LATEST NEWS

रोगों से बचाव

Posted by Hari Om ~ Thursday, 14 February 2013


रोगों से बचाव


सिर के रोगः नहाने से पहले हमेशा 5 मिनट तक मस्तक के मध्य तालुवे पर किसी श्रेष्ठ तेल (नारियल, सरसों, तिल्ली, ब्राह्मी, आँवला, भृंगराज) की मालिश करो। इससे स्मरणशक्ति और बुद्धि का विकास होगा। बाल काले, चमकीले और मुलायम होंगे।
विशेषः रात को सोने से पहले कान के पीछे की नाड़ियों, गर्दन के पीछे की नाड़ियों और सिर के पिछले भाग पर हल्के हाथों से तेल की मालिश करने से चिंता, तनाव और मानसिक परेशानी के कारण सिर के पिछले भाग और गर्दन में होने वाला दर्द तथा भारीपन मिटता है।

नेत्रज्योतिः नित्य प्रातः सरसों के तेल से पाँव के तलवों और उँगलियों की मालिश करने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। सबसे पहले पाँव के अँगूठों को तेल से तर करके उनकी मालिश करनी चाहिए। इससे किसी प्रकार का नेत्ररोग नहीं होता और आँखों की रोशनी तेज होती है। साथ ही पैर का खुरदरापन, रूखापन तथा पैर की सूजन शीघ्र दूर होती है। पैर में कोमलता तथा बल आता है।

कान के रोगः सप्ताह में 1 बार भोजन से पूर्व कान में सरसों के हलके सुहाते गरम तेल की 2-4 बूँदें डालकर खाना खायें। इससे कानों में कभी तकलीफ नहीं होगी। कान में तेल डालने से अंदर का मैल बाहर आ जाता है। सप्ताह या 15 दिन में 1 बार ऐसा करने से ऊँचे से सुनना या बहरेपन का भय नहीं रहता एवं दाँत भी मजबूत बनते हैं। कान में कोई भी द्रव्य (औषधि) भोजन से पूर्व डालना चाहिए।
विशेषः 25 ग्राम सरसों के तेल में लहसुन की 2 कलियाँ छीलकर डाल दें। फिर गुनगुना गरम करके छान लें। सप्ताह में यदि 1 बार कान में यह तेल डाल लिया जाय तो श्रवणशक्ति तेज बनती है। कान निरोग बने रहते हैं। इस लहसुन के तेल को थोड़ा गर्म करके कान में डालने से खुश्की भी दूर होती है। छोटा-मोटा घाव भी सूख जाता है।
कान और नाक के छिद्रों में उँगली या तिनका डालने से उनमें घाव होने या संक्रमण पहुँचने का भय रहता है। अतः ऐसा न करें।

नजला-जुकामः रात के समय नित्य सरसों का तेल या गाय के घी को गुनगुना करके 1-2 बूँदें सूँघते रहने से नजला जुकाम कभी नहीं होता। मस्तिष्क अच्छा रहता है।

मुख के रोगः प्रातः कड़वे नीम की 2-4 हरी पत्तियाँ चबाकर उसे थूक देने से दाँत,जीभ व मुँह एकदम साफ और निरोग रहते हैं।
विशेषः नीम की दातुन उचित ढंग से करने वाले के दाँत मजबूत रहते हैं। उनके दाँतों में तो कीड़े ही लगते हैं और न दर्द होता है। मुँह के रोगों से बचाव होता है। जो 12 साल तक नीम की दातुन करता है उसके मुँह से चंदन की खुश्बु आती है।
मुख में कुछ देर सरसों का तेल रखकर कुल्ला करने से जबड़ा बलिष्ठ होता है। आवाज ऊँची और गम्भीर हो जाती है। चेहरा पुष्ट होता है और 6 रसों में से हर एक रस को अनुभव करने की शक्ति बढ़ जाती है। इस क्रिया से कण्ठ नहीं सूखता और न ही होंठ फटते हैं। दाँत भी नहीं टूटते क्योंकि दाँतों की जड़ें मजबूत हो जाती हैं। दाँतों में पीड़ा नहीं होती।
सर्दीजनित तथा गले व श्वसन संस्थान के रोगः जो व्यक्ति नित्य प्रातः खाली पेट तुलसी की 4-5 पत्तियों को चबाकर पानी पी लेता है, वह अनेक रोगों से सुरक्षित रहता है। उसके सामान्य रोग स्वतः ही दूर हो जाते हैं। सर्दी के कारण होने वाली बीमारियों में विशेष रूप से जुकाम, खाँसी, ब्रॉंकइटिस, निमोनिया, इन्फ्लूएंजा, गले, श्वासनली और फेफडों के रोगों में तुलसी का सेवन उपयोगी है।

श्वासरोगः श्वास बदलने की विधि से, दाहिने स्वर के अधिकतम अभ्यास से तथा दाहिने स्वर में ही प्राणायाम के अभ्यास से श्वासरोग नियंत्रित किया जा सकता है।
भस्त्रिका प्राणायाम करने से दमा, क्षय आदि रोग नहीं होते तथा पुराने से पुराना नजला जुकाम भी समाप्त हो जाता है। इस प्राणायाम से नाक व छाती के रोग नहीं होते।

हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियाँ- दक्षिण की ओर पैर करके सोने से हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियाँ पैदा होती हैं। अतः दक्षिण की तरफ पैर करके न सोयें।
विशेषः नित्य प्रातः 4-5 किलोमीटर तक चहलकदमी (Brisk Walk) करने वालों को दिल की बीमारी नहीं होती।

