आँखों की सुरक्षा
नेत्र-स्नान-
आँखों को स्वच्छ, शीतल और निरोगी रखने के लिए प्रातः बिस्तर से उठकर, भोजन के बाद, दिन में कई बार और सोते समय मुँह में पानी भरकर आँखों पर स्वच्छ, शीतल जल के छींटे मारें। इससे आँखों की ज्योति बढ़ती है।
ध्यान रहे कि मुँह का पानी गर्म न होने पाये। गर्म होने पर पानी बदल लें।
मुँह में से पानी निकालते समय भी पूरे जोर से मुँह फुलाते हुए वेग से पानी को छोड़ें। इससे ज्यादा लाभ होता है। आँखों के आस-पास झुर्रियाँ नहीं पड़तीं।
इसके अलावा अगर पढ़ते समय अथवा आँखों का अन्य कोई बारीक कार्य करते समय आँखों में जरा भी थकान महसूस हो तो इसी विधि से ठंडे पानी से आँखों को धोयें। आँखों के लिए यह रामबाण औषध है।
पानी में आँखें खोलें-
स्नान करते समय किसी चौड़े मुँहवाले बर्तन में साफ, ताजा पानी लेकर, उसमें आँखों को डुबोकर बार-बार खोलें और बंद करें। यह प्रयोग अगर किसी नदी या सरोवर के शुद्ध जल में डुबकी लगाकर किया जाय तो अपेक्षाकृत अधिक फायदेमंद होता है। इस विधि से नेत्र-स्नान करने से कई प्रकार के नेत्ररोग दूर हो जाते हैं।
विश्रामः हम दिन भर आँखों का प्रयोग करते हैं लेकिन उनको आराम देने की ओर कभी ध्यान नहीं देते। आँखों को आराम देने के लिए थोड़े-थोड़े समय के अंतराल के बाद आँखों को बंद करके, मन को शांत करके, अपनी दोनों हथेलियों से आँखों को इस प्रकार ढँक लो कि तनिक भी प्रकाश और हथेलियों का दबाव आपकी पलकों पर न पड़े। साथ ही आप अंधकार का ऐसा ध्यान करो, मानों आप अँधेरे कमरे में बैठे हुए हैं। इससे आँखों को विश्राम मिलता है और मन भी शांत होता है। रोगी-निरोगी, बच्चे, युवान, वृद्ध – सभी को यह विधि दिन में कई बार करना चाहिए।
आँखों को गतिशील रखोः 'गति ही जीवन है' इस सिद्धान्त के अनुसार हर अंग को स्वस्थ और क्रियाशील बनाये रखने के लिए उसमें हरकत होते रहना अत्यंत आवश्यक है। पलके झपकाना आँखों की सामान्य गति है। बच्चों की आँखों में सहज रूप से ही निरंतर यह गति होती रहती है। पलकें झपकाकर देखने से आँखों की क्रिया और सफाई सहज में ही हो जाती है। आँखे फाड़-फाड़कर देखने की आदत आँखों का गलत प्रयोग है। इससे आँखों में थकान और जड़ता आ जाती है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमें अच्छी तरह देखने के लिए नकली आँखें अर्थात् चश्मा लगाने की नौबत आ जाती है। चश्मे से बचने के लिए हमें बार-बार पलकों को झपकाने की आदत को अपनाना चाहिए। पलकें झपकाते रहना आँखों की रक्षा का प्राकृतिक उपाय है।
सूर्य की किरणों का सेवनः
प्रातः सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्योदय के कुछ समय बाद की सफेद किरणें बंद पलकों पर लेनी चाहिए। प्रतिदिन प्रातः और अगर समय मिले तो शाम को भी सूर्य के सामने आँखें बंद करके आराम से इस तरह बैठो कि सूर्य की किरणें बंद पलकों पर सीधी पड़ें। बैठे-बैठे, धीरे-धीरे गर्दन को क्रमशः दायीं तथा बायीं ओर कंधों की सीध में और आगे पीछे तथा दायीं ओर से बायीं ओर व बायीं ओर से दायीं ओर चक्राकार गोलाई में घुमाओ। दस मिनट तक ऐसा करके आँखों को बंद कर दोनों हथेलियों से ढँक दो जिससे ऐसा प्रतीत हो, मानों अंधेरा छा गया है। अंत में, धीरे-धीरे आँखों को खोलकर उन पर ठंडे पानी के छींटे मारो। यह प्रयोग आँखों के लिए अत्यंत लाभदायक है और चश्मा छुड़ाने का सामर्थ्य रखता है।
आँखों की सामान्य कसरतें-
हर रोज प्रातः सायं एक-एक मिनट तक पलकों को तेजी से खोलने तथा बंद करने का अभ्यास करो।
