तुलसी(tulsi)
तुलसी(tulsi)
तुलसी को विष्णुप्रिया कहा जाता है। हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में,भगवान के प्रसाद में तुलसीदल का प्रयोग होता ही है। जहाँ तुलसी के पौधे अत्यधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ की हवा शुद्ध और पवित्र रहती है। तुलसी के पत्तों में एक विशिष्ट तेल होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है। मलेरिया के कीटाणुओं का नाश होता है। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से कीटाणुओं का नाश होकर शरीर में बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है। प्रातः खाली पेट तुलसी का रस और पानी पी लिया जाये तो बल, तेज और यादशक्ति में वृद्धि होती है। तुलसी में एक विशिष्ट क्षार होता है। जिसके मुँह में से दुर्गन्ध आती हो वह व्यक्ति यदि तुलसी के थोड़े बहुत पत्ते नित्य ही खाये तो उसकी दूर्गन्ध दूर हो जाती है,मन-वाणी वश में रहते हैं। तुलसी का तो स्पर्श और दर्शन भी लाभदायी है। भगवान विष्णु को तीन चीजें अति प्रिय हैं- भगवान शंकर,तुलसी और आँवला। तुलसी की पूजा अपने देश में होती है उसका कारण उसकी सर्वाधिक गुणवत्ता है। तुलसी शरीर की विद्युत को बनाये रखती है। तुलसी की माला धारण करने वाले को बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है। तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। वह गर्म और त्रिदोषनाशक है। रक्तविकार,ज्वर, वायु, खाँसी, कृमि-निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारक है। सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं। काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं। तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं। वीर्यदोष में बीज उत्तम है। तुलसी की चाय पीने से ज्वर,आलस, सुस्ती तथा वात-पित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है। तुलसी की चाय में तुलसीदल,सोंफ, इलायची, पुदीना, सोंठ, काली मिर्च, ब्राह्मी,दालचीनी आदि का समावेश किया जा सकता है। तुलसी,काली मिर्च एवं शहद का सम्मिश्रण कर गोलियाँ बनाकर 1-1 ग्राम सुबह, दोपहर,शाम व रात्रि में लेने से ज्वर दूर हो जाता है। तुलसी सौन्दर्यवर्धक है, रक्त शोधक है। सुबह-शाम तुलसी का रस और नींबू का रस साथ मिलाकर चेहरे पर घिसने से काले दाग दूर होते हैं और सुन्दरता बढ़ती है। तुलसी के पत्ते खाकर दूध नहीं पीना चाहिए। मलेरिया के ज्वर में तुलसी उपयोगी है। ज्वर,खाँसी, श्वास के रोग में तुलसी का रस 3 ग्राम, अदरक का रस 3 ग्राम और एक चम्मच शहद लेने से लाभ होता है। इससे कफ निकलकर श्वास ठीक होता है। तुलसी के रस से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। तुलसी कृमिनाशक है। तुलसी के रस में नमक डालकर नाक में बूँदें डालने से मूर्च्छा हटती है। हिचकी रुकती है। तुलसी किडनी की कार्यशक्ति को बढ़ाती है। रक्त में स्थित कोलेस्टरोल को नियमित करती हैं। नित्य सेवन से एसिडिटी मिट जाती है,स्नायुओं का दर्द, सर्दी-जुकाम, मेदवृद्धि,मासिक सम्बन्धी रोग, दुःख, बच्चों के रोग, विशेषकर सर्दी, कफ, दस्त, उल्टी आदि में लाभ करती है। हृदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है। अँतड़ियों के रोगों के लिए तो तुलसी रामबाण है। फ्रेन्च डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा हैः "तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है। तुलसी पर किये गये प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि ब्लडप्रेशर के नियमन, पाचनतंत्र के नियमन,रक्तकणों की बढ़ौती एवं मानसिक रोगों मे तुलसी अत्यंत लाभकारी है। मलेरिया तथा अन्य प्रकार के बुखारों में तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है।" तुलसी रोग तो दूर करती ही है, तदुपरांत ब्रह्मचर्य की रक्षा में एवं यादशक्ति बढ़ाने में भी अनुपम सहायता करती है।
