाने वाला है। यह आहार में रुचि उत्पन्न करने वाला तथा जठराग्नि का प्रदीप्त करने वाला, वीर्य, ओज, आयु, बल एवं यौवन को बढ़ाने वाला है। घी खाने से सात्त्विकता, सौम्यता, सुन्दरता एवं मेधाशक्ति बढ़ती है।
गाय का घी स्निग्ध, गुरु, शीत गुणों से युक्त होने के कारण वात को शांत करता है, शीतवीर्य होने से पित्त को नष्ट करता है और अपने समान गुणवाले कफदोष को कफघ्न औषधियों के संस्कारों द्वारा नष्ट करता है। गाय का घी दाह को शांत, शरीर का कोमल, स्वर को मधुर करता है तथा वर्ण एवं कांति को बढ़ाता है।
शरद ऋतु में स्वस्थ मनुष्य को घी का सेवन अवश्य करना चाहिए क्योंकि इस ऋतु में स्वाभाविक रूप से पित्त का प्रकोप होता है। 'पित्तघ्नं घृतम्' के अनुसार गाय का घी पित्त और पित्तजन्य विकारों को दूर करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। संपूर्ण भारत में 16 सितम्बर से 14 नवम्बर तक शरद ऋतु मानी जा सकती है।
पित्तजन्य विकारों के लिए शरद ऋतु में घी का सेवन सुबह या दोपहर में करना चाहिए। घी पीने के बाद गरम जल पीना चाहिए। गरम जल के कारण घी सारे स्त्रोतों में फैलकर अपना कार्य करने में समर्थ होता है।
अनेक रोगों में गाय का घी अन्य औषधद्रव्यों के साथ मिलाकर दिया जाता है। घी के द्वारा औषध का गुण शरीर में शीघ्र ही प्रसारित होता है एवं औषध के गुणों का विशेष रूप से विकास होता है। अनेक रोगों में औषधद्रव्यों से सिद्ध घी का उपयोग भी किया जाता है जैसे, त्रिफला घृत, अश्वगंधा घृत आदि।
गाय का घी अन्य औषधद्रव्यों से संस्कारित कराने की विधि इस प्रकार है।
औषधद्रव्य का स्वरस (कूटकर निकाला हुआ रस) अथवा कल्क (चूर्ण) 50 ग्राम लें। उसमें 200 ग्राम गाय का घी और 800 ग्राम पानी डालकर धीमी आँच पर उबलने दें। जब सारा पानी जल जाय और घी कल्क से अलग एवं स्वच्छ दिखने लगे तब घी को उतारकर छान लें और उसे एक बोतल में भरकर रख लें।
औषधीय दृष्टि से घी जितना पुराना, उतना ही ज्यादा गुणप्रद होता है। पुराना घी पागलपन, मिर्गी जैसे मानसिक रोगों एवं मोतिया बिंद जैसे रोगों में चमत्कारिक परिणाम देता है। घी बल को बढ़ाता है एवं शरीर तथा इन्द्रियों अर्थात् आँख, नाक, कान, जीभ तथा त्वचा को पुनः नवीन करता है।
आयुर्वेद तो कहता है कि जो लोग आँखों का तेज बढ़ाना चाहते हो, सदा निरोगी तथा बलवान रहना चाहते हो, लम्बा मनुष्य चाहते हों, ओज, स्मरणशक्ति, धारणाशक्ति, मेधाशक्ति, जठराग्नि का बल, बुद्धिबल, शरीर की कांति एवं नाक-कान आदि इन्द्रियों की शक्ति बनाये रखना चाहते हो उन्हें घी का सेवन अवश्य करना चाहिए। जिस प्रकार सूखी लकड़ी तुरंत टूट जाती है वैसे ही घी न खाने वालों का शरीर भी जल्दी टूट जाता है।
विशेषः गाय का घी हृद्य है अर्थात् हृदय के लिए सर्वथा हितकर है। नये वैज्ञानिक शोध के अनुसार गाय का घी पोजिटिव कोलेस्ट्रोल उत्पन्न करता है जो हृदय एवं शरीर के लिए उपयोगी है। इसलिए हृदयरोग के मरीज भी घबराये बिना गाय का घी सकते हैं।
सावधानीः अत्यंत शीत काल में या कफप्रधान प्रकृति के मनुष्य द्वारा घी का सेवन रात्रि में किया गया तो यह अफरा, अरुचि, उदरशूल और पांडुरोग को उत्पन्न करता है। अतः ऐसी स्थिति में दिन में ही घी का सेवन करना चाहिए। जिन लोगों के शरीर में कफ और मेद बढ़ा हो, जो नित्य मंदाग्नि से पीड़ित हों, अन्न में अरुचि हो, सर्दी, उदररोग, आमदोष से पीड़ित हों, ऐसे व्यक्तियों को उन दिनों में घी का सेवन नहीं करना चाहिए।
औषधि-प्रयोगः
आधासीसीः रोज सुबह-शाम नाक में गाय के घी की 2-3 बूँदें डालने से सात दिन में आधासीसी मिट जाती है।
चौथिया ज्वर, उन्माद, अपस्मार (मिर्गी)- इन रोगों में पंचगव्य घी पिलाने से इन रोगों का शमन होता है।
त्वचा जलने परः जले हुए पर धोया हुआ घी (घी को पानी में मिला कर खूब मथें। जब एकरस हो जाय फिर पानी निकालकर अलग कर दें, ऐसा घी) लगाने से किसी भी प्रकार की विकृति के बिना ही घाव मिट जाता है।
शतधौत घृतः शतधौत घृत माने 100 बार धोया हुआ घी। इस घी से मालिश करने से हाथ पैर की जलन और सिर की गर्मी चमत्कारिक रूप से शांत होती है।
बनाने की विधिः एक काँसे के बड़े बर्तन में लगभग 250 ग्राम घी लें। उसमें लगभग 2 लीटर शुद्ध ठंडा पानी डालें और हाथ से इस तरह हिलायें मानों, घी और पानी का मिश्रण कर रहे हों।
पानी जब घी से अलग हो जाय तब सावधानीपूर्वक पानी को निकाल दें। इस तरह से सौ बार ताजा पानी लेकर घी को धो डालें और फिर पानी को निकाल दें। अब जो घी बचता है वह अत्यधिक शीतलता प्रदान करने वाला होता है। हाथ, पैर और सिर पर उसकी मालिश करने से गर्मी शांत होती है। कई वैद्य घी को 120 बार भी धोते हैं।
सावधानीः यह घी एक प्रकार का धीमा जहर है इसलिए भूल कर भी इसका प्रयोग खाने में न करें।


Related Posts

No comments:

Leave a Reply

Labels

Advertisement
Advertisement

teaser

teaser

mediabar

Páginas

Powered by Blogger.

Link list 3

Blog Archive

Archives

Followers

Blog Archive

Search This Blog