उत्तम समय कौन सा ?
मोहरात्रि (जन्माष्टमी), कालरात्रि (नरक चतुर्दशी), दारूण रात्रि (होली) और अहोरात्रि (शिवरात्रि) इन पर्वों के दिन किया गया ध्यान-भजन, जप-तप अनंत गुना फल देता है।
वर्ष प्रतिपदा (चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा या गुड़ी पड़वा), अक्षय तृतिया (वैशाख शुक्ल तृतिया) व विजयादशमी (आश्विन शुक्ल दशमी या दशहरा) ये पूरे तीन मुहूर्त तथा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (बलि प्रतिपदा) का आधा – इस प्रकार साढ़े तीन मुहूर्त स्वयं सिद्ध हैं (अर्थात् इन दिनों में कोई भी शुभ कर्म करने के लिए पंचांग-शुद्धि या शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं रहती)। ये साढ़े तीन मुहूर्त सर्वकार्य सिद्ध करने वाले हैं।
(बालबोधज्योतिषसारसमुच्चयः 7.79.80)
सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी – ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं। इनमें किया गया जप-ध्यान, स्नान , दान व श्राद्ध अक्षय होता है।
अक्षय तृतिया को दिये गये दान, किये गये स्नान, जप-तप व हवन आदि शुभ कर्मों का अनंत फल मिलता है। 'भविष्य पुराण' के अनुसार इस तिथि को किये गये सभी कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसलिए इसका नाम 'अक्षय' पड़ा है। 'मत्स्य पुराण' के अनुसार इस तिथि का उपवास भी अक्षय फल देता है। त्रेतायुग का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ है। इसलिए यह समस्त पापनाशक तथा सर्वसौभाग्य-प्रदायक है।
यदि चतुर्दशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र का योग हो तो उस समय किया गया प्रणव (ॐ) का जप अक्षय फलदायी होता है।
(शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)
'सर्वसिद्धिकरः पुष्यः।' इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है। शुभ, मांगलिक कर्मों के सम्पादनार्थ गुरूपुष्यामृ योग वरदान सिद्ध होता है। इस योग में किया गया जप-ध्यान, दान-पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं। (शिव पुराण)
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