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शिव स्वरोदय(भाग-3)

Posted by Hari Om ~ Friday, 15 February 2013


शिव स्वरोदय(भाग-3)

इस अंक में नाड़ियों की स्थिति तथा प्राणों के नाम सहित स्थान का विवरण दिया जा रहा हैः-
इडा वामे स्थिता भागे पिङ्गला दक्षिणे स्मृता।
सुषुम्ना मध्यदेशे तु गान्धारी वामचक्षुषि।।38।।
अन्वय वामे भागे इडा स्थिता, दक्षिणे (भागे) पिङ्गला स्मृता, मध्यदेशे तु सुषुम्ना वाम चक्षुषि गान्धारी।
दक्षिणे हस्तिजिह्वा च पूषा कर्णे च दक्षिणे।
यशस्विनी वामकर्णे आनने चाप्यलम्बुषा।।39।।
अन्वय दक्षिणे (चक्षुषि) हस्तिजिह्वा, दक्षिणे कर्णे पूषा,
वाम कर्णे यशस्विनी आनने च अलम्बुषा।
कुहूश्च लिङ्गदेशे तु मूलस्थाने तु शङ्खिनी।
एवं द्वारं समाश्रित्य तिष्ठन्ति दशनाडिकाः।।40।।
अन्वय लिङ्गदेशे तु कुहूः मूलस्थाने तु च शङ्किनी।
एवं द्वारं समाश्रित्य दशनाडिकाः तिष्ठन्ति।
इडा पिङ्गला सुषुम्ना च प्राणमार्गे समाश्रिताः।
एता हि दशनाड्यस्तु देहमध्ये व्यवस्थिताः।।41।।
अन्वय प्राणमार्गे इडा पिङ्गला सुषुम्ना च समाश्रिताः।
देहमध्ये तु एताः दश नाड्यः व्यवस्थिताः
भावार्थः - उक्त चार श्लोकों को अर्थ सुविधा की दृष्टि से एक साथ लिया जा रहा है। शरीर के बाएँ भाग में इडा नाड़ी, दाहिने भाग में पिंगला, मध्य भाग में सुषुम्ना, बाईं आँख में गांधारी, दाहिनी आँख में हस्तिजिह्वा, दाहिने कान में पूषा, बाएँ कान में यशस्विनी, मुखमण्डल में अलम्बुषा, जननांगों में कुहू और गुदा में शांखिनी नाड़ी स्थित है। इस प्रकार से दस नाड़ियाँ शरीर के उक्त अंगों के द्वार पर अर्थात् ये अंग जहाँ खुलते हैं, वहाँ स्थित हैं।
इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीन नाड़ियाँ प्राण मार्ग में स्थित हैं। इस प्रकार दस नाडियाँ उक्त अंगों में शरीर के मध्य भाग में स्थित हैं। (38-41 तक)
English Translation:- For comprehensive points of view all th e four slokas are
(From 38-41) Translated together. Here locations of the Nadis are stated-
Nadis Location
Ida Left side of the body
Pingla Right side of the body
ShuShumna Middle of the body
Gandhari Left eye
Hastigikvva Right eye
Yashaswini Left ear
Pusha Right ear
Alambusha Mouth
Kuhu Genital organ
Shankihini Anal region
However, Ida, Pingala and ShuShumna exist in respiratory passage.