आँखों को जोर से बंद करो और दस सेकेंड बाद तुरंत खोल दो। यह विधि चार-पाँच बार करो।
आँखों को खोलने बंद करने की कसरत जोर देकर क्रमशः करो अर्थात् जब एक आँख खुली हो, उस समय दूसरी आँख बंद रखो। आधा मिनट तक ऐसा करना उपयुक्त है।
नेत्रों की पलकों पर हाथ की उँगलियों को नाक से कान की दिशा में ले जाते हुए हलकी-हलकी मालिश करो। पलकों से उँगलियाँ हटाते ही पलकें खोल दो और फिर पलकों पर उँगलियों लाते समय पलकों को बंद कर दो। यह प्रकिया आँखों की नस-नाड़ियों का तनाव दूर करने में सक्षम है।
सही ढंग से पढ़ो और देखोः
विद्यार्थियों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि वे आँखों को चौंधिया देने वाले अत्यधिक तीव्र प्रकाश में न देखें। सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय सूर्य और चन्द्रमा को न देखें। कम प्रकाश में अथवा लेटे-लेटे पढ़ना भी आँखों के लिए बहुत हानिकारक है। आजकल के विद्यार्थी आमतौर पर इसी पद्धति को अपनाते हैं। बहुत कम रोशनी में अथवा अत्यधिक रोशनी में पढ़ने-लिखने अथवा नेत्रों के अन्य कार्य करने से नेत्रों पर जोर पड़ता है। इससे आँखें कमजोर हो जाती हैं और कम आयु में ही चश्मा लग जाता है। पढ़ते समय आँखों और किताब के बीच 12 इंच अथवा थोड़ी अधिक दूर रखनी चाहिए।
उचित आहार-विहारः
आपकी आँखों का स्वास्थ्य आपके आहार पर भी निर्भर करता है। कब्ज नेत्ररोगों के अलावा शरीर के कई प्रकार के रोगों की जड़ है। इसलिए पेट हमेशा साफ रखो और कब्ज न होने दो। इससे भी आप अपनी आँखों की रक्षा कर सकते हैं। इसके लिए हमेशा सात्त्विक और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। अधिक नमक, मिर्च, मसाले, खटाई और तले हुए पदार्थों से जहाँ तक हो सके बचने का प्रयत्न करना चाहिए। आँखों को निरोगी रखने के लिए सलाद, हरी सब्जियाँ अधिक मात्रा में खानी चाहिए।
योग से रोग मुक्तिः योगासन भी नेत्ररोगों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। सर्वांगासन नेत्र-विकारों को दूर करने का और नेत्र-ज्योति बढ़ाने का सर्वोत्तम आसन है।
नेत्र-रक्षा के उपायः
गर्मी और धूप में से आने के बाद गर्म शरीर पर एकदम से ठंडा पानी न डालो। पहले पसीना सुखाकर शरीर को ठंडा कर लो। सिर पर गर्म पानी न डालो और न ज्यादा गर्म पानी से चेहरा धोया करो।
बहुत दूर के और बहुत चमकीले पदार्थों को घूरकर न देखा करो।
नींद का समय हो जाय और आँखें भारी होने लगें, तब जागना उचित नहीं।
सूर्योदय के बाद सोये रहने, दिन में सोने और रात में देर तक जागने से आँखों पर तनाव पड़ता है और धीरे-धीरे आँखें बेनूर, रूखी और तीखी होने लगती हैं।
धूल, धुआँ और तेज रोशनी से आँखों को बचाना चाहिए।
अधिक खट्टे, नमकीन और लाल मिर्चवाले पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। मल-मूत्र और अधोवायु के वेग को रोकने, ज्यादा देर तक रोने और तेज रफ्तार की सवारी करने से आँखों पर सीधी हवा लगने के कारण आँखें कमजोर होती हैं। इन सभी कारणों से बचना चाहिए।
मस्तिष्क को चोट से बचाओ। शोक-संताप व चिंता से बचो। ऋतुचर्या के विपरीत आचरण न करो और आँखों के प्रति लापरवाह न रहो। आँखों से देर तक काम लेने पर सिर में भारीपन का अनुभव हो या दर्द होने लगे तो तुरंत अपनी आँखों की जाँच कराओ।
घर पर तैयार किया गया काजल सोते समय आँखों में लगाना चाहिए। सुबह उठकर गीले कपड़े से काजल पोंछकर साफ कर दो।
