निद्रा और स्वास्थ्य
निद्रा और स्वास्थ्य
जब आँख, कान, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ और हाथ, पैर आदि कर्मेन्द्रियाँ तथा मन अपने-अपने कार्य में रत रहने के कारण थक जाते हैं, तब स्वाभाविक ही नींद आ जाती है। जो लोग नियत समय पर सोते और उठते हैं, उनकी शारीरिक शक्ति में ठीक से वृद्धि होती है। पाचकाग्नि प्रदीप्त होती है जिससे शरीर की धातुओं का निर्माण उचित ढंग से होता रहता है। उनका मन दिन भर उत्साह से भरा रहता है जिससे वे अपने सभी कार्य तत्परता से कर सकते हैं।
सोने की पद्धतिः
अच्छी नींद के लिए रात्रि का भोजन अल्प तथा सुपाच्य होना चाहिए। सोने से दो घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। भोजन के बाद स्वच्छ, पवित्र तथा विस्तृत स्थान में अच्छे, अविषम एवं घुटनों तक की ऊँचाई वाले शयनासन पर पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके हाथ नाभि के पास रखकर व प्रसन्न मन से ईश्वरचिंतन करते-करते सो जाना चाहिए। पश्चिम या उत्तर की ओर सिर करके सोने से जीवनशक्ति का ह्रास होता है। शयन से पूर्व प्रार्थना करने पर मानसिक शांति मिलती है एवं नसों में शिथिलता उत्पन्न होती है। इससे स्नायविक तथा मानसिक रोगों से बचाव व छुटकारा मिलता है। यह नियम अनिद्रा रोग एवं दुःस्वप्नों का नाश करता है। यथाकाल निद्रा के सेवन से शरीर की पुष्टि होती है तथा बल और उत्साह की प्राप्ति होती है।
निद्राविषयक उपयोगी नियमः
रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक गहरी निद्रा लेने मात्र से आधे रोग ठीक हो जाते हैं। कहा भी हैः 'अर्धरोगहरि निद्रा....'
स्वस्थ रहने के लिए कम से कम छः घंटे और अधिक से अधिक साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए, इससे कम ज्यादा नहीं। वृद्ध को चार व श्रमिक को छः से साढ़े सात घंटे की नींद करनी चाहिए।
जब आप शयन करें तब कमरे की खिड़कियाँ खुली हों और रोशनी न हो।
रात्रि के प्रथम प्रहर में सो जाना और ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः 4 बजे नींद से उठ जाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इस समय में ऋषि-मुनियों के जप-तप एवं शुभ संकल्पों का प्रभाव शांत वातावरण में व्याप्त रहता है। इस समय ध्यान-भजन करने से उनके शुभ संकल्पों का प्रभाव हमारे मनः शरीर में गहरा उतरता है। कम से कम सूर्योदय से पूर्व उठना ही चाहिए। सूर्योदय के बाद तक बिस्तर पर पड़े रहना अपने स्वास्थ्य की कब्र खोदना है।
नींद से उठते ही तुरंत बिस्तर का त्याग नहीं करना चाहिए। पहले दो-चार मिनट बिस्तर में ही बैठकर परमात्मा का ध्यान करना चाहिए कि 'हे प्रभु !आप ही सर्वनियंता हैं, आप की ही सत्ता से सब संचालित है। हे भगवान, इष्टदेव, गुरुदेव जो भी कह दो। मैं आज जो भी कार्य करूँगा परमात्मा सर्वव्याप्त हैं, इस भावना से सबका हित ध्यान में रखते हुए करूँगा।' ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए।
निद्रानाश के कारणः
कुछ कारणों से हमें रात्रि में नींद नहीं आती अथवा कभी-कभी थोड़ी बहुत नींद आ भी गयी तो आँख तुरंत खुल जाती है। वात-पित्त की वृद्धि होने पर अथवा फेफड़े, सिर, जठर आदि शरीरांगों से कफ का अंश क्षीण होने के कारण वायु की वृद्धि होने पर अथवा अधिक परिश्रम के कारण थक जाने से अथवा क्रोध, शोक, भय से मन व्यथित होने पर नींद नहीं आती या कम आती है।
निद्रानाश के परिणामः
निद्रानाश से बदनदर्द, सिर में भारीपन, जड़ता, ग्लानि, भ्रम, अन्न का न पचना एवं वात जन्य रोग पैदा होते हैं।
निद्रानाश से बचने के उपायः
तरबूज के बीज की गिरी और सफेद खसखस अलग-अलग पीसकर समभाग मिलाकर रख लें। यह औषधि 3 ग्राम प्रातः सायं लेने से रात में नींद अच्छी आती है और सिरदर्द ठीक होता है। आवश्यकतानुसार 1 से 3 सप्ताह तक लें।
विकल्पः
6 ग्राम खसखस 250 ग्राम पानी में पीसकर कपड़े से छान लें और उसमें 25 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य प्रातः सूर्योदय के बाद या सायं 4 बजे एक बार लें।
3 ग्राम पूदीने की पत्तियाँ (अथवा ढाई ग्राम सूखी पत्तियों का चूर्ण) 200 ग्राम पानी में दो मिनट उबालकर छान लें। गुनगुना रहने पर इस पुदीने की चाय में 2 चम्मच शहद डालकर नित्य रात सोते समय पीने से गहरी और मीठी नींद आती है। आवश्यकतानुसार 3-4 सप्ताह तक लें।
शंखपुष्पी और जटामासी का 1 चम्मच सम्मिश्रित चूर्ण सोने से पहले दूध के साथ लें।