नामान्येतानि नाडीनां वातानान्तु वदाम्यहम्।
प्राणोऽपानः समानश्च उदानो व्यान एव च।।42।।
नागः कूर्मोऽथकृकलो देवदत्तो धनञ्जयः।
हृदि प्राणो वसेन्नित्यमपानो गुह्यमण्डले।।43।।
समानो नाभिदेशे तु उदानः कण्ठमध्यगः।
व्यानो व्यापि शरीरेषु प्रधानाः दशवायवः।।44।।
प्राणाद्याः पञ्चविख्याताः नागाद्याः पञ्चवायवः।
तेषामपि पञ्चनां स्थानानि च वदाम्यहम्।।45।।
उद्गारे नाग आख्यातः कूर्मून्मीलने स्मृतः।
कृकलो क्षुतकृज्ज्ञेय देवदत्तो विजृंम्भणे।।46।।
जहाति मृतं वापिसर्वव्यापि धनञ्जयः।
एते नाडीषु सर्वासु भ्रमन्ते जीवरूपिणः।।47।।
भावार्थ - हे शिवे, नाड़ियों के बाद अब मैं तुम्हें इनसे संबंधित वायुओं (प्राणों) के विषय में बताऊँगा। इनकी भी संख्या दस है। दस में पाँच प्रमुख प्राण है और पाँच सहायक प्राण हैं। पाँच मुख्य वायु (प्राण) है- प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। सहायक प्राण वायु हैं - नाग, कूर्म, कृकल (कृकर), देवदत्त और धनंजय। प्रमुख पाँच प्राणों की स्थिति निम्नवत है।
प्राण वायु स्थिति
प्राण हृदय
अपान उत्सर्जक अंग
समान नाभि
उदान कंठ
व्यान पूरे शरीर में
पाँच सहायक प्राण-वायु के कार्य निम्न लिखित हैं-
सहायक प्राण-वायु कार्य
नाग डकार आना
कूर्म पलकों का झपकना
कृकल छींक आना
देवदत्त जम्हाई आना
धनंजय यह पूरे शरीर में व्याप्त रहता है मृत्यु के बाद भी कुछ तक समय यह शरीर में बना रहता है।
इस प्रकार ये दस प्राण वायु दस नाड़ियो से होकर शरीर में जीव के रुप में भ्रमण करते रहते हैं, अर्थात् सक्रिय रहते हैं।
इन श्लोकों के अन्वय की आवश्यकता नहीं है। इसलिए यहाँ इनके अन्वय नहीं दिए जा रहे हैं। (42-47)
English Translation - O shive, after describing Nadis, now I am going to tell you about Pran-vayus connected with Nadis. They are ten in numbers. Five out of ten Vayus are main, whereas remaining five are sub-pranas. The main Pran-Vagus are – Prana, Apana, Samana, Udana and Vyana. And sub-pranas are- Naga, Kurma, Krikal (krikar), Devadatta and Dhananjaya. Locations of five main Prana. Vayus are as under:-
Prana Vayu Location
Prana Heart
Apana Excretory organs]
Samana Navel region
Udan Throat
Vyan Whole body
Functions of five sub-Pranas are mentioned here under:-
Sub-Pranas Functions
Nagh Belchinl
Kurma Dropping of eye-liols
Krikar Sneezing
Devadatta Yawning
Dhananjaya This exists in the whole body and it remains active for some time in the body even after death.
Thus, these ten Pran a Vayus remain active through the said ten Nadis and act in the body like living being.
These Shlokas do not need their prose order (anvaya) and therefore same are not given here. (42-47)
प्रकटं         प्राणसञ्चारं           लक्ष्येद्देहमध्यतः।
इडापिङ्गलासुषुम्नाभिर्नाडीभिस्तिसृभिबुधः।।48।।
अन्वयइडा-पिङ्गला-सुषु्म्नाभिः तिसृभिः नाडीभिः बुधः देहमध्यतः प्राणसञ्चारं प्रकटं लक्ष्येत्।
भावार्धइडा, पिङ्गला और सुषुम्ना तीनों नाड़ियों की सहायता से शरीर के मध्य भाग में प्राणों के संचार को प्रत्यक्ष करना चाहिए। यहाँ शरीर के मध्य के दो अर्थ निकलते हैं- पहला नाभि और दूसरा मेरुदण्ड
Enlish Translation - Swara-Sadhakas should visualize Prana (energy)  in the middle of their body with the help of three Nadis, i.e. Ida, Pingala and Shushumna. Here middile of the body means navel region and spinal column.Some Sadhaks consider it as navel region or Manipur Chakra and some all the five Chakra – Muladhar, Swadhishthan, Manipur, Anahat and Vishudhha, and further Ajnya and Sahasrar, where they make efforts to become one with the Pranas and thereafter beyond them towards pure consciousness.