नेत्रज्योतिवर्धक घरेलू नुस्खेः
आँखों की ज्योति बढ़ाने के साथ ही शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला एक अनुभूत उत्तम प्रयोग प्रस्तुत हैः आधा चम्मच ताजा मक्खन, आधा चम्मच पिसी हुई मिश्री और 5 काली मिर्च मिलाकर चाट लो। इसके बाद कच्चे नारियल की गिरी के 2-3 टुकड़े खूब चबा-चबाकर खायें ऊपर से थोड़ी सौंफ चबाकर खा लो। बाद में दो घंटे तक कुछ न खायें। यह प्रयोग प्रातः खाली पेट 2-3 माह तक करो।
प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भ्रमण के लिए नियमित रूप से जाना आँखों के लिए बहुत हितकारी होता है। जब सूर्योदय हो रहा हो तब कहीं हरी घास हो तो उस पर 15-20 मिनट तक नंगे पैर टहलना चाहिए। घास पर रातभर गिरने वाली ओस की नमी रहती है। नंगे पैर इस पर टहलने से आँखों को तरावट मिलती है और शरीर की अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई उष्णता में कमी आती है। यह उपाय आँखों की ज्योति की रक्षा करने के अतिरिक्त शरीर को भी लाभ पहुँचाता है।
1 गिलास ताजे और साफ पानी में नींबू का 5-6 बूँद रस टपका दो और इस पानी को साफ कपड़े से छान लो। दवाई (केमिस्ट) की दुकान से आँख धोने का पात्र (आई वाशिंग ग्लास) ले आओ। इससे दिन में 1 बार आँखों को धोना चाहिए। धोने के बाद ठंडे पानी की पट्टी आँखों पर रखकर 5-10 मिनट लेटना चाहिए। पानी अत्यधिक शीतल भी न हो। इस प्रयोग से नेत्रज्योति बढ़ती है।
अगर आप आँखों को स्वस्थ रखने की इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दो और नियमित रूप से सावधानी पूर्वक इन प्रयोगों को करते रहो तो आप लम्बे समय तक अपनी आँखों को विभिन्न रोगों से बचाकर उन्हें स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक बनाये रख सकते हैं।
प्रतिदिन प्रातःकाल जलनेति करो।
नीम पर की हरी गुडुच (गिलोय) लाकर उसे पत्थर से बारीक पीसकर, कपड़े से छानकर एक तोला रस निकालें। अगर हरी गुडुच (गिलोय) न मिले तो सूखी गिलोय का चूर्ण 12 घंटे तक भिगोकर रखें। उसके बाद कपड़े से छानकर उसका एक तोला रस निकालें। इस रस में 6 मुंजाभार शुद्ध शहद एवं उतनी ही मात्रा में अच्छे स्तर का सेंधा नमक डालकर खूब घोंटें। अच्छी तरह से एकरस हो जाने पर इसे आँखों में डालें।
डालने की विधिः रात्रि को सोते समय बिना तकिये के सीधे लेट जायें। फिर आँखों की ऊपरी पलक को पूरी तरह उलट करके ऊपरी सफेद गोलक पर रस की एक बूँद डालें एवं दूसरी बूँद नाक की ओर के आँख के कोने में डालें और आँखें बन्द कर लें। पाँच मिनट तक आँखों को बंद रखते हुए आँखों के गोलक को धीरे-धीरे गोल-गोल घुमायें ताकि रस आँखों के चारों तरफ भीतरी भाग में प्रवेश कर जाय। सुबह गुनगुने पानी से आँखें धोयें। ऐसा करने से दोनों आँखों से बहुत-सा मैल बाहर आयेगा, उससे न घबरायें। यही वह मैल है जिसके भरने से दृष्टि कमजोर हो जाती है। प्रतिदिन डालने से धीरे-धीरे वह एकत्रित हुआ कफ बाहर निकलता जायेगा और आँखों का तेज बढ़ता जायेगा। निरंतर चार महीने तक डालनेपर आश्चर्यजनक लाभ होगा।
आँख के मरीजों को सदैव सुबह-शाम 4 तोला पथ्यादि क्वाथ जरूर पीना चाहिए।
पथ्यादि क्वाथः हरड़, बहेड़ा, आँवला, चिरायता, हल्दी और नीम की गिलोय को समान मात्रा में लेकर रात्रि को कलईवाले बर्तन में भिगोकर सुबह उसका काढ़ा बनायें। उस काढ़े में एक तोला पुराना गुड़ डालकर थोड़ा गरम-गरम पियें।
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