LATEST NEWS

पिरामिड (ब्रह्माण्डीय ऊर्जा)

Posted by Hari Om ~ Friday, 8 February 2013



पिरामिड (ब्रह्माण्डीय ऊर्जा)

हमारे ऋषियों ने ब्रह्माण्ड के तत्वों का सूक्ष्म अध्ययन करके उनसे लाभ लेने के लिए अनेक प्रयोग किये। सनातन धर्म के मंदिरों की छत पर बनी त्रिकोणीय आकृति उन्हीं प्रयोगों में से एक है। जिसे वास्तुशास्त्र एवं वैज्ञानिक भाषा में पिरामिड कहते हैं। यह आकृति अपने-आप में अदभुत है।
पिरामिड चार त्रिकोणों से बना होता है। ज्यामितिशास्त्र के अनुसार त्रिकोण एक स्थिर आकार है। अतः पिरामिड स्थिरता का प्रदाता है। पिरामिड के अंदर बैठकर किया गया शुभ संकल्प दृढ़ होता है। कई प्रयोगों से यह देखा गया कि किसी बुरी आदत का शिकार व्यक्ति यदि पिरामिड में बैठकर उसे छोड़ने का संकल्प करे तो वह अपने संकल्प में सामान्य अवस्था की अपेक्षा कई गुना अधिक दृढ़ रहता है और उसकी बुरी आदत छूट जाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पिरामिड में कोई भी दूषित, खराब या बाधक तत्त्व नहीं टिकते हैं। अपनी विशेष आकृति के कारण यह केवल सात्त्विक ऊर्जा का ही संचय करता है। इसीलिए थोड़े दिनों तक पिरामिड में रहने वाले व्यक्ति के दुर्गुण भी दूर भाग जाते हैं।
पिरामिड में किसी भी पदार्थ के मूल कण नष्ट नहीं होते इसलिए इसमें रखे हुए पदार्थ सड़ते-गलते नहीं हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है मिस्र के पिरामिडों में हजारों वर्ष पहले रखे गये शव, जो आज भी सुरक्षित हैं।
मिस्र के पिरामिड मृत शरीर को नष्ट होने से बचाने के लिए बनाये गये हैं। इनकी वर्गाकार आकृति पृथ्वी तत्त्व का ही गुण संग्रह करती है जबकि मंदिरों के शिखर पर बने पिरामिड वर्गाकार के साथ-साथ तिकोने व गोलाकार आकृति के होने से पंच महाभूतों को सक्रिय करने के लिए बनाये गये हैं। इस प्रकार के सक्रिय (ऊर्जामय) वातावरण में भक्तों की भक्ति, क्रिया तथा ऊर्जाशक्ति का विकास होता है।
पिरामिड ब्रह्माण्डीय ऊर्जा जिसे विज्ञान कॉस्मिक एनर्जी कहता है, उसे अवशोषित करता है। ब्रह्माण्ड स्वयं ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का स्रोत है तथा पिरामिड अपनी अदभुत आकृति के द्वारा इस ऊर्जा को आकर्षित कर अपने अंदर के क्षेत्र में घनीभूत करता है। यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा पिरामिड के शिखरवाले नुकीले भाग पर आकर्षित होकर फिर धीरे-धीरे इसकी चारों भुजाओं से पृथ्वी पर उतरती है। यह क्रिया सतत चलती रहती है तथा इसका अद्वितीय लाभ इसके भीतर बैठे व्यक्ति या रखे हुए पदार्थ को मिलता है।
दक्षिण भारते के मंदिरों के सामने अथवा चारों कोनों में पिरामिड आकृति के गोपुर इसी उद्देश्य से बनाये गये हैं। ये गोपुर एवं शिखर इस प्रकार से बनाये गये हैं ताकि मंदिर में आने-जाने वाले भक्तों के चारों ओर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का विशाल एवं प्राकृतिक आवरण तैयार हो जाय।
अपनी विशेष आकृति से पाँचों तत्त्वों को सक्रिय करने के कारण पिरामिड शरीर को पृथ्वी तत्त्व के साथ, मन को वायु तथा बुद्धि को आकाश-तत्त्व के साथ एकरूप होने के लिए आवश्यक वातावरण तैयार रहता है।