इडा    वामेव    विज्ञेया    पिङ्गला    दक्षिणे     स्मृता।
इडानाडीस्थिता वामा ततो व्यस्ता च पिङ्गला।।49।।
अन्वयइडा नाड़ी वामे विज्ञेया पिङ्गला (च) दक्षिणे स्मृता। (अतएव) इडा वामा पिङ्गला ततो व्यस्ता (इति कथ्यते)।
भावार्थइडा नाडी बायीं ओर स्थित है तथा पिङ्गला दाहिनी ओर। अतएव इडा को वाम क्षेत्र और पिंगला को दक्षिण क्षेत्र कहा जाता है।
English Translation – Ida is located in the left side of our body and Pingala in the right side. Therefore, Ida is also known as left region and Pingala as right region.
इडायां तु स्थितश्चन्द्रः पिङ्गलायां च भास्करः।
सुषुम्ना   शम्भुरूपेण   शम्भुर्हंसस्वरूपतः।।50।।
अन्वय चन्द्रः इडायां तु स्थितः भास्करः पिङ्गलायां च सुषुम्ना शम्भुरूपेण। शम्भु हंसस्वरूपतः।
भावार्थचंद्रमा इडा नाडी में स्थित है और सूर्य पिङ्गला नाडी में तथा सुषुम्ना स्वयं शिव-स्वरूप है। भगवान शिव का वह स्वरूप हंस कहलाता है, अर्थात् जहाँ शिव और शक्ति एक हो जाते हैं और श्वाँस अवरुद्घ हो जाती है। क्योंकि-
English Translation – The moon resides in Ida Nadi and the sun in Pingala Nadi. Sushumna is itself known as Lord Shiva. Lord Shiva is here called Hamsa, i.e. Prana Vayu flows through Sushumna in stead of Ida and Pingala and thereafter it gets related to the cosmic energy and a man can survive without taking breath.
हकारो   निर्गमे   प्रोक्त   सकारेण   प्रवेशणम्।
हकारः शिवरूपेण सकारः शक्तिरुच्यते।।51।।
अन्वय(श्वासस्य) निर्गमे हकारः प्रोक्तः प्रवेशणं सकारेण (च)। हकारः शिवरूपेण सकारः शक्तिः उच्यते।
भावार्य - तंत्रशास्त्र और योगशास्त्र की मान्यता है कि जब हमारी श्वाँस बाहर निकलती है तो हंकी ध्वनि निकलती है और जब श्वाँस अन्दर जाती है तो सः (सो)की। हं को शिव- स्वरूप माना जाता है और सः या सो को शक्ति-रूप।
English Translation – It is said in scriptures that when breath goes out it sounds like Ham and when it enters our body it sounds like Sah or So. Ham is known as Shiva and Sah or So as His Shakti.
शक्तिरूपस्थितश्चन्द्रो       वामनाडीप्रवाहकः।
दक्षनाडीप्रवाहश्च शम्भुरूपो दिवाकरः।।52।।
अन्वयवामनाडीप्रवाहकः चन्द्रः शक्तिरूपस्थितः दक्षनाडीप्रवाहः च दिवाकरः शम्भुरूपः।
भावार्थ - वायीं नासिका से प्रवाहित होने वाला स्वर चन्द्र कहलाता है और शक्ति का रूप माना जाता है। इसी प्रकार दाहिनी नासिका से प्रवाहित होने वाला स्वर सूर्य कहलाता है, जिसे शम्भु (शिव) का रूप माना जाता है।
English Translation – The breath, which runs through left nostril, is called the moon and also known as Shakti. And the breath, which runs through right nostril, is called the sun and also known as Shiva.
