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निरोगी जीवन के लिए अपनाये जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या
हमारे ऋषियों, आयुर्वेदाचार्य ने जो जल्दी सोने-जागने एवं आहार-विहार की बातें बतायी है, उन पर अध्ययन व खोज करके आधुनिक वैज्ञानिक और चिकित्सक अपनी भाषा में उसका पुरजोर समर्थन कर रहे है ।
मनुष्य के शरीर में करीब ६० हजार अरब से एक लाख अरब जितने कोश होते है और हर सेकंड एक अरब रासायनिक क्रियाएँ होती है । उनका नियंत्रण सुनियोजित ढंग से किया जाता है और उचित समय पर हर कार्य का सम्पादन किया जाता है । सचेतन मन के द्वारा शरीर के सभी संस्थानों को नियत समय पर क्रियाशील करने के आदेश मस्तिष्क की पीनियल ग्रन्थि के द्वारा स्रावों (हार्मोन्स) के माध्यम से दिये जाते है । उनमे मेलाटोनिन और सेरोटोनिन मुख्य है, जिनका स्राव दिन-रात के कालचक्र के आधार पर होता है । यदि किसी वजह से इस प्राकृतिक शारीरिक कालचक्र या जैविक घड़ी में विक्षेप होता है तो उसके कारण भयंकर रोग होते है, जिनका इलाज सिर्फ औषोधियों से नहीं हो सकता । और य्स्दी अपनी दिनचर्या, खान-पान तथा नींद को इस कालचक्र के अनुरूप नियमित किया जाय तो इन रोगों से रक्षा होती है और उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है । इस चक्र के विक्षेप से सिरदर्द, सर्दी से लेकर कैंसर जैसे रोग भी हो सकते है । अवसाद, अनिद्रा जैसे मानसिक रोग तथा मूत्र-संस्थान के रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह (diabetes), मोटापा, ह्रदयरोग जैसे शारीरिक रोग भी हो सकते है । उचित भोजनकाल में पर्याप्त भोजन करनेवालों की अपेक्षा अनुचित समय कम भोजन करनेवाले अधिक मोटे होते जाते है और इनमे मधुमेह की सम्भावना बढ़ जाती है । अत: हम क्या खाते है, कैसे सोते है यह जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण है हम कब खाते या सोते है ।
प्रात : ३ से ५ :यह ब्रम्हमुहूर्त का समय है । इस समय फेफड़े सर्वाधिक क्रियाशील रहते है । ब्रम्हमुहूर्त में थोडा-सा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना चाहिए । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है । उन्हें शुद्ध वायु (ऑक्सिजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ् व स्फूर्तिमान होता है । ब्रम्हमुहूर्त में उठनेवाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है और सोते रहनेवालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।
प्रात: ५ से ७ : इस समय बड़ी आँत क्रियाशील होती है । जो व्यक्ति इस समय भी सोते रहते है या मल-विसर्जन नहीं करते, उनकी आँते मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती है । इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते है । अत: प्रात: जागरण से लेकर सुभ ७ बजे के बीच मलत्याग कर लेना चाहिए ।
सुबह ७ से ९ व ९ से ११ : ७ से ९ आमाशय की सक्रियता का काल है । इसके बाद ९ से ११ तक अग्न्याशय व प्लीहा सक्रिय रहते है । इस समय पाचक रस अधिक बनाते है । अत: करीब ९ से १ बजे का समय भोजन के लिए उपयुक्त है । भोजन से पहले 'रं- रं- रं... ' बीजमंत्र का जप करने से जठराग्नि और भी प्रदीप्त होती है । भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये ।
इस समय अल्पकालिक स्मृति सर्वोच्च स्थिति में होती है तथा एकाग्रता व विचारशक्ति उत्तम होती है । अत: यह तीव्र क्रियाशीलता का समय है । इसमें दिन के महत्त्वपूर्ण कार्यो को प्रधानता है ।
दोपहर ११ से १ : इस समय उर्जा-प्रवाह ह्रदय में विशेष होता है । करुणा, दया, प्रेम आदि ह्रदय की संवेदनाओ को विकसित एवं पोषित करने के लिए दोपहर १२ बजे के आसपास मध्यान्ह-संध्या करने का विधान हमारी संस्कृति में है । हमारी संस्कृति कितनी दीर्घ दृष्टिवाली हैं ।
दोपहर १ से ३ : इस समय छोटी आँत विशेष सक्रिय रहती है । इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर ढकेलना हैं । लगभग इस समय अर्थात भोजन के करीब २ घंटे बाद प्यास-अनुरूप पानी पीना चाहिए, जिससे त्याज्य पदार्थो को आगे बड़ी आँत को सहायता मिल सके । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।
