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क्या है आयुर्वेद और आयुर्विज्ञान?

Posted by Hari Om ~ Friday, 1 February 2013


आयुर्वेद की खोज हमारी ऋषि-मुनियों ने सदियों पहले की थी। उसी के नवीन रूप को आयुर्विज्ञान कहते हैं। दोनों ही चिकित्सा की पद्धति है।

इतिहास

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संचार की प्राचीनतम् प्रस्तक ऋग्वेद है । विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा के ३,००० से ५०,००० वर्ष पूर्व तक का माना है । इस संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है । चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है । अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचनाकाल ईसा पूर्व ३,००० से ५०,००० वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस-पास या साथ का ही है ।

आयुर्वेद के ऐतिहासिक ज्ञान के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मत के अनुसार मृत्युलोक में आयुर्वेद के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है । सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने आयुर्वेद का अध्ययन किया । च्व्ह्न्न ऋषि का कार्यकाल भी अश्विनी कुमारों का सम्कालैन माना गया है ।आयुर्वेद के विकास मे ऋषि च्व्ह्न्न का अतिमहत्त्वपुर्न् योगदान है फिर भारद्वाज ने आयुर्वेद के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया । तदनन्तर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक छः शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया । इन छः शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का, जिसका प्रतिसंस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो आयुर्वेद का आधार स्तंभ है ।

सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे आवेदन किया । उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।

इस प्रकार धन्वन्तरि ने भी आयुर्वेद का प्रकाशन बह्मदेव द्वारा ही प्रतिपादित किया हुआ माना है । पुनः भगवान धन्वन्तरि ने कहा कि ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, उनसे अश्विनीकुमार द्वय तथा उनसे इन्द्र ने आयुर्वेद का अध्ययन किया ।

चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में वर्णित इतिहास एवं आयुर्वेद के अवतरण के क्रम में क्रमशः आत्रेय सम्प्रदाय तथा धन्वन्तरि सम्प्रदाय ही मान्य है ।
चरक मतानुसार- आत्रेय सम्प्रदाय ।
सुश्रुत मतानुसार- धन्वन्तरि सम्प्रदाय ।


    आयुर्वेद के आचार्यों के अनुसार शरीर, इंद्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं। यह चार प्रकार की होती है-

    सुखायु - किसी प्रकार के शारीरिक या मानसिक विकास से रहित होते हुए, ज्ञान, विज्ञान, बल, पौरुष, यश, परिजन आदि साधनों से समृद्ध व्यक्ति को सुखायु कहते हैं।

    दुखायु - इसके विपरीत समस्त साधनों से युक्त होते हुए भी, शारीरिक या मानसिक रोग से पीडि़त अथवा निरोग होते हुए भी साधनहीन या स्वास्थ्य और साधन दोनों से हीन व्यक्ति को दु:खायु कहते हैं।

    हितायु - स्वास्थ्य और साधनों से संपन्न होते हुए या उनमें कुछ कमी होने पर भी जो व्यक्ति विवेक, सदाचार, सुशीलता, उदारता, सत्य, अहिंसा, शांति, परोपकार आदि आदि गुणों से युक्त होते हैं और समाज तथा लोक के कल्याण में व्यस्त रहते हैं उन्हें हितायु कहते हैं।

    अहितायु - इसके विपरीत जो व्यक्ति अविवेक, दुराचार, क्रूरता, स्वार्थ, दंभ, अत्याचार आदि दुर्गुणों से युक्त और समाज तथा लोक के लिए अभिशाप होते हैं उन्हें अहितायु कहते हैं।

    इस प्रकार हित, अहित, सुख और दु:ख, आयु के ये चार भेद हैं।



    वेद शब्द के सत्ता, लाभ, गति, विचार, प्राप्ति और ज्ञान के साधन, ये अर्थ होते हैं, और आयु के वेद को आयुर्वेद कहते हैं। अर्थात जिस शास्त्र में आयु के स्वरूप, आयु के विविध भेद, आयु के लिए हितकारक और अप्रमाण तथा उनके ज्ञान के साधनों का एवं आयु के विभिन्न अवयव शरीर, इंद्रिय, मन, और आत्मा, इनमें सभी या किसी एक के विकास के साथ हित, सुख और दीर्घ आयु की प्राप्ति के साधनों का तथा इनके बाधक विषयों के निराकरण के उपायों का विवचेन हो उसे आयुर्वेद कहते हैं।

    कैसे काम करता है आयुर्वेद?