श्वासे     सकारसंस्थे     तु     यद्दाने    दीयते    बुधैः।
तद्दानं जीवलोकेSस्मिन् कोटिकोटिगुणं भवेत्।।53।।
अन्वय सकारसंस्थे तु बुधैः यद् दाने दीयते तद् दानं अस्मिन् जीवलोके कोटि-कोटिगुणं भवेत्।
भावार्थ श्वास लेते समय विद्वान लोग जो दान देते हैं, वह दान इस संसार में कई करोड़गुना हो जाता है।
English Translation - Any donation given while breathing in is multiplied by crores, i.e. doner gets fruits worth crore times of what donates.
अनेन लक्षयेद्योगी चैकचित्तः समाहितः।
सर्वमेवविजानीयान्मार्गे वै चन्द्रसूर्ययोः।।54।।
अन्वय एकचित्तः योगी चन्द्रसूर्ययोः मार्गे लक्षयेत् अनेन (सः) समाहितः
(भूत्वा) सर्वमेव विजानीयात्।
भावार्थ एकाग्रचित्त होकर योगी चन्द्र और सूर्य नाड़ियों की गतिविधियों के द्वारा
सबकुछ जान लेता है।
English translation – A Yogi, who has controlled his mind by meditating on
Chandra Nadi and Surya Nadi, becomes omniscient.
ध्यायेत्तत्त्वं स्थिरे जीवे अस्थिरे न कदाचन।
इष्टसिद्धिर्भवेत्तस्य महालाभो जयस्तथा।।55।।
अन्वय स्थिरे जीवे तत्त्वं ध्यायेत् कदाचन न (ध्यायेत्)। (अनेन) तस्य इष्टसिद्धिः महालाभः जयः तथा भवेत्।
भावार्थजब मन एकाग्र हो तो तत्त्व चिन्तन करना चाहिए। किन्तु जब मन अस्थिर हो तो ऐसा करना उचित नहीं है। जो ऐसा करता है उसे इष्ट-सिद्धि, हर प्रकार के लाभ और सर्वत्र विजय उपलब्ध होते हैं।
English Translation – One should do meditation when the mind is still. But when the mind is chaotic (disturbed) then meditation should not be done. One who follows these achieves the desired results in his life.
चन्द्रसूर्यसमभ्यासं ये कुर्वन्ति सदा नराः।
अतीतानागतज्ञानं तेषां हस्तगतं भवेत्।।56।।
अन्वय ये नराः चन्द्रसूर्यसमभ्यासं कुर्वन्ति अतीतानागतज्ञानं तेषां हस्तगतं भवेत्।
भावार्थ जो मनुष्य (साधक) अभ्यास करके चन्द्र और सूर्य नाडियों में सन्तुलन
बना लेते हैं, वे त्रिकालज्ञ हो जाते हैं।
English translation – If a man makes balance between Chandra Nadi and Surya Nadi by practicing meditation in this order, he becomes omniscient.
वामे चाSमृतरूपा स्याज्जगदाप्यायनं परम्।
दक्षिणे चरभागेन जगदुत्पादयेत्सदा।।57।।
अन्वय - वामे अमृतरूपा (इडा) चरभागेन जगत् परं अप्यायनं स्यात् दक्षिणे च (पिंगला) सदा जगत् उत्पादयेत्।
भावार्थबायीं ओर स्थित इडा नाडी अमृत प्रवाहित कर शरीर को शक्ति और पोषण प्रदान करती है तथा दाहिनी ओर स्थित पिंगला नाडी शरीर को विकसित करती है।
English Translation – When Ida Nadi flows it showers nectar and provides strength and nutrition to our body, but flow of Pingala Nadi develops it.