पिरामिड किसी भी पदार्थ की सुषुप्त शक्ति को पुनः सक्रिय करने की क्षमता रखता है। फलतः यह शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताओं को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
परम पूज्य संत श्री आसारामजी बापू के दिशा-निर्देशन में उनके कई आश्रमों में साधना के लिए पिरामिड बनाये गये हैं। मंत्रजप, प्राणायाम एवं ध्यान के द्वारा साधक के शरीर में एक प्रकार की विशेष सात्त्विक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा उसके शरीर के विभिन्न भागों से वायुमण्डल में चली जाती है परंतु पिरामिड ऊर्जा का संचय करता है। अपने भीतर की ऊर्जा को बाहर नहीं जाने देता तथा ब्रह्माण्ड की सात्त्विक ऊर्जा को आकर्षित करता है। फलतः साधक पूरे समय सात्त्विक ऊर्जा के बीच रहता है।
आश्रम में बने पिरामिडों में साधक एक सप्ताह के लिए अंदर ही रहता है। उसका खाना पीना अंदर ही पहुँचाने की व्यवस्था है। इस एक सप्ताह में पिरामिड के अंदर बैठे साधक को अनेक दिव्य अनुभूतियाँ होती हैं। यदि उस साधक की पिरामिड में बैठने से पहले तथा पिरामिड से बाहर निकलने के बाद की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो पिरामिड के प्रभाव को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।
पिरामिड द्वारा उत्पन्न ऊर्जा शरीर की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देती है जिसके कारण कई रोग भी ठीक हो जाते हैं। व्यक्ति के व्यवहार को परिवर्तित करने में भी यह प्रक्रिया चमत्कारिक साबित हुई है। विशेषज्ञों ने तो परीक्षण के द्वारा यहाँ तक कह दिया कि पिरामिड के अंदर कुछ दिन तक रहने पर मांसाहारी पशु भी शाकाहारी बन सकता है।
इस प्रकार पिरामिड की सात्त्विक ऊर्जा का यदि साधना व आदर्श जीवन के निर्माण हेतु प्रयोग किया जाय तो आशातीत लाभ हो सकते हैं। हमारे ऋषियों का मंदिरों की छतों पर पिरामिड शिखर बनाने का यही हेतु रहा है। हमें उनकी इस अनमोल देन का यथावत् लाभ उठाना चाहिए।
अधिकांश लोग यही समझते हैं किं पिरामिड मिस्र की देन है परंतु यह सरासर गलत है। पिरामिड के बारे में हमारे ऋषियों ने मिस्र के लोगों से भी सूक्ष्म एवं गहन खोजें की हैं। मिस्र के लोगों ने पिरामिड को मात्र मृत शरीरों को सुरक्षित रखने के लिए बनाया जबकि हमारे ऋषियों ने इसे जीवित मानव की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए बनाया है।
भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है तथा भारत के अति प्राचीन शिल्पग्रंधों एवं शिवस्वरोदय जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी पिरामिड की जानकारी मिलती है। अतः यह सिद्ध होता है कि पिरामिड मृत चमड़े की सुरक्षा करने वाले मिस्रवासियों की नहीं अपितु जीवात्मा एवं परमात्मा के एकत्व का विज्ञान जानने वाले भारतीय ऋषियों की देन है।




Categories
Tags

Related Posts

No comments:

Leave a Reply

Labels

Advertisement
Advertisement

teaser

teaser

mediabar

Páginas

Powered by Blogger.

Link list 3

Blog Archive

Archives

Followers

Blog Archive

Search This Blog