प्रसन्नता और हास्य
प्रसन्नता और हास्य
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।
'अंतःकरण की प्रसन्नता होने पर उसके(साधक के) सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्तवाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँति स्थिर हो जाती है।'
(गीताः 2.65)
खुशी जैसी खुराक नहीं और चिंता जैसा गम नहीं। हरिनाम, रामनाम, ओंकार के उच्चारण से बहुत सारी बीमारियाँ मिटती हैं और रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है। हास्य का सभी रोगों पर औषधि की नाई उत्तम प्रभाव पड़ता है। हास्य के साथ भगवन्नाम का उच्चारण एवं भगवद् भाव होने से विकार क्षीण होते हैं, चित्त का प्रसाद बढ़ता है एवं आवश्यक योग्यताओं का विकास होता है। असली हास्य से तो बहुत सारे लाभ होते हैं।
भोजन के पूर्व पैर गीले करने तथा 10 मिनट तक हँसकर फिर भोजन का ग्रास लेने से भोजन अमृत के समान लाभ करता है। पूज्य श्री लीलाशाहजी बापू भोजन के पहले हँसकर बाद में ही भोजन करने बैठते थे। वे 93 वर्ष तक नीरोग रहे थे।
नकली(बनावटी) हास्य से फेफड़ों का बड़ा व्यायाम हो जाता है, श्वास लेने की क्षमता बढ़ जाती है, रक्त का संचार तेज होने लगता और शरीर में लाभकारी परिवर्तन होने लगते हैं।
दिल का रोग, हृदय की धमनी का रोग, दिल का दौरा, आधासीसी, मानसिक तनाव, सिरदर्द, खर्राटे, अम्लपित्त(एसिडिटी), अवसाद(डिप्रेशन), रक्तचाप(ब्लड प्रेशर), सर्दी-जुकाम, कैंसर आदि अनेक रोगों में हास्य से बहुत लाभ होता है।
सब रोगों की एक दवाई हँसना सीखो मेरे भाई।
दिन की शुरुआत में 20 मिनट तक हँसने से आप दिनभर तरोताजा एवं ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। हास्य आपका आत्मविश्वास बढ़ाता है।
खूब हँसो भाई ! खूब हँसो, रोते हो इस विध क्यों प्यारे ?
होना है सो होना है, पाना है सो पाना है, खोना है सो खोना है।।
सब सूत्र प्रभु के हाथों में, नाहक करना का बोझ उठाना है।।
फिकर फेंक कुएँ में, जो होगा देखा जाएगा।
पवित्र पुरुषार्थ कर ले, जो होगा देखा जायेगा।।
अधिक हास्य किसे नहीं करना चाहिए ?
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