मिठाई की दुकान अर्थात् यमदूत का घर
आचार्य सुश्रुत ने कहा हैः 'भैंस का दूध पचने में अति भारी, अतिशय अभिष्यंदी होने से रसवाही स्रोतों को कफ से अवरूद्ध करने वाला एवं जठराग्नि का नाश करने वाला है !' यदि भैंस का दूध इतना नुकसान कर सकता है तो उसका मावा जठराग्नि का कितना भयंकर नाश करता होगा? मावे के लिए शास्त्र में किलाटक शब्द का उपयोग किया गया है, जो भारी होने के कारण भूख मिटा देता है।
किरति विक्षिपत क्षुधं गुरुत्वात् कृ विक्षेपे किरे लंश्रति किलाटः इति हेमः ततः स्वार्थेकन्।
नयी ब्याही हुई गाय-भैस के शुरुआत के दूध को पीयूष भी कहते हैं। यही कच्चा दूध बिगड़कर गाढ़ा हो जाता है, जिसे क्षीरशाक कहते हैं। दूध में दही अथवा छाछ डालकर उसे फाड़ लिया जाता है फिर उसे स्वच्छ वस्त्र में बाँधकर उसका पानी निकाल लिया जाता है जिसे तक्रपिंड (छेना या पनीर) कहते हैं।
भावप्रकाश निघंटु में लिखा गया है कि ये सब चीजें पचने में अत्यंत भारी एवं कफकारक होने से अत्यंत तीव्र जठराग्नवालों को ही पुष्टि देती है, अन्य के लिए तो रोगकारक ही साबित होती है।
श्रीखंड और पनीर भी पचने में अति भारी, कब्जियत करने वाले एवं अभिष्यंदी है। ये चर्बी, कफ, पित्त एवं सूजन उत्पन्न करने वाले हैं। ये यदि नहीं पचते हैं तो चक्कर, ज्वर, रक्तपित्त (रक्त का बहना), रक्तवात, त्वचारोग, पांडुरोग(रक्त न बनना) तथा रक्त को कैंसर आदि रोगों को जन्म देते हैं।
जब मावा, पीयूष, छेना (तक्रपिंड), क्षीरशाक, दही आदि से मिठाई बनाने के लिए उनमें शक्कर मिलायी जाती है, तब तो वे और भी ज्यादा कफ करने वाले, पचने में भारी एवं अभिष्यंदी बन जाते हैं। पाचन में अत्यंत भारी ऐसी मिठाइयाँ खाने से कब्जियत एवं मंदाग्नि होती हैं जो सब रोगों का मूल है। इसका योग्य उपचार न किया जाय तो ज्वर आता है एवं ज्वर को दबाया जाय अथवा गलत चिकित्सा हो जाय तो रक्तपित्त, रक्तवात, त्वचा के रोग, पांडुरोग, रक्त का कैंसर, मधुमेह, कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदयरोग आदि रोग होते हैं। कफ बढ़ने से खाँसी, दमा, क्षयरोग जैसे रोग होते हैं। मंदाग्नि होने से सातवीं धातु (वीर्य) कैसे बन सकती है? अतः अंत में नपुंसकता आ जाती है!
आज का विज्ञान भी कहता है कि 'बौद्धिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए दिन के दौरान भोजन में केवल 40 से 50 ग्राम वसा (चरबी) पर्याप्त है और कठिन श्रम करने वाले के लिए 90 ग्राम। इतनी वसा तो सामान्य भोजन में लिये जाने वाले घी, तेल, मक्खन, गेहूँ, चावल, दूध आदि में ही मिल जाती है। इसके अलावा मिठाई खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। धमनियों की जकड़न बढ़ती है, नाड़ियाँ मोटी होती जाती हैं। दूसरी ओर रक्त में चरबी की मात्रा बढ़ती है और वह इन नाड़ियों में जाती है। जब तक नाड़ियों में कोमलता होती है तब तक वे फैलकर इस चरबी को जाने के लिए रास्ता देती है। परंतु जब वे कड़क हो जाती हैं, उनकी फैलने की सीमा पूरी हो जाती है तब वह चरबी वहीं रुक जाती है और हृदयरोग को जन्म देती है।'
मिठाई में अनेक प्रकार की दूसरी ऐसी चीजें भी मिलायी जाती हैं, जो घृणा उत्पन्न करें। शक्कर अथवा बूरे में कॉस्टिक सोडा अथवा चोंक का चूरा भी मिलाया जाता है जिसके सेवन से आँतों में छाले पड़ जाते हैं। प्रत्येक मिठाई में प्रायः कृत्रिम (एनेलिन) रंग मिलाये जाते हैं जिसके कारण कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।
जलेबी में कृत्रिम पीला रंग (मेटालीन यलो) मिलाया जाता है, जो हानिकारक है। लोग उसमें टॉफी, खराब मैदा अथवा घटिया किस्म का गुड़ भी मिलाते हैं। उसे जिन आयस्टोन एवं पेराफील से ढका जाता है, वे भी हानिकारक हैं। उसी प्रकार मिठाईयों को मोहक दिखाने वाले चाँदी के वर्क एल्यूमीनियम फॉइल में से बने होते हैं एवं उनमें जो केसर डाला जाता है, वह तो केसर के बदले भुट्टे के रेशे में मुर्गी का खून भी हो सकता है !!
आधुनिक विदेशी मिठाईयों में पीपरमेंट, गोले, चॉकलेट, बिस्कुट, लालीपॉप, केक, टॉफी, जेम्स, जेलीज, ब्रेड आदि में घटिया किस्म का मैदा, सफेद खड़ी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, बाजरी अथवा अन्य अनाज का बिगड़ा हुआ आटा मिलाया जाता है। अच्छे केक में भी अण्डे का पाउडर मिलाकर बनावटी मक्खन, घटिया किस्म के शक्कर एवं जहरीले सुगंधित पदार्थ मिलाये जाते हैं। नानखटाई में इमली के बीज के आटे का उपयोग होता है। कन्फेक्शनरी में फ्रेंच चॉक, ग्लकोज का बिगड़ा हुआ सीरप एवं सामान्य रंग अथवा एसेन्स मिलाये जाते हैं। बिस्कुट बनाने के उपयोग में आने वाले आकर्षक जहरी रंग हानिकारक होते हैं।
इस प्रकार, ऐसी मिठाइयाँ वस्तुतः मिठाई न होते हुए बल, बुद्धि और स्वास्थ्यनाशक, रोगकारक एवं तमस बढ़ानेवाली साबित होती है।
मिठाइयों का शौक कुप्रवृत्तियों का कारण एवं परिणाम है। डॉ. ब्लोच लिखते हैं कि मिठाई का शौक जल्दी कुप्रवृत्तियों की ओर प्रेरित करता है। जो बालक मिठाई के ज्यादा शौकीन होते हैं उनके पतन की ज्यादा संभावना रहती है और वे दूसरे बालकों की अपेक्षा हस्तमैथुन जैसे कुकर्मों की ओर जल्दी खिंच जाते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा हैः
''मिठाई (कंदोई) की दुकान साक्षात यमदूत का घर है।''
जैसे, खमीर लाकर बनाये गये इडली-डोसे आदि खाने में तो स्वादिष्ट लगते हैं परंतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं, इसी प्रकार मावे एवं दूध को फाड़कर बने पनीर से बनायी गयी मिठाइयाँ लगती तो मीठी हैं पर होती हैं जहर के समान। मिठाई खाने से लीवर और आँतों की भयंकर असाध्य बीमारियाँ होती हैं। अतः ऐसी मिठाइयों से आप भी बचें, औरों को भी बचायें।
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