पेट का कैंसरः नित्य भोजन के आधे एक घंटे के बाद लहसुन की 1-2 कली छीलकर चबाया करें। ऐसा करने से पेट का कैंसर नहीं होता। कैंसर भी हो गया तो लगातार 1-2 माह तक नित्य खाना खाने के बाद आवश्यकतानुसार लहसुन की 1-2 कली पीसकर पानी में घोलकर पीने से पेट के कैंसर में लाभ होता है।
तनावमुक्त रहो और कैंसर के बचो। नवीन खोजों के अनुसार कैंसर का प्रमुख कारण मानसिक तनाव है। शरीर के किस भाग में कैंसर होगा यह मानसिक तनाव के स्वरूप पर निर्भर है।
यदि कैंसर से पीड़ित व्यक्ति अनारदाने का सेवन करता रहे तो उसकी आयु 10 वर्ष तक बढ़ सकती है। कैंसर के रोगी को रोटी आदि न खाकर मूँग का ही सेवन करना चाहिए
खाना खूब चबा-चबाकर खाओ। एक ग्रास को 32 बार चबाना चाहिए। भूख से कुछ कम एवं नियत समय पर खाना चाहिए। इससे अपच, अफरा आदि उदररोगों से व्यक्ति बचा रहता है। साथ ही पाचनक्रिया भी ठीक रहती है।

पित्त विकार, बवासीर और पेट के कीड़ेः सप्ताह में एक बार करेले की सब्जी खाने से सब तरह के बुखार, पित्त-विकार, बच्चों के हरे पीले दस्त, बवासीर, पेट के कीड़े एवं मूत्र रोगों से बचाव होता है।

गुर्दे की बीमारीः भोजन करने के बाद मूत्रत्याग करने से गुर्दे, कमर और जिगर के रोग नहीं होते। गठिया आदि अनेक बीमारियों से बचाव होता है।

फोड़े फुंसियाँ और चर्मरोगः चैत्र मास अर्थात् मार्च-अप्रैल में जब नीम की नयी नयी कोंपलें खिलती हैं तब 21 दिन तक प्रतिदिन दातुन कुल्ला करने के बाद ताजी 15 कोंपलें (बच्चों के लिए 7) चबाकर खाने या गोली बनाकर पानी के साथ निगलने या घोंटकर पीने से साल भर फोड़े-फुंसियाँ नहीं निकलतीं।
विशेषः खाली पेट इसका सेवन करके कम से कम 2 घंटे तक कुछ न खायें।
इससे खून की बहुत सारी खराबियाँ, खुजली आदि चर्मरोग, पित्त और कफ के रोग जड़ से नष्ट होते हैं।
इस प्रयोग से मधुमेह की बीमारी से बचाव होता है।
इससे मलेरिया और विषमज्वर की उत्पत्ति की सम्भावना भी कम रहती है।
सावधानीः ध्यान रहे कि नीम की 21 कोंपलों और 7 पत्तियों से ज्यादा एवं लगातार बहुत लम्बे समय तक नहीं खायें वरना यौवन-शक्ति कमजोर होती है व वातविकार बढ़ते हैं। इन दिनों तेल, मिर्च, खटाई एवं तली हुई चीजों का परहेज करें।

हैजाः 1 गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर उसमें 1 चम्मच मिश्री मिलाकर शरबत (शिकंजी) बनायें। इसे प्रातः पीने से हैजे में अत्यंत लाभ होता है। हैजे के लिए यह अत्युत्तम प्रयोग है। यहाँ तक कि प्रारम्भिक अवस्था में इसके 1-2 बार सेवन से ही रोग ठीक हो जाता है।
विशेषः कपूर को साथ रखने से हैजे का असर नहीं होता।
नींबू का शरबत (शिकंजी) पीने से पित्त, वमन, तृषा और दाह में फायदा होता है।
जो व्यक्ति दूध नहीं पचा सकते उन्हें अपनी पाचनशक्ति ठीक करने के लिए कुछ दिन नींबू का शरबत (शिकंजी) पीना चाहिए।
भोजन के साथ नींबू के रस का सेवन करने से खतरनाक और संक्रामक बीमारियों से बचाव होता है।

टाइफाइड जैसे संक्रामक रोगः 1 चुटकी अर्थात् आधा या एक ग्राम दालचीनी का चूर्ण 2 चम्मच शहद में मिलाकर दिन में 2 बार चाटने से मोतीझिरा (टाइफाइड) जैसे संक्रामक रोग से बचा जा सकता है।

चेचकः नीम की 7 कोंपलों और 7 काली मिर्च इन दोनों का 1 माह तक लगातार प्रातः खाली पेट सेवन किया जाय तो चेचक जैसा भयंकर रोग 1 साल तक नहीं होगा। 15 दिन प्रयोग करने से 6 मास तक चेचक नहीं निकलती। चेचक के दिनों में जो लोग किसी भी प्रकार नीम के पत्तों का सेवन करते हैं, उन्हें चेचक जैसे भयंकर रोग से पीड़ित नहीं होना पड़ता।





Related Posts

No comments:

Leave a Reply

Labels

Advertisement
Advertisement

teaser

teaser

mediabar

Páginas

Powered by Blogger.

Link list 3

Blog Archive

Archives

Followers

Blog Archive

Search This Blog