दोपहर ३ से ५ : यह मूत्राशय की विशेष सक्रियता का काल है | मूत्र का संग्रहण करना यह मूत्राशय का कार्य है | २ – ४ घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्रत्याग की प्रवृत्ति होगी |
शाम ५ से ७ : इस समय जीवनीशक्ति गुर्दों की एयर विशेष प्रवाहित होने लगती है | सुबह लिए गये भोजन की पाचनक्रिया पूर्ण हो जाती है | अत: इस काल में सायं भुक्त्वा लघु हितं ... (अष्टांगसंग्रह) अनुसार हलका भोजन कर लेना चाहिए | शाम को सूर्यास्त से ४० मिनट पहले से १० मिनट बाद तक (संध्याकाल में) भोजन न करें | न संध्ययो: भुत्र्जीत | (सुश्रुत संहिता) संध्याकालों में भोजन नहीं करना चाहिए |
न अति सायं अन्नं अश्नीयात | (अष्टांगसंग्रह) सायंकाल (रात्रिकाल) में बहुत विलम्ब करके भोजन वर्जित है | देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है |
सुबह भोजन के दो घंटे पहले तथा शाम को भोजन के तीन घंटे दूध पी सकते है |
रात्रि ७ से ९ : इस समय मस्तिष्क विशेष सक्रिय रहता है | अत: प्रात:काल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है | आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टि हुई है | शाम को दीप जलाकर दीपज्योति: परं ब्रम्हा..... आणि स्त्रोत्र्पाथ व शयन से पूर्व स्वाध्याय अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग है |
रात्रि ९ से ११ : इस समय जीवनीशक्ति रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु (spinal cord) में विशेष केंदित होती है | इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरुरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है | इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है और जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है |
रात्रि ९ बजने के बाद पाचन संस्थान के अवयव विश्रांति प्राप्त करते है, अत: यदि इस समय भोजन किया जाय तो वाह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं है और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते है जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने रोग उत्पन्न करते है | इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है |
रात्रि ११ से १ : इस समय जीवनीशक्ति पित्ताशय में सक्रिय होती है | पित्त का संग्रहण पित्ताशय का मुख्य कार्य है | इस समय का जागरण पित्त को प्रकुपित कर अनिद्रा, सिरदर्द आदि पित्त-विकार तथा नेत्र्रोगों को उत्पन्न करता है |
रात्रि को १२ बजने के बाद दिन में किये गये भोजन द्वारा शरीर के क्षतिग्रस्त कोशी के बदले में नये कोशों का निर्माण होता है | इस समय जागते रहोगे तो बुढ़ापा जल्दी आयेगा |
रात्रि १ से ३ : इस समय जीवनीशक्ति यकृत (liver) में कार्यरत होती है | अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है | इस समय शरीर को गहरी नींद की जरूरत होती है | इसकी पूर्ति न होने पर पाचनतंत्र बिगड़ता है |
इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएँ मंद होती है | अत: इस समय सडक दुर्घटनायें अधिक होती है |
१) ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है | अत: प्रात: एवं शाम के भोज की मात्रा ऐसी रखें, जिससे ऊपर बताये समय में खुलकर भूख लगे |
२) सुबह व शाम के भोजन के बीच बार-बार कुछ खाते रहने से मोटापा, मधुमेह, ह्रदयरोग जैसी बिमारियों और मानसिक तनाव व अवसाद (mental stress & depression) आदि का खतरा बढ़ता है |
३) जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें | इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है | कुर्सी पर बैठकर भोजन करने से पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहीवत हो जाती है | इसलिए ‘बुफे डिनर’ से बचना चाहिए |
४) भोजन से पूर्व प्रार्थना करें, मंत्र बोले या गीता के पंद्रहवे अध्याय का पाठ करें | इससे भोजन भगवतप्रसाद बन जाता है | मंत्र :
हरिर्दाता हरिर्भोक्ता हरिरन्नं प्रजापति: |
हरि: सर्वशरीरस्थो भुंक्ते भोजयते हरि: ||
५) भोजन के तुरंत बाद पानी न पिये, अन्यथा जठराग्नि मंद पद जाती है और पाचन थी से नहीं हो पाता | अत: डेढ़-दो घंटे बाद ही पानी पिये | फ्रिज का ठंडा पानी कभी न पिये |
६) पानी हमेशा बैठकर तथा घूँट-घूँट करके मुँह में घुमा-घुमा के पिये | इससे अधिक मात्रा में लार पेट में जाती है, जो पेट के अम्ल के साथ संतुलन बनाकर दर्द, चक्कर आना, सुबह का सिरदर्द आदि तकलीफें दूर करती है |
७) भोजन के बाद १० मिनट वज्रासन में बैठे | इससे भोजन जल्दी पचता है |
८) पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोये; अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती है |
९) शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्री को बत्ती बंद करके सोये | इस संदर्भ में हुये शोष चौकानेवाले है | नॉर्थ कैरोलिना युनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अजीज के अनुसार देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-सबंधी हानियाँ होती है | अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी सही ढंग से चलती है |
आजकल पाये जानेवाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है | हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगो की सक्रियता का हमे अनायास ही लाभ मिलेगा | इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी |
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एक्जिमा (Eczema) की प्राकर्तिक चिकित्सा
एक्जिमा रोग शरीर की त्वचा को प्रभावित करता है और यह एक बहुत ही कष्टदायक रोग है। यह रोग स्थानीय ही नहीं बल्कि पूरे शरीर में हो सकता है।
एक्जिमा रोग होने के लक्षण :-
- जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके शरीर पर जलन तथा खुजली होने लगती है। रात के समय इस रोग का प्रकोप और भी अधिक हो जाता है।
- एक्जिमा रोग से प्रभावित भाग में से कभी-कभी पानी अधिक बहने लगता है और त्वचा भी सख्त होकर फटने लगती है। कभी-कभी तो त्वचा पर फुंसिया तथा छोटे-छोटे अनेक दाने निकल आते हैं।
- एक्जिमा रोग खुश्क होता है जिसके कारण शरीर की त्वचा खुरदरी तथा मोटी हो जाती है और त्वचा पर खुजली अधिक तेज होने लगती है।
एक्जिमा रोग होने के कारण:-
- एक्जिमा रोग अधिकतर गलत तरीके के खान-पान के कारण होता है। गलत खान-पान की वजह से शरीर में विजातीय द्रव्य बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं।
- कब्ज रहने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
- दमा रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधियां प्रयोग करने के कारण भी एक्जिमा रोग हो जाता है।
- शरीर के अन्य रोगों को दवाइयों के द्वारा दबाना, एलर्जी, निष्कासन के कारण त्वचा निष्क्रिय हो जाती है जिसके कारण एक्जिमा रोग हो जाता है।
- औषधियों के द्वारा एक्जिमा रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं हैं, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
- एक्जिमा रोग में सबसे पहले रोगी व्यक्ति को गाजर का रस, सब्जी का सूप, पालक का रस तथा अन्य रसाहार या पानी पीकर 3-10 दिन तक उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और इसके बाद 2 सप्ताह तक साधारण भोजन करना चाहिए। इस प्रकार से भोजन का सेवन करने की क्रिया उस समय तक दोहराते रहनी चाहिए जब तक की एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक न हो जाए।
- इस रोगी से पीड़ित रोगी को फल, हरी सब्जी तथा सलाद पर्याप्त मात्रा में सेवन करने चाहिए तथा 2-3 लीटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।
- एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को नमक, चीनी, चाय, कॉफी, साफ्ट-ड्रिंक, शराब आदि पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में लगभग 15 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। इसके बाद पीड़ित रोगी को नीम की पत्ती के उबाले हुए पानी से स्नान करना चाहिए। इस पानी से रोगी को एनिमा क्रिया भी करनी चाहिए जिससे एक्जिमा रोग ठीक होने लगता है।
- सुबह के समय में रोगी व्यक्ति को खुली हवा में धूप लेकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए तथा शरीर के एक्जिमा ग्रस्त भाग पर कम से कम 2-3 बार स्थानीय मिट्टी की पट्टी का लेप करना चाहिए। जब रोगी के रोग ग्रस्त भाग पर अधिक तनाव या दर्द हो रहा हो तो उस भाग पर भाप तथा गर्म-ठंडा सेंक करना चाहिए।
- प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 1-2 दिन भापस्नान तथा गीली चादर लपेट स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद रोगग्रस्त भाग की कपूर को नारियल के तेल में मिलाकर मालिश करनी चाहिए या फिर सूर्य की किरणों के द्वारा तैयार हरा तेल लगाना चाहिए। रोगी व्यक्ति को इस उपचार के साथ-साथ सूर्यतप्त हरी बोतल का पानी भी पीना चाहिए।
- नीम की पत्तियों को पीसकर फिर पानी में मिलाकर सुबह के समय में खाली पेट पीना चाहिए जिसके फलस्वरूप एक्जिमा रोग धीरे-धीरे ठीक होने लगता है।
- प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सूत्रनेति, कुंजल तथा जलनेति करना भी ज्यादा लाभदायक है। इन क्रियाओं को करने के फलस्वरूप एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में उपचार करने के साथ-साथ हलासन, मत्स्यासन, धनुरासन, मण्डूकासन, पश्चिमोत्तानासन तथा जानुशीर्षसन क्रिया करनी चाहिए। इससे उसका एक्जिमा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, प्राणायाम क्रिया करना भी लाभदायक है। लेकिन इस क्रिया को करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार भी करना चाहिए तभी एक्जिमा रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
- एक्जिमा रोग से पीड़ित रोगी को प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज कराने के साथ-साथ कुछ खाने पीने की चीजों जैसे- चाय, कॉफी तथा उत्तेजक पदार्थ का परहेज भी करना चाहिए तभी यह रोग पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
- एक्जिमा रोग को ठीक करने के लिए हरे रंग की बोतल के सर्यूतप्त नारियल के तेल से पूरे शरीर की मालिश करनी चाहिए और धूप में बैठकर या लेटकर शरीर की सिंकाई करनी चाहिए। इससे एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- इस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल का सूर्यतप्त जल 28 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन कम से कम 8 बार पीना चाहिए तथा रोगग्रस्त भाग पर हरे रंग का प्रकाश कम से कम 25 मिनट तक डालना चाहिए। इस प्रकार से कुछ दिनों तक उपचार करने से एक्जिमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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- वास्तु टिप्स: कौन सा समय किस काम के लिए होता है शुभ?
- वास्तु टिप्स के अनुसार ये चीजे ना रखें अपने घर में
- वास्तु टिप्स: भवन में बाथरूम किस दिशा में हो?
- फैक्ट्री स्थापित करने के लिए वास्तु टिप्स
- वास्तु के अनुसार बेड पर सोने के नियम
- मौन : शक्तिसंचय का महान स्रोत
- वास्तु टिप्स- कैसा हो आपका बेडरूम?
- बिना तोड़फोड़ कैसे दूर करें वास्तु दोष
- वास्तु और बच्चों की पढ़ाई(Vastu tips for Education)
- भोजन का प्रभाव
- सरल वास्तु टिप्स(Simple Vastu Tips)
- प्लाट के लिए जमीन का चयन करने के लिए वास्तु टिप्स
- घर में सुख-शांति के लिए
- खतरनाक है सॉफ्टड्रिंक्स
- भौंरी, मक्खी, मधुमक्खी के दंश होने पर यह उपाय तुरं...
- तलुओं की जलन
- स्वास्थ्य के दुश्मन फास्टफूड
- आभूषण क्यों पहने जाते हैं ?
- स्वस्तिक का इतना महत्त्व क्यों ?
- सूर्यनमस्कार क्यों करें ?
- सूर्य को अर्घ्य दान क्यों ?
- ब्राह्ममुहूर्त में जागरण क्यों ?
- विज्ञान भी सिद्ध कर रहा है प्रभुनाम की महिमा
- त्रिकाल संध्या के चमत्कारिक लाभ
- शरीर की जैविक घड़ी पर आधारित दिनचर्या
- नियम छोटे-छोटे, लाभ ढेर सारा
- जीवनशक्ति का विकास कैसे हो ?.....
- आराम से बनोगे महान
- खाना नहीं खाना, प्रसाद पाना
- लक्ष्मी कृपा इन वास्तुउपायों से
- ऐक्युप्रेशर चिकित्सा(Acupressure Therapy)
- शरीर के भिन्न-भिन्न भागों पर मिट्टी चिकित्सा
- मिट्टी चिकित्सा(Mud therapy)
- चुम्बक चिकित्सा( Magnet therapy)
- सूर्य किरण चिकित्सा
- स्वेदन चिकित्सा(सेंक) से होने वाले अद्भुत लाभ
- उपयोगी बातें
- शरद पूनमः चन्द्र-दर्शन शुभ
- होली में क्या करें ?
- गणेश चतुर्थीः चन्द्र-दर्शन निषिद्ध
- श्राद्ध में पालने योग्य नियम
- गर्भपात महापाप
- विविध रंगों का विविध प्रभाव
- किसके आभूषण कहाँ पहनें ?
- जन्मदिवस पर क्या करें ?
- बालक जन्मे तो क्या करें ?
- प्राकृतिक चिकित्सा के मुलभुत सिद्दांत
- सगर्भावस्था के दौरान आचरण
- आंतरिक गर्मी(Internal heat)
- शक्कर कितनी खतरनाक !
- शारीरिक वेदना मिटाने हेतु यह उपाय करे
- ऊँचाई बढ़ाने हेतु यह उपाय करे
- मोटापा घटाने हेतु कुछ अनुभूत प्रयोग
- गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा ?
- संसार-व्यवहार कब न करें ?
- ग्रहण में क्या करें, क्या न करें ?
- हमारे पूजनीय वृक्ष
- मुँह की खीलें (Pimples)
- तन-मन से निरोग-स्वस्थ व तेजस्वी संतान-प्राप्ति के ...
- सूतक में क्या करें, क्या न करें ?
- दुग्धवर्धक कुछ आसान प्रोयोग
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2013
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- निरोगी जीवन के लिए अपनाये जैविक घड़ी पर आधारित दिन...
- एक्जिमा (Eczema) की प्राकर्तिक चिकित्सा
- बवासीर का घरेलू इलाज
- कमजोरी दूर करने का एक असरदार अनुभूत प्रयोग
- घर में लगाइये मच्छरों को दूर भगाने वाले पौधे
- दमा व श्वास का घरेलू उपचार
- कॉन्टेक्ट लैंस लगाएं मगर सावधानी से
- इलायची के औषधीय प्रयोग
- आयुर्वेदिक औषधियों के कुछ दुष्प्रभाव
- पेट की गैस को ठीक करने के उपाय
- पीलिया का सरल और अनुभूत उपचार
- तिल से उपचार (Benefits Of Sesame Seed)
- बच्चों के सोने के आठ ढंग
- टी.वी.-फिल्मों का दुष्प्रभाव
- मौत का दूसरा नाम गुटखा पान मसाला
- श्वेत प्रदर (White Discharge) से बचाव के उपाय
- पलाश से रोग मुक्ति
- वीर्यरक्षण ही जीवन है
- Benefits Of Aprajita (अपराजिता)
- आप चाकलेट खा रहे हैं या निर्दोष बछड़ों का मांस?
- मांसाहारः गंभीर बीमारियों को आमंत्रण
- बाजारू आइसक्रीम-कितनी खतरनाक, कितनी अखाद्य?
- सौन्दर्य-प्रसाधनों में छिपी हैं अनेक प्राणियों की ...
- आधुनिक खान-पान से छोटे हो रहे हैं बच्चों के जबड़े
- चाय-काफी में दस प्रकार के जहर
- दाँतो और हड्डियों के दुश्मनः बाजारू शीतल पेय
- अण्डा जहर है
- जीवन में उपयोगी नियम
- परीक्षा में सफलता कैसे पायें ?
- अधिकांश टूथपेस्टों में पाया जाने वाला फ्लोराइड कैं...
- गौ-महिमा
- शक्तिदायक-पुष्टिवर्धक प्रयोग
- कब खायें, कैसे खायें ?
- भारतीय संस्कृति की परम्पराओं में दीपक कलश स्वस्तिक...
- वास्तु में द्वार व अन्य वेध
- आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में वास्तु
- किचन संबंधित खास वास्तु टिप्स
- व्यापार में सफलता देते हैं यह वास्तु टिप्स
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- शरीर के भिन्न-भिन्न भागों पर मिट्टी चिकित्सा
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- सूर्य किरण चिकित्सा
- स्वेदन चिकित्सा(सेंक) से होने वाले अद्भुत लाभ
- उपयोगी बातें
- शरद पूनमः चन्द्र-दर्शन शुभ
- होली में क्या करें ?
- गणेश चतुर्थीः चन्द्र-दर्शन निषिद्ध
- श्राद्ध में पालने योग्य नियम
- गर्भपात महापाप
- विविध रंगों का विविध प्रभाव
- किसके आभूषण कहाँ पहनें ?
- जन्मदिवस पर क्या करें ?
- बालक जन्मे तो क्या करें ?
- प्राकृतिक चिकित्सा के मुलभुत सिद्दांत
- सगर्भावस्था के दौरान आचरण
- आंतरिक गर्मी(Internal heat)
- शक्कर कितनी खतरनाक !
- शारीरिक वेदना मिटाने हेतु यह उपाय करे
- ऊँचाई बढ़ाने हेतु यह उपाय करे
- मोटापा घटाने हेतु कुछ अनुभूत प्रयोग
- गर्भाधान के लिए उत्तम समय कौन-सा ?
- संसार-व्यवहार कब न करें ?
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- हमारे पूजनीय वृक्ष
- मुँह की खीलें (Pimples)
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- विज्ञान भी सिद्ध कर रहा है प्रभुनाम की महिमा
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