मध्यमा भवति क्रूरा दुष्टा सर्वत्र कर्मसु।
सर्वत्र शुभकार्येषु वामा भवति सिद्धिदा।।58।।
अन्वय मध्यमा (सुषुम्ना) सर्वत्र कर्मषु दुष्टा क्रूरा भवति वामा (इडा च) शुभकार्येषु सर्वत्र सिद्धिदा भवति।
भावार्थमध्यमा अर्थात सुषुम्ना किसी भी काम के लिए सदा क्रूर और असफलता प्रदान करने वाली है (आध्यात्मिक साधना या उपासना आदि को छोड़कर)। अर्थात् उत्तम भाव से किया कार्य भी निष्फल होता है। जबकि इडा नाडी के प्रवाह काल में किये गये शुभकार्य सदा सिद्धिप्रद होते हैं।
English Translation - Flow of Sushumna is always disastrous for any work (other than spiritual practices), even when it is done in good spirit. However, any auspicious work done during the flow of Ida Nadi gives desired results.
निर्गमे तु शुभा वामा प्रवेशे दक्षिणा शुभा।
चन्द्रः समस्तु विज्ञेयो रविस्तु विषमः सदा।।59।।
अन्वय निर्गमे वामा शुभा (भवति) प्रवेशे (च) दक्षिणा शुभा (भवति)। चन्द्रः तु समः रविः तु सदा विषमः विज्ञेयः।
भावार्थबाएँ स्वर के प्रवाह के समय घर से बाहर जाना शुभ होता है और दाहिने स्वर के प्रवाह काल में अपने घर में या किसी के घर में प्रवेश शुभ दायक होता है। चन्द्र स्वर को सदा सम और सूर्य स्वर को विषम समझना चाहिए। अर्थात् चन्द्र स्वर को स्थिर और सूर्य स्वर को चंचल या गतिशील मानना चाहिए।
English Translation – During the flow of Chandra Nadi one should prefer to go out of own or other’s house, whereas entrance to any house, whether own or others, one must prefer Surya Nadi. Chandra Nadi is always considered stable and Surya Nadi unstable.
चन्द्रः स्त्री पुरुषः सूर्यश्चन्द्रो गौरोSसितो रविः।
चन्द्रनाडी प्रवाहेण सौम्यकार्याणि कारयेत्।।60।।
अन्वय यह श्लोक अन्वित क्रम में है। अतएव इसका अन्वय करना आवश्यक नहीं है।
भावार्थ चन्द्र नाडी का प्रवाह स्त्री रूप या शक्ति स्वरूप तथा सूर्य नाडी का प्रवाह
पुरुष रूप या शिव स्वरूप माना जाता है। चन्द्र नाडी गौर तथा सूर्य नाडी
             श्याम वर्ण की मानी जाती है। चन्द्र नाडी के प्रवाह काल में सौम्य कार्य करना        उचित है।
English Translation – The flow of Chandra Nadi has feminine nature or energy body and the flow of Surya Nadi has of male nature, in other words it is called Purush or Shiva. The Chandra Nadi is said to be bright and Surya Nadi dark. For the work of peaceful nature one should prefer Chandra Nadi.
सूर्यनाडीप्रवाहेण रौद्रकर्माणि कारयेत्।
सुषुम्नायाः प्रवाहेण भुक्तिमुक्ति फलानि च।।61।।
अन्वय यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय आवश्यक नहीं है।
भावार्थ सूर्य नाडी के प्रवाह काल में श्रमपूर्ण कठोर कार्य करना चाहिए और
सुषुम्ना के प्रवाह काल में इन्द्रिय सुख तथा मोक्ष प्रदान करने वाले कार्य
करना चाहिए।
English Translation - For any hard work we should prefer the flow of Surya Nadi (right nostril) and the work, which is pleasant to our senses or causes liberation from birth and death, should be performed during the flow of sushumna.







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