सहायक उपचारः
अपने शारीरिक बल से अधिक परिश्रम न करें। ब्राह्मी, आँवला, भांगरा आदि शीत द्रव्यों से सिद्ध तेल सिर पर लगायें तथा ललाट पर बादाम रोगन की मालिश करें।
'शुद्धे-शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा।' इस मंत्र का जप सोने से पूर्व 10 मिनट या अधिक समय तक करें। इससे अनिद्रा निवृत्त होगी व नींद अच्छी आयेगी।
नींद कम आती हो या देर से आती हो तो सोने से पहले पैरों को हलके गर्म पानी से धोकर अच्छी तरह पोंछ लेना चाहिए।
पैरों के तलवों में सरसों के तेल की मालिश करने से नींद गहरी आती है।
रात्रि को सोने से पहले सरसों का तेल गुनगुना करके उसकी 4-4 बूंदे दोनों कानों में डालकर ऊपर से साफ रूई लगाकर सोने से गहरी नींद आती है।
रात को निद्रा से पूर्व रूई का एक फाहा सरसों के तेल से तर करके नाभि पर रखने से और ऊपर से हलकी पट्टी बाँध लेने से लाभ होता है।
सोते समय पाँव गर्म रखने से नींद अच्छी आती है (विशेषकर सर्दियों में)।
ज्ञानमुद्राः
इस मुद्रा की विस्तृत जानकारी आश्रम से प्रकाशित 'जीवन विकास'पुस्तक में दी गयी है। अधिकांशतः दोनों हाथों से और अधिक से अधिक समय अर्थात् चलते फिरते, बिस्तर पर लेटे हुए या कहीं बैठे हुए निरंतर इस मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए। अनिद्रा के पुराने रोगी को भी ज्ञान मुद्रा के दो तीन दिन के अभ्यास से ही ठीक किया जा सकता है।
अनिद्रा के अतिरिक्त स्मरणशक्ति कमजोर होना, क्रोध, पागलपन, अत्यधिक आलस्य, चिड़चिड़ापन आदि मस्तिष्क के सम्पूर्ण विकार दूर करने, एकाग्रता बढ़ाने और स्नायुमंडल को शक्तिशाली बनाने के लिए भी ज्ञानमुद्रा परम उपयोगी है।
दिन में सोना हानिकारकः
रात्रि का जागरण रूक्षताकारक एवं वायुवर्धक होता है। दिन में सोने से कफ बढ़ता है और पाचकाग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का पाचन ठीक से नहीं होता। इससे पेट की अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं तथा त्वचा-विकार, मधुमेह, दमा, संधिवात आदि अनेक विकार होने की संभावना होती है। बहुत से व्यक्ति दिन और रात, दोनों काल में खूब सोते हैं। इससे शरीर में शिथिलता आ जाती है। शरीर में सूजन, मलावरोध, आलस्य तथा कार्य में निरुत्साह आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। ग्रीष्म ऋतु के अलावा बाकी के दिनों में दिन में सोना वर्जित है। दिन में एक संध्या के समय शयन आयु को क्षीण करता है।
अतः दिन में सोनेवालो !सावधान। मंदाग्नि और कफवृद्धि करके कफजनित रोगों को न बुलाओ। रात की नींद ठीक से लो। दिन में सोकर स्वास्थ्य बिगाड़ने की आदत बंद करो-कराओ। नन्हें-मासूमों को, रात्रि में जागने वालों को, कमजोर व बीमारों को और जिनको वैद्य बताते हैं उनको दिन में सोने की आवश्यकता हो तो शक्ति है।
अति निद्रा की चिकित्साः
उपवास अथवा हलके, सुपाच्य एवं अल्प आहार से नींद अधिक नहीं आती। सुबह शाम 10-10 प्राणायाम करना भी हितकारी है। नेत्रों में अंजन लगाने से तथा आधी चुटकी वचा चूर्ण(घोड़ावज) का नस्य लेने से नींद का आवेग कम होता है। इस प्रयोग से मस्तिष्क में कफ और वृद्धि पर जो तमोगुण का आवरण होता है, वह दूर हो जाता है। 'ॐ नमो नृसिंह निद्रा स्तंभनं कुरु कुरु स्वाहा।' इस मंत्र का एक माला जप करें।
पढ़ते समय नींद आती हो और सिर दुखता हो तो पान में एक लौंग डालकर चबा लेना चाहिए। इससे सुस्ती और सिरदर्द में कमी होगी तथा नींद अधिक नहीं सतायेगी।
सहायक उपचारः
अति निद्रावालों के लिए वजासन का अभ्यास परमोपयोगी है। यह आसन मन की चंचलता दूर करने में भी सहायक है। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में नहीं लगता उन्हें इस आसन में बैठकर पढ़ना चाहिए।
स्वास्थ्य पर विचारों का प्रभावः
विचारों की उत्पत्ति में हमारी दिनचर्या, वातावरण, सामाजिक स्थिति आदि विभिन्न तथ्यों का असर पड़ता है। अतः दैनिक जीवन में विचारों का बड़ा ही महत्त्व होता है। कई बार हम केवल अपने दुर्बल विचारों के कारण रोगग्रस्त हो जाते हैं और कई बार साधारण से रोग की स्थिति, भयंकर रोग की कल्पना से अधिक बिगड़ जाती है और कई बार डॉक्टर भी डरा देते हैं। यदि हमारे विचार अच्छे हैं, दृढ़ हैं तो हम स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का पालन करेंगे और साधारण रोग होने पर योग्य विचारों से ही हम उससे मुक्ति पाने में समर्थ हो जायेंगे।
No comments: