अच्युताय आँवला रस(Achyutaya Amla Rus)
गर्मीनाशक,वीर्यवर्धक,पाचक।अमृत फल आँवला रोगी और निरोगी सभी मनुष्यों के लिए उत्तम रसायन है ।इसका रस पौष्टिक,केशवर्धक,रक्तशुद्धि करने वाला रूचिकर,मूत्रल,त्रिदोषनाशक,टूटी हड्डियों को जोडने मे सहायक ,कांतिवर्धक,नेत्रज्योतिवर्धक,दाँतो को मजबूती देने वाला, सप्तधातुओं को पुष्ट करने वाला ,बवासीर ,अजीर्ण, क्षय आदि रोगों मे लाभदायक है ।यह बालों की जडे मजबूत बनाता है ।इसके सेवन से बाल काले होते है ,पाचनतँत्र मजबूत होता है,दीर्घायु और यौवन प्राप्त होता है ।
आँवला चाहे हरा हो या सूखा, जो भी इसका नियमित सेवन करेगा, उसकी जीवनशक्ति में प्रचंड वृद्धि होगी, वह निरोग रहेगा।
आँवला मस्तिष्क को तेज, श्वासरोगों को दूर, हृदय को मजबूत और नेत्रज्योति व आँतों की कार्यशक्ति में वृद्धि तो करता ही है, साथ ही यकृत को स्वस्थ बनाकर पाचनशक्ति में वृद्धि भी करता है। यह रक्तशुद्धि एवं रक्तसंचार में गुणकारी है तथा वीर्य का स्रोत है। यह आयुवर्धक तथा सात्विक वृत्ति उत्पन्न करके ओज एवं कांति कोबढ़ाने वाला है।
आँवले को विटामिन 'सी' का भंडार कहा जाता है। स्वस्थ रहने के लिए हमें रोज जितनी मात्रा में विटामिन 'सी' की आवश्यकता होती है, वह केवल एक आँवला ही पूरा कर सकता है।
विटामिन 'सी' शरीर के लगभग 300 कार्यों में अत्यधिक सहायक होता है। मस्तिष्क के कार्यों में विटामिन 'सी' की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए साधकों को नियमित रूप से आँवले का सेवन करना चाहिए।
संतरे की तुलना में आँवले में 20 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' पाया जाता है। 100 ग्राम आँवले में 600 मिलीग्राम विटामिन 'सी' होता है, जबकि 100 ग्राम संतरे में 30 मि.ग्रा. ही विटामिन 'सी'होता है और सेवफल की तुलना में आँवले में 160 गुना विटामिन 'सी' तथा 3 गुना प्रोटीन होता है। आश्चर्य की बात यह है कि आँवले को उबालने, पीसने, भाप में पकाने या सुखाने पर भी उसमें उपस्थित विटामिन 'सी' की मात्रा में कमी नहीं आती है। यह गुण किसी भी अन्य फल या साग-सब्जी में नहीं होता।
मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने से महिलाओं में आने वाली कमजोरी आँवले के सेवन से कम होती है।
रोज लगभग 20 से 30 ग्राम आँवले का मुरब्बा या चूर्ण खाने से भरपूर विटामिन 'सी' मिलता है, साथ ही पेट भी साफ रहता है। हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा लाभकारी है। मधुमेह के रोगियों को ठंडी के मौसम में ताजे आँवले चबाकर खाने से या उसके रसपान से लाभ होता है। ठंडी के मौसम में 3-4 महीने तक रोज 2-3 ताजे आँवले का रस सुबह खाली पेट पीने से शरीर की सुस्ती व कमजोरी दूर होती है। बुखार में आँवले के रस का सेवन करने से मरीज को कमजोरीनहीं आती।
सुबह खाली पेट आँवले का सेवन करने से अधिक लाभ होता है। इससे हल्का बुखार, प्यास, जलन मिटती है। दाल-सब्जी पकाते समय उसमें आँवला डालकर उबालने से भी उसकी पौष्टिकता में वृद्धि होती है। कैंसर तथा टी.बी. जैसी खतरनाक व्याधियाँ भी आँवले के उपयोग से रोकी जा सकती हैं। स्नान करते समय आँवलों के चूर्ण का गाढ़ा घोल या उनका ताजा रस लगाकर स्नान करने से शरीर में निखार आता है और बाल रेशम जैसे मुलायम हो जाते हैं।
''जो मनुष्य आँवले के फल और तुलसीदल से मिश्रित जल से स्नान करता है, उसे गंगास्नान का फल मिलता है।'' (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड)
भोजन के पहले 1-2 हरे आँवले खाने से पाचनशक्ति बढ़ती है। भोजन के बीच-बीच में हरे आँवले के टुकड़े चबाकर खाने से पाचनक्रिया में सहायता मिलती है। भोजन के बाद आँवले खाने से अम्लपित्त के कारण पेट तथा गले में होने वाली जलन शांत होती है।
सावधानीः प्रसूता स्त्रियों को आँवले नहीं खाने चाहिए। अतिशय ठंडे वातावरण में शीत और नाजुकप्रकृतिवाले व्यक्तियों को कच्चे आँवले या उनके रस का उपयोग नहीं करना चाहिए। आँवले अत्यन्त शीतल होते हैं अतः सर्दी, खाँसी, कृमि, गठिया, बुखार, मंदाग्नि आदि आम, कफ व शीत प्रधान व्याधियों में मिश्री मिली हुई आँवले की सामग्रियों का त्याग करें। ऐसे व्यक्तियों को आँवले को गर्म करके या उष्ण-तीक्ष्ण द्रव्यों के साथ (जैसे चटनी बना के) उपयोग करना चाहिए।
औषधीय प्रयोग जो मनुष्य आँवले का रस 10 से 15 मि.ली. शहद 10 से 15 ग्राम, मिश्री 10 से 15 ग्राम और घी 20 ग्राम मिलाकर चाटता है तथा पथ्य भोजन करता है, उससे वृद्धावस्था दूर रहती है।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, घी-मिश्री संग खाय।
हाथी दाबै बगल में, तीन कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, जो शहद में खाय।
काँख चाप गजराज को, पाँच कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, चौथी डाल गिलोय।
पंचम जीरा डाल के, निर्मल काया होय।।
इस प्रयोग से शरीर में गर्मी, रक्त, चमड़ी तथा अम्लपित्त के रोग दूर होते हैं और शक्ति मिलती है।
आँवला घृतकुमारी के संग पीने से पित्त का नाश होता है।
15-20 मि.ली. आँवलों का रस तथा एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से आँखों की रोशनी वृद्धि होती है।
सर्दी या कफ की तकलीफ हो तो आँवले के 15-20 मि.ली. रस या 1 ग्राम (पाव चम्मच) चूर्ण में 1 ग्राम हल्दी मिलाकर लें।
1-2 आँवले और 10-20 ग्राम काले तिल रोज सुबह चबाकर खाने से स्मरणशक्ति तेज हो जाती है।
आँवले का रस और शुद्ध शहद समान मात्रा में लेकर मिला लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन रात के समय आँखों में आँजने से आँखों का धुँधलापन कम हो जाता है। इस मिश्रण को पीने से भी फायदाहोता है।
मैंले दाँत चमकाने हों तो दाँतों पर आँवले के रस से मालिश करें। आँवले के रस में सरसों का तेल मिलाकर मसूड़ों पर हलकी मालिश करने से भी बहुत फायदा होता है।
250 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 ग्राम लहसुन पीसकर यह मिश्रण शहद में डुबाकर पंद्रह दिन तक धूप में रखें। उसके पश्चात हर रोज एक चम्मच मिश्रण खा लें। यह एक उत्तम हृदय-पोषक है। यह प्रयोग हृदय को मजबूत बनाने वाला एक सरल इलाजहै।
रक्तचाप, हृदय का बढ़ना, मानसिक तनाव (डिप्रेशन), अनिद्रा जैसे रोगों में 20 ग्राम गाजर के रस के साथ 40 ग्राम आँवले का रस लेना चाहिए।
आधा भोजन करने के पश्चात हरे आँवलों का 30 ग्राम रस आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें। फिर शेष आधा भोजन करें। यह प्रयोग 21 दिन तक करें। इससे हृदय व मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है तथा स्वास्थ्य सुधरता है।
सूखे आँवले तथा सूखा धनिया समान मात्रा में लेकर रात को कुल्हड़ में इकट्ठे भिगो दें। सुबह छान के मिश्री मिलाकर पियें। इससे पेशाब की जलन दूर होती है तथामूत्ररोगों में लाभ होता है।
दो चम्मच कच्चे आँवले का रस और दो चम्मच कच्ची हल्दी का रस शहद के साथ लेने से प्रमेह मिट जाता है। कुछ दिनों तक प्रयोग करने से मधुमेह नियंत्रण में आ जाता है तथा सभी तरह के मूत्र-विकारों से छुटकारा मिल जाता है।
आँवले का चूर्ण गोमूत्र में घोंटकर शरीर पर लगाने से तुरंत पित्तियाँ दब जाती हैं।
अमृतफल आँवला
आँवला चाहे हरा हो या सूखा, जो भी इसका नियमित सेवन करेगा, उसकी जीवनशक्ति में प्रचंड वृद्धि होगी, वह निरोग रहेगा।
आँवला मस्तिष्क को तेज, श्वासरोगों को दूर, हृदय को मजबूत और नेत्रज्योति व आँतों की कार्यशक्ति में वृद्धि तो करता ही है, साथ ही यकृत को स्वस्थ बनाकर पाचनशक्ति में वृद्धि भी करता है। यह रक्तशुद्धि एवं रक्तसंचार में गुणकारी है तथा वीर्य का स्रोत है। यह आयुवर्धक तथा सात्विक वृत्ति उत्पन्न करके ओज एवं कांति कोबढ़ाने वाला है।
आँवले को विटामिन 'सी' का भंडार कहा जाता है। स्वस्थ रहने के लिए हमें रोज जितनी मात्रा में विटामिन 'सी' की आवश्यकता होती है, वह केवल एक आँवला ही पूरा कर सकता है।
विटामिन 'सी' शरीर के लगभग 300 कार्यों में अत्यधिक सहायक होता है। मस्तिष्क के कार्यों में विटामिन 'सी' की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए साधकों को नियमित रूप से आँवले का सेवन करना चाहिए।
संतरे की तुलना में आँवले में 20 गुना ज्यादा विटामिन 'सी' पाया जाता है। 100 ग्राम आँवले में 600 मिलीग्राम विटामिन 'सी' होता है, जबकि 100 ग्राम संतरे में 30 मि.ग्रा. ही विटामिन 'सी'होता है और सेवफल की तुलना में आँवले में 160 गुना विटामिन 'सी' तथा 3 गुना प्रोटीन होता है। आश्चर्य की बात यह है कि आँवले को उबालने, पीसने, भाप में पकाने या सुखाने पर भी उसमें उपस्थित विटामिन 'सी' की मात्रा में कमी नहीं आती है। यह गुण किसी भी अन्य फल या साग-सब्जी में नहीं होता।
मासिक धर्म के दौरान अधिक रक्तस्राव होने से महिलाओं में आने वाली कमजोरी आँवले के सेवन से कम होती है।
रोज लगभग 20 से 30 ग्राम आँवले का मुरब्बा या चूर्ण खाने से भरपूर विटामिन 'सी' मिलता है, साथ ही पेट भी साफ रहता है। हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा लाभकारी है। मधुमेह के रोगियों को ठंडी के मौसम में ताजे आँवले चबाकर खाने से या उसके रसपान से लाभ होता है। ठंडी के मौसम में 3-4 महीने तक रोज 2-3 ताजे आँवले का रस सुबह खाली पेट पीने से शरीर की सुस्ती व कमजोरी दूर होती है। बुखार में आँवले के रस का सेवन करने से मरीज को कमजोरीनहीं आती।
सुबह खाली पेट आँवले का सेवन करने से अधिक लाभ होता है। इससे हल्का बुखार, प्यास, जलन मिटती है। दाल-सब्जी पकाते समय उसमें आँवला डालकर उबालने से भी उसकी पौष्टिकता में वृद्धि होती है। कैंसर तथा टी.बी. जैसी खतरनाक व्याधियाँ भी आँवले के उपयोग से रोकी जा सकती हैं। स्नान करते समय आँवलों के चूर्ण का गाढ़ा घोल या उनका ताजा रस लगाकर स्नान करने से शरीर में निखार आता है और बाल रेशम जैसे मुलायम हो जाते हैं।
''जो मनुष्य आँवले के फल और तुलसीदल से मिश्रित जल से स्नान करता है, उसे गंगास्नान का फल मिलता है।'' (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड)
भोजन के पहले 1-2 हरे आँवले खाने से पाचनशक्ति बढ़ती है। भोजन के बीच-बीच में हरे आँवले के टुकड़े चबाकर खाने से पाचनक्रिया में सहायता मिलती है। भोजन के बाद आँवले खाने से अम्लपित्त के कारण पेट तथा गले में होने वाली जलन शांत होती है।
सावधानीः प्रसूता स्त्रियों को आँवले नहीं खाने चाहिए। अतिशय ठंडे वातावरण में शीत और नाजुकप्रकृतिवाले व्यक्तियों को कच्चे आँवले या उनके रस का उपयोग नहीं करना चाहिए। आँवले अत्यन्त शीतल होते हैं अतः सर्दी, खाँसी, कृमि, गठिया, बुखार, मंदाग्नि आदि आम, कफ व शीत प्रधान व्याधियों में मिश्री मिली हुई आँवले की सामग्रियों का त्याग करें। ऐसे व्यक्तियों को आँवले को गर्म करके या उष्ण-तीक्ष्ण द्रव्यों के साथ (जैसे चटनी बना के) उपयोग करना चाहिए।
औषधीय प्रयोग
हर्र, बहेड़ा, आँवला, घी-मिश्री संग खाय।
हाथी दाबै बगल में, तीन कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, जो शहद में खाय।
काँख चाप गजराज को, पाँच कोस ले जाय।।
हर्र, बहेड़ा, आँवला, चौथी डाल गिलोय।
पंचम जीरा डाल के, निर्मल काया होय।।
इस प्रयोग से शरीर में गर्मी, रक्त, चमड़ी तथा अम्लपित्त के रोग दूर होते हैं और शक्ति मिलती है।
आँवला घृतकुमारी के संग पीने से पित्त का नाश होता है।
15-20 मि.ली. आँवलों का रस तथा एक चम्मच शहद मिलाकर चाटने से आँखों की रोशनी वृद्धि होती है।
सर्दी या कफ की तकलीफ हो तो आँवले के 15-20 मि.ली. रस या 1 ग्राम (पाव चम्मच) चूर्ण में 1 ग्राम हल्दी मिलाकर लें।
1-2 आँवले और 10-20 ग्राम काले तिल रोज सुबह चबाकर खाने से स्मरणशक्ति तेज हो जाती है।
आँवले का रस और शुद्ध शहद समान मात्रा में लेकर मिला लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन रात के समय आँखों में आँजने से आँखों का धुँधलापन कम हो जाता है। इस मिश्रण को पीने से भी फायदाहोता है।
मैंले दाँत चमकाने हों तो दाँतों पर आँवले के रस से मालिश करें। आँवले के रस में सरसों का तेल मिलाकर मसूड़ों पर हलकी मालिश करने से भी बहुत फायदा होता है।
250 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 ग्राम लहसुन पीसकर यह मिश्रण शहद में डुबाकर पंद्रह दिन तक धूप में रखें। उसके पश्चात हर रोज एक चम्मच मिश्रण खा लें। यह एक उत्तम हृदय-पोषक है। यह प्रयोग हृदय को मजबूत बनाने वाला एक सरल इलाजहै।
रक्तचाप, हृदय का बढ़ना, मानसिक तनाव (डिप्रेशन), अनिद्रा जैसे रोगों में 20 ग्राम गाजर के रस के साथ 40 ग्राम आँवले का रस लेना चाहिए।
आधा भोजन करने के पश्चात हरे आँवलों का 30 ग्राम रस आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें। फिर शेष आधा भोजन करें। यह प्रयोग 21 दिन तक करें। इससे हृदय व मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है तथा स्वास्थ्य सुधरता है।
सूखे आँवले तथा सूखा धनिया समान मात्रा में लेकर रात को कुल्हड़ में इकट्ठे भिगो दें। सुबह छान के मिश्री मिलाकर पियें। इससे पेशाब की जलन दूर होती है तथामूत्ररोगों में लाभ होता है।
दो चम्मच कच्चे आँवले का रस और दो चम्मच कच्ची हल्दी का रस शहद के साथ लेने से प्रमेह मिट जाता है। कुछ दिनों तक प्रयोग करने से मधुमेह नियंत्रण में आ जाता है तथा सभी तरह के मूत्र-विकारों से छुटकारा मिल जाता है।
आँवले का चूर्ण गोमूत्र में घोंटकर शरीर पर लगाने से तुरंत पित्तियाँ दब जाती हैं।
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