    आयुर्वेद आधार है कि ब्रह्मांड (मानव शरीर) सहित 'के पांच महान तत्वों: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है पर आधारित है. इन तत्वों या शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, में मनुष्यों द्वारा तीन "दोषों":

    • वात: वात संबंधित है और हवा आकाश तत्व. इस ऊर्जा है कि शारीरिक गति के साथ जुड़े श्वास, रक्त परिसंचरण, निमिष सहित काम करता है, को विनियमित है, और दिल की धड़कन है.
    • पित्त: पित्त से संबंधित है और पानी में आग तत्वों. इस ऊर्जा है कि शरीर के शरीर का तापमान, पाचन, अवशोषण सहित चयापचय प्रणाली,, और पोषण नियंत्रित करता है.
    • जिसे कफ: कफ संबंधित है और पानी पृथ्वी तत्वों. यह विकास और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ऊर्जा है. यह शरीर के सभी भागों में पानी की आपूर्ति, त्वचा moisturizes, और प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखता है
     



    उद्देश्य

    आयुर्वेद के दो उद्देश्य होते हैं :
    स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना

    इसके लिए अपने शरीर और प्रकृति के अनुकूल देश, काल आदि का विचार करना नियमित आहार-विहार, चेष्टा, व्यायाम, शौच, स्नान, शयन, जागरण आदि गृहस्थ जीवन के लिए उपयोगी शास्त्रोक्त दिनचर्या, रात्रिचर्या एवं ऋतुचर्या का पालन करना, संकटमय कार्यों से बचना, प्रत्येक कार्य विवेकपूर्वक करना, मन और इंद्रिय को नियंत्रित रखना, देश, काल आदि परिस्थितियों के अनुसार अपने अपने शरीर आदि की शक्ति और अशक्ति का विचार कर कोई कार्य करना, मल, मूत्र आदि के उपस्थित वेगों को न रोकना, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, अहंकार आदि से बचना, समय-समय पर शरीर में संचित दोषों को निकालने के लिए वमन, विरेचन आदि के प्रयोगों से शरीर की शुद्धि करना, सदाचार का पालन करना और दूषित वायु, जल, देश और काल के प्रभाव से उत्पन्न महामारियों (जनपदोद्ध्वंसनीय व्याधियों, एपिडेमिक डिज़ीज़ेज़) में विज्ञ चिकित्सकों के उपदेशों का समुचित रूप से पालन करना, स्वच्छ और विशोधित जल, वायु, आहार आदि का सेवन करना और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना, ये स्वास्थ्यरक्षा के साधन हैं।
    रोगी व्यक्तियों के विकारों को दूर कर उन्हें स्वस्थ बनाना

    इसके लिए प्रत्येक रोग के

        हेतु (कारण),
        लिंग - रोगपरिचायक विषय, जैसे पूर्वरूप, रूप (साइंस एंड सिंप्टम्स), संप्राप्ति (पैथोजेनिसिस) तथा उपशयानुपशय (थिराप्युटिकटेस्ट्स)
        औषध का ज्ञान परमावश्यक है।

    ये तीनों आयुर्वेद के 'त्रिस्कंध' (तीन प्रधान शाखाएं) कहलाती हैं। इसका विस्तृत विवेचन आयुर्वेद ग्रंथों में किया गया है। यहाँ केवल संक्षिप्त परिचय मात्र दिया गया है । 


    About Ayurveda

    The Ancient Science of Life

    Ayurveda is the ancient Indian holistic medical system, based on achieving physical and mental harmony with nature, which has been practised for more than 5000 years. Ayurveda means "science of life" ("Ayu" meaning life and "Veda" meaning science), and was first recorded in the Vedas the world's oldest surviving literature.
    All early Ayurvedic writing is based on the Samkhya philosophy of creation ("Sat" meaning truth and "Kha" meaning to know). Ayurveda was created during a time of great enlightenment, when the sages of ancient India discovered truth by means of religious practices and disciplines, including Yoga and meditation, techniques that are being increasingly appreciated in the West today. They believed in a close relationship between man and the universe and the flow of cosmic energy in different forms between all living and nonliving things.
    According to Ayurvedic teachings everybody has four physical and spiritual instincts: religious, financial, procreative and the instinct for freedom. Combined these create happiness, well being and creative and physical growth. Balance and good health are the prerequisites for these instincts to be fulfilled and must be maintained for them to be enjoyed. To help achieve this important foundation upon which rest of life is based, Ayurveda aims to promote good health in healthy people and restore health to those who are exhibiting ailments.
    Even today Ayurveda is a recognised branch of medicine existing in India alongside what we consider conventional medicine and is growing in popularity in spas and health centres around the world.








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