तुलसी को विष्णुप्रिया कहा जाता है। हिन्दुओं के प्रत्येक शुभ कार्य में,भगवान के प्रसाद में तुलसीदल का प्रयोग होता ही है। जहाँ तुलसी के पौधे अत्यधिक मात्रा में होते हैं, वहाँ की हवा शुद्ध और पवित्र रहती है। तुलसी के पत्तों में एक विशिष्ट तेल होता है जो कीटाणुयुक्त वायु को शुद्ध करता है। मलेरिया के कीटाणुओं का नाश होता है। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से कीटाणुओं का नाश होकर शरीर में बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है। प्रातः खाली पेट तुलसी का रस और पानी पी लिया जाये तो बल, तेज और यादशक्ति में वृद्धि होती है।
तुलसी में एक विशिष्ट क्षार होता है। जिसके मुँह में से दुर्गन्ध आती हो वह व्यक्ति यदि तुलसी के थोड़े बहुत पत्ते नित्य ही खाये तो उसकी दूर्गन्ध दूर हो जाती है,मन-वाणी वश में रहते हैं। तुलसी का तो स्पर्श और दर्शन भी लाभदायी है। भगवान विष्णु को तीन चीजें अति प्रिय हैं- भगवान शंकर,तुलसी और आँवला। तुलसी की पूजा अपने देश में होती है उसका कारण उसकी सर्वाधिक गुणवत्ता है।
तुलसी शरीर की विद्युत को बनाये रखती है। तुलसी की माला धारण करने वाले को बहुत से रोगों से मुक्ति मिलती है।
तुलसीदल एक उत्कृष्ट रसायन है। वह गर्म और त्रिदोषनाशक है। रक्तविकार,ज्वर, वायु, खाँसी, कृमि-निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारक है। सफेद तुलसी के सेवन से त्वचा, मांस और हड्डियों के रोग दूर होते हैं। काली तुलसी के सेवन से सफेद दाग दूर होते हैं। तुलसी की जड़ और पत्ते ज्वर में उपयोगी हैं। वीर्यदोष में बीज उत्तम है। तुलसी की चाय पीने से ज्वर,आलस, सुस्ती तथा वात-पित्त विकार दूर होते हैं, भूख बढ़ती है। तुलसी की चाय में तुलसीदल,सोंफ, इलायची, पुदीना, सोंठ, काली मिर्च, ब्राह्मी,दालचीनी आदि का समावेश किया जा सकता है। तुलसी,काली मिर्च एवं शहद का सम्मिश्रण कर गोलियाँ बनाकर 1-1 ग्राम सुबह, दोपहर,शाम व रात्रि में लेने से ज्वर दूर हो जाता है।
तुलसी सौन्दर्यवर्धक है, रक्त शोधक है। सुबह-शाम तुलसी का रस और नींबू का रस साथ मिलाकर चेहरे पर घिसने से काले दाग दूर होते हैं और सुन्दरता बढ़ती है। तुलसी के पत्ते खाकर दूध नहीं पीना चाहिए। मलेरिया के ज्वर में तुलसी उपयोगी है। ज्वर,खाँसी, श्वास के रोग में तुलसी का रस 3 ग्राम, अदरक का रस 3 ग्राम और एक चम्मच शहद लेने से लाभ होता है। इससे कफ निकलकर श्वास ठीक होता है। तुलसी के रस से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। तुलसी कृमिनाशक है। तुलसी के रस में नमक डालकर नाक में बूँदें डालने से मूर्च्छा हटती है। हिचकी रुकती है। तुलसी किडनी की कार्यशक्ति को बढ़ाती है। रक्त में स्थित कोलेस्टरोल को नियमित करती हैं। नित्य सेवन से एसिडिटी मिट जाती है,स्नायुओं का दर्द, सर्दी-जुकाम, मेदवृद्धि,मासिक सम्बन्धी रोग, दुःख, बच्चों के रोग, विशेषकर सर्दी, कफ, दस्त, उल्टी आदि में लाभ करती है। हृदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है। अँतड़ियों के रोगों के लिए तो तुलसी रामबाण है।
फ्रेन्च डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा हैः "तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है। तुलसी पर किये गये प्रयोगों ने सिद्ध कर दिया है कि ब्लडप्रेशर के नियमन, पाचनतंत्र के नियमन,रक्तकणों की बढ़ौती एवं मानसिक रोगों मे तुलसी अत्यंत लाभकारी है। मलेरिया तथा अन्य प्रकार के बुखारों में तुलसी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है।"
तुलसी रोग तो दूर करती ही है, तदुपरांत ब्रह्मचर्य की रक्षा में एवं यादशक्ति बढ़ाने में भी अनुपम सहायता